SINGRAULI NEWS : गोदवाली कोलयार्ड का एनएच 39 पर कब्जा,प्रदूषण नियंत्रण और एमपीआरडीसी अमला परिवहनकत्ताओं पर मेहरबान

गोदवाली कोलयार्ड का एनएच 39 पर कब्जा
एक लेन कोलयार्ड में तब्दील दूसरी में कोल डस्ट की मोटी परत, प्रदूषण नियंत्रण और एमपीआरडीसी अमला परिवहनकत्ताओं पर मेहरबान
सिंगरौली: जिले के गोदवाली क्षेत्र के नेशनल हाईवे 39 मुख्य मार्ग की सड़क में कोलयार्ड का कब्जा हो गया है। टू-लेन सड़क कोलयार्ड के लिए सुरक्षित हो गया है। वही चालू दूसरे लेने की सड़क कोल डस्ट से पटी है। कोयला लोडिंग और अनलोडिंग गाड़ियों के आने जाने से रोड में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं तो वहीं दूसरी तरफ सड़क कोल्ड डस्ट से पट चुकी है। ऐसे में इस सड़क से आने जाने वाले राहगीर जान जोखिम में डालकर जाने को मजबूर हैं।बता दें कि गोदवाली क्षेत्र का सफर आए दिन जानलेवा साबित हो रहा है। सड़क के बीच और पटरियों में बने गड्ढे पूर्णतया धूल के गर्द से पटी है।
ऐसे में दो पहिया चार पहिया वाहन असमंजस में हो जाते हैं कि वह सड़क पर गाड़ी चलाएं या फिर सड़क के पटरिया पर चलाएं। वहीं बारिश का समय शुरू है। जिससे गढ्ढ़ों में पानी भर गया है। ऐसी हालत में वाहन चालकों को पता ही नहीं चलता कि आखिर गड्ढा कहां हैं । लिहाजा हादसों का भी खतरा बढ़ गया है। वहीं दो साल से प्रदूषण से करा रहे गोदवाली वासियों को राहत मिलने की कोई उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। जबकि प्रदूषण के कारण तथा उसके निवारण पर कई बार बैठक व एक्शन प्लान बनाया गया। लेकिन सब कागजों व आश्वासन में ही सिमट कर रह गया।
अभी भी धूल की मोटी परत सड़क पर पड़ी है। एनएच 39 की दुर्दशा को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी लापरवाह बने है। उन्हें भी यह बखूबी पता है कि नेशनल हाईवे सड़क कोलयार्ड बन चुका है। बावजूद इसके कोल कारोबारियों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दरियादिली दिखा रहा है। सूत्रों की माने कोयला स्टीम की चोरी को रोकने के लिए संविदा कार पोकलैंड मशीन और जेसीबी मशीन से कोयले को तोड़ते हैं। जिससे कोयले के छोटे-छोटे कण हवा में मिल जाते हैं। यह सब कारोबार रेलवे अधिकारियों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिकारियों के संरक्षण में किया जा रहा है।
धूल का उठता है गुब्बार
रेलवे कोलयार्ड के बगल से नेशनल हाईवे एनएच 39 भी कोलयार्ड में तब्दील हो चुकी हैं। यहां पानी का छिड़काव नहीं होने से कोयले के लोडिंग और अनलोडिंग से धूल के गुबार उड़ते है। जिससे चारों ओर धूल फैलने से दिन में ही अंधेरे जैसा महसूस होता है। प्रदूषण से वातावरण पूर्णतया विषाक्त हो गया है। कोल डस्ट से लोग सांस भी नहीं ले पा रहे हैं। सबसे दयनीय स्थिति दोपहिया वाहन चालकों व राहगीरों की है। एक किलोमीटर तक धूल सड़क से भी ऊंची हो गई है। यह क्षेत्र का सफर आए दिन जानलेवा साबित हो रहा है।
रेलवे ने साथ रखी चुप्पी
एनसीएल अधिक से अधिक कोयले का खनन करने और डिस्पैच करने में जुटा है तो वहीं रेलवे कोयला डिस्पैच और राजस्व को बढ़ाने में लगा है। प्रतिदिन सीसीएल की खदानों से हजारों डंपर गाड़ियां कोलयार्ड पहुंच रहे हैं। रेलवे कोलयार्ड में डीओ नहीं होने के बाद भी कोयला पड़ा रहता है। यह कोयला किसका है किसी को नहीं पता। पता है तो रेलवे अधिकारी, एमपीआरडीसी और कोल कारोबारी को। यही वजह है कि संविदाकार और ट्रांसपोर्टर तय कोयले के स्टॉक से ज्यादा एनएच 39 के किनारे कोयले का पहाड़ खड़ा कर दिया है।
एमपीआरडीसी के अधिकारी मौन
दो साल से नेशनल हाईवे की सड़क पर कोल यार्ड संचालित है। इस बात की जानकारी हर आम खास को है। लेकिन इस सड़क की देखरेख करने का जिम्मा जिन कंधों पर है वह अपने ऑख-कान बंद किए हुए हैं। करीब 2 साल से नेशनल हाईवे सड़क कोलयार्ड के लिए सुरक्षित हो चुकी है। बावजूद इसके जिम्मेदारों ने कोई सुध नहीं ली। सूत्रों का दावा है कि कोलयार्ड कारोबारियों से एमपीआरडीसी के अधिकारी हर महीने सुविधा शुल्क लेकर उन्हें सड़क के इस्तेमाल करने की छूट दे रखी है।
नोटिस से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड होगा बेनकाब
एनएच 39 सड़क से लगे रेलवे का कोलयार्ड बना है। संचालित कोलयार्ड किस कंपनी का है। कौन लोग कोल यार्ड में शामिल हैंए इनके कौन.कौन पार्टनर है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इनमें से अधिकांश की जानकारी है। लेकिन सभी कोल कारोबारियों से फेवीकोल जैसा गठजोड़ है। हालांकि यह संबंध स्थाई न होकर अस्थाई होते रहते हैं। सूत्रों की माने तो प्रदूषण नियंत्रण समय-समय पर सभी को नोटिस जारी करता है। इसके बाद कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। पिछले कई साल के रिकॉर्ड इस बात के गवाह हैं। लेकिन जब निष्पक्ष जांच होगी। तभी जिम्मेदारों के चेहरे बेनकाब होंगे।