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Morwa and Singrauli City news: मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक शहर होगा धरती से गायब, लाखों लोगों का विस्थापन, 35 हजार करोड़ रुपये का होगा खर्च

मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक शहर होगा धरती से गायब, लाखों लोगों का विस्थापन, 35 हजार करोड़ रुपये का होगा खर्च

Morwa and Singrauli City news: मध्यप्रदेश के एक प्रमुख शहर का नाम जल्द ही मिटने वाला है, क्योंकि सरकार ने इस शहर को पूरी तरह से पुनर्विकसित करने का निर्णय लिया है। इस परियोजना के तहत शहर के लाखों लोगों का विस्थापन होगा और इसके लिए लगभग 35 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यह परियोजना राज्य सरकार के लिए एक महत्वाकांक्षी कदम है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय विकास, जलवायु परिवर्तन और नए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को ध्यान में रखते हुए शहर को पूरी तरह से नया रूप देना है।

इस परियोजना के तहत, शहर के अधिकांश पुराने इलाकों को नष्ट किया जाएगा और नई जगहों पर बसी कालोनियों का निर्माण किया जाएगा। सरकार की योजना के अनुसार, शहर के हर नागरिक को नए आवास और रोजगार की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। हालांकि, इस विस्थापन प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि लाखों लोग अपने घरों और संपत्तियों को छोड़कर नए स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होंगे। कई स्थानीय निवासी इस कदम को लेकर चिंतित हैं और उनकी उपयुक्त पुनर्वास योजना को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

इस विशाल परियोजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना, इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करना और शहर को भविष्य की जरूरतों के अनुरूप बनाना है। हालांकि, सरकार का कहना है कि इस बदलाव से लंबे समय में शहर के विकास में वृद्धि होगी और लोगों को बेहतर जीवन स्तर मिलेगा। लेकिन इस कदम से जुड़े सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर विचार करना जरूरी है। स्थानीय संगठनों और नागरिकों ने सरकार से पुनर्वास की योजनाओं को और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाने की मांग की है।

सिंगरौली में जयंत और दुद्धीचुआ खदानों के विस्तार के लिए सेक्शन 9 का काम लगभग एक साल पूरा होने को है। इस बीच मोरवा के विस्थापन की अफवाहें भी तेज हो गई हैं।

मोरबा विस्थापन मंच के एक पदाधिकारी ने बताया कि एनसीएल द्वारा विस्थापन पर जारी 34 पृष्ठ की पुस्तिका का मुख्य शीर्षक पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन योजना है। इसमें विस्थापन सहित सभी सूचनाएं थीं, लेकिन पुस्तिका के पृष्ठ संख्या 4 को पढ़ने से पता चलता है कि योजना का नाम और उद्देश्य विस्थापित व्यक्तियों का स्व-पुनर्वास है।

इसमें मोरवा के विस्थापितों को चेतावनी दी गई है कि 50,000 लोग बेघर हो जाएंगे। इन्हें ध्वस्त करने का कार्य और जिम्मेदारी एनसीएल ने अपने कंधों पर ले ली है, लेकिन विस्थापन के बाद विस्थापितों को स्वयं ही बसने की सलाह दी गई है। हालाँकि, यह एकमात्र सलाह नहीं है क्योंकि प्रबंधन ने अब तक इस प्रक्रिया पर गौर किया है, ऐसा प्रतीत होता है।

कानूनी विशेषज्ञ इस योजना को भूमि अधिग्रहण अधिनियम में स्व-पुनर्वास के रूप में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं विस्थापन मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि योजना के अनुसार एनसीएल जयंत को एमजीआर और रेल के माध्यम से होने वाली कोयला आपूर्ति तीन से चार साल में बंद हो जाएगी और राज्य के खजाने में आने वाला करीब 2,430 करोड़ रुपये का योगदान प्रभावित होगा।

मोरवा के सर्वेक्षण में देरी

मोरवा के सर्वेक्षण के संबंध में भी एनसीएल प्रबंधन को अपने पास उपलब्ध टीम पर भरोसा नहीं है तथा सर्वेक्षण एवं सर्वेक्षण कार्य एक निजी कंपनी की टीम द्वारा कराया जा रहा है। सही कार्य आदेश न मिलने और समय पर वेतन न मिलने के कारण वह काम पर भी नियमित नहीं रह पा रही है। यही कारण है कि सर्वेक्षण, जो 1 जुलाई से 30 दिसंबर तक चलना था, जनवरी के शुरुआती दिनों में भी पूरा नहीं हो सका।

Morwa of Singrauli  में कोयला खनन होता है। इसमें सबसे अधिक कोयला है।
मोरवा आर्थिक आय प्रदान करने में सबसे आगे है। यहां मोरवा रेलवे स्टेशन भी है।

मोरबा से विस्थापन से प्रभावित होने वाले सरकारी, गैर-सरकारी स्कूल, बैंक, बिजली वितरण कार्यालय, नगर निगम, डाकघर, पुलिस स्टेशन और दर्जनों अन्य संस्थान कहां जाएंगे, इसकी अभी तक कोई योजना नहीं है। जो लोग वर्षों से निजी सेवाओं में काम कर रहे हैं उनका भविष्य अंधकारमय है।

समस्या यह भी होगी कि यदि स्कूलों के बीच विस्थापन जारी रहा तो बच्चों को कहां दाखिला दिया जाएगा। आसपास के किसी भी स्कूल में सभी बच्चों को दाखिला देने की पर्याप्त क्षमता नहीं है। फिर बच्चों को स्कूल पहुंचाने की बड़ी चिंता होगी।

पुनर्वास की शर्तें मोरवा के लोगों ने पुनर्वास के लिए एनसीएल के समक्ष कई शर्तें रखी हैं। विस्थापित परिवार के प्रत्येक व्यक्ति पर नौकरी जैसी कुल 24 शर्तें लगाई गई हैं जिनमें प्रमुख हैं- धारा 91 के अंतर्गत उपलब्ध सभी भूमि नगर निगम क्षेत्र में होनी चाहिए, क्योंकि मोरवा की सभी भूमि जो अधिग्रहित की जा रही है, वह नगर निगम में है।
जो लोग नगर निगम क्षेत्र के बाहर जमीन लेने के इच्छुक हैं, उन्हें नियमानुसार मुआवजा मिलना चाहिए।
मोरवा ने पहले भी विस्थापन का दंश झेला है, इसलिए पुनर्वास क्षेत्र का बाजार मूल्य इस आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए कि किस वार्ड का बाजार मूल्य सबसे अधिक है।
विस्थापितों को कोल इंडिया लिमिटेड एवं अवरोही क्रम में वर्तमान नीति के तहत नौकरी दी जाए।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मोरबा विस्थापन मंच के पदाधिकारियों के अनुसार, यह कोल इंडिया का सबसे बड़ा और एशिया का सबसे बड़ा शहरी विस्थापन होगा। लगभग 30,000 से 35,000 करोड़ रुपये का मुआवजा वितरित किये जाने का अनुमान है।

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