रीवा

Rewa news, स्वतंत्रता दिवस पर उपेक्षित रहा जय स्तंभ रस्म अदायगी तक सीमित रहा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान।

Rewa news, स्वतंत्रता दिवस पर उपेक्षित रहा जय स्तंभ रस्म अदायगी तक सीमित रहा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान।

रीवा। देश की आजादी के आंदोलन का प्रतीक जय स्तंभ शहर में कई सालों से उपेक्षित हालत में है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राज्य शासन के निर्देश पर इस वर्ष भी शासकीय भवनों एवं शहर के विभिन्न चौराहों की सजावट और रात्रिकालीन प्रकाश की दो दिवसीय व्यवस्था स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या से की गई लेकिन हर वर्ष की तरह इस बार भी जय स्तंभ की अनदेखी हुई। विंध्य क्षेत्र के प्रख्यात ताम्रपत्रधारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय ओंकार नाथ खरे के ज्येष्ठ पुत्र लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने जय स्तंभ को लेकर जिला प्रशासन के प्रतिनिधि से उस समय अपना विरोध जताया जब लोकतंत्र सेनानी के रूप में उनको सम्मानित किए जाने के लिए स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को दोपहर में फोन पर उनकी लोकेशन पूछी गई । शाम को जब जिला प्रशासन के प्रतिनिधि लोकतंत्र सेनानी अजय खरे को शाल श्रीफल से सम्मानित करने के लिए नेहरू नगर स्थित उनके निवास स्थान पहुंचे तो श्री खरे ने कहा कि देश की आजादी के प्रतीक स्थल जय स्तंभ की प्रशासन के द्वारा की जा रही उपेक्षा के कारण प्रतीकात्मक विरोध में वह अपना सम्मान नहीं चाहते।

शासन के प्रतिनिधियों से श्री खरे ने कहा कि प्रशासन के द्वारा लंबे समय से जय स्तंभ के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके चलते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार , लोकतंत्र सेनानी और देशभक्त नागरिक आहत हैं। लंबे समय से जय स्तंभ को राष्ट्रीय पर्व के मौके पर भी नहीं सजाया जा रहा है। स्वतंत्रता दिवस , गांधी जयंती , मध्यप्रदेश दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर सजावट क्या एक दीप भी प्रज्वलित नहीं किया जाता है। जय स्तंभ का फव्वारा आज़ तक चालू नहीं किया गया। यहां तक करीब तीन साल पहले जय स्तंभ को हटाने का खेला किया गया लेकिन 24 फरवरी 2022 के दिन से 75 दिन के दीप प्रज्वलन आंदोलन के जरिए ऐतिहासिक जय स्तंभ सुरक्षित किया गया । आखिरकार प्रशासन को पद्मधर पार्क में स्थापित किए गए नकली स्तंभ को जमींदोज करना पड़ा। इसके बावजूद जय स्तंभ की जर्जर स्थिति पर प्रशासन का जरा भी ध्यान नहीं है। जय स्तंभ परिसर में जेपी सीमेंट के सौजन्य से अनाधिकृत तौर पर बनाए गये स्तंभ को भी तत्काल हटाना चाहिए। इसके चलते जय स्तंभ का मूल स्वरूप प्रभावित हुआ है। प्रशासन की ऐसी क्या मजबूरी है कि स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक स्थलों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों शहीदों की यादगार में दो फूल और दीप प्रज्वलित करने की व्यवस्था नहीं हो पाती। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का ऐतिहासिक मूल्यांकन और सम्मान होना चाहिए लेकिन वर्तमान दौर में उनके इतिहास के साथ लीपापोती की जा रही है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अपना तन मन धन सब लगा दिया। इधर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या काफी नगण्य है। यह भारी विडंबना है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की विधवाओं को सम्मान पेंशन से नवाजे जाने और सम्मान में समकक्ष माने जाने के बाद भी उनकी मृत्यु पर सरकार की तरफ से दो फूल चढ़ाने की व्यवस्था नहीं है। यह भी देखने को मिलता है कि किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार को प्रशासनिक स्तर पर याद नहीं किया जाता है। यह भारी विडंबना है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से ध्वजारोहण कराने की जगह उन्हें दर्शक दीर्घा में बैठा दिया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नहीं रहने पर उनके वंशजों को भुला दिया गया है। अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीयों की स्थिति गुलामों जैसी थी। आज़ाद भारत में भ्रष्ट नौकरशाही में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और उसके वंशजों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार है। पत्राचार का कोई जवाब नहीं मिलता। उनके वंशजों के द्वारा खुशामद पसंद अधिकारियों की जी हुजूरी संभव नहीं इस वजह से न्याय संगत काम भी नहीं होते और भारी अनदेखी की जा रही है। जिस देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का मान सम्मान नहीं , उसके भविष्य के बारे में गहरी चिंता होना स्वाभाविक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button