ठंडे बस्ते में कैद हो गया सीधी जिले के लाखों के गबन का मामला हाईकोर्ट के आदेश की हो रही अनदेखी।
ठंडे बस्ते में कैद हो गया सीधी जिले के लाखों के गबन का मामला हाईकोर्ट के आदेश की हो रही अनदेखी।
तत्कालीन सरपंच व सचिव ने किया था लाखों का गबन
विराट वसुंधरा, ब्यूरो
सीधी:- जिले में ग्राम पंचायत झगरहा गबन के मामले को लेकर काफी अरसे से सुर्खियों में बना रहा। हैरत की बात तो यह है कि झगरहा पंचायत में 25 लाख के गबन का मामला सामने आने के बाद ठंडे बस्ते में जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कैद करी दिया गया है। उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करानें में भी जिम्मेदार अधिकारी पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। दरअसल जनपद पंचायत सीधी अंतर्गत ग्राम पंचायत झगरहा में गबन का मामला प्रमाणित होने के बाद भी सालों से जिम्मेदार अधिकारी दोषियों पर कार्रवाई करने से गुरेज कर रहे हैं। जिला पंचायत के बाद हाई कोर्ट से भी आदेश जारी हुआ लेकिन कार्रवाई नहीं की जा सकी। कार्रवाई न होने का मुख्य कारण तत्कालीन सरपंच का राजनीतिक रसूख बताया जा रहा है। दरअसल सीधी जनपद की झगरहा पंचायत में वर्ष 2011 से 2016 तक कार्यरत सरपंच शांति पति मनोज कोल एवं सचिव बाबूलाल कोल द्वारा व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार करते हुए सामुदायिक भवन निर्माण आंगनवाड़ी भवन निर्माण तथा मेढ़ बंधान की राशि आहरित करने के बाद भी कार्य नहीं कराया गया। ग्रामीणों द्वारा मामले की शिकायत के बाद तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ ने जांच टीम गठित की थी। जिसने मामले की जांच के बाद 25 लाख 27 हजार 705 रुपए के गबन की पुष्टि करते हुए कार्रवाई के लिए प्रतिवेदन सौंपा था। लेकिन अधिकारियों ने मामले को ठंडे बस्ते में कैद कर दिया। आरोप है कि तत्कालीन सरपंच शांति कोल 2017 से 2022 तक जिला पंचायत सदस्य थीं। लिहाजा वसूली का आदेश जिला पंचायत की फाईलों में ही दबा रहा। मामला प्रमाणित होने के कारण शांति कोल 2022 में पर्चा दाखिल करने के बाद भी पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाई थीं। उनका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया गया था। फिर भी उनके द्वारा इस मामले में कोई भी सहयोग नहीं किया जा रहा है और न ही जिम्मेदार अधिकारी गबन की गई राशि की वसूली को लेकर गंभीर हैं। जिला कार्यालय सामाजिक न्याय जिला सीधी द्वारा अपना जांच प्रतिवेदन 2 जनवरी 2013 को कलेक्टर सीधी को सौंपा गया था जिसमें तत्कालीन सरपंच-सचिव द्वारा किए गए लाखों के गबन के मामले को मौके पर जांच के दौरान प्रमाणित पाया गया। मेढ़ बंधान कार्य कागजों में स्वीकृत कराकर लाखों की राशि गबन कर ली गई थी और मौके पर कोई भी कार्य नहीं पाया गया। मेढ़ बंधान के कार्य में लाखों का गबन उजागर हुआ था। उसी तरह खेत तालाब निर्माण में भी आधा अधूरा कार्य कराकर राशि बंदरबाट कर ली गई थी। इस दौरान यह भी पाया गया था कि सरपंच, सचिव द्वारा फर्जी मस्टर रोल तैयार कर फर्जी मूल्यांकन कराया गया था। जांच प्रतिवेदन में तत्कालीन सरपंच, सचिव के साथ ही संबंधित उपयंत्री के विरुद्ध आपराधिक दर्ज करानें की अनुसंशा दर्ज की गई थी। जांच के दौरान दर्जनों ग्रामीणों द्वारा अपने बयान में सरपंच, सचिव के विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए गए थे। इसके बाद भी कलेक्टर कार्यालय में उक्त जांच प्रतिवेदन ठंडे बस्ते में कैद होकर रह गया। तत्संबंध में यही माना जा रहा है कि राजनैतिक रसूख के चलते ही तत्कालीन सरपंच द्वारा लाखों के गबन के मामले को ठंडे बस्ते में कैद करा दिया गया है। जिस पर जिम्मेदार अधिकारी अभी तक कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं।
*हाई कोर्ट ने तीन महीने का दिया था समय:-*
गबन का मामला प्रमाणित होने के बाद भी संबंधित अधिकारियों द्वारा कार्रवाई को लेकर जिस तरह से हीलाहवाली की जा रही थी उस पर स्थानीय संजय पाण्डेय द्वारा उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गई थी जहां से 23 फरवरी 2018 को आदेश जारी किया गया था कि 3 माह के अंदर प्रकरण को निराकृत किया जाए। हैरत की बात तो यह है कि उच्च न्यायालय क आदेश के बावजूद आज तक तत्कालीन सरपंच-सचिव से कोई भी वसूली की कार्रवाई संबंधित अधिकारियों द्वारा करने की जरूरत नहीं समझी गई। ऐसे में स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय का आदेश भी लाखों के गबन के मामले में कोई मायने नहीं रख रहा है। इसमें अब भी लीपापोती जारी है।
*राशि की नहीं की जा रही वसूली: संजय पाण्डेय*
शिकायतकर्ता संजय पाण्डेय का कहना है कि ग्राम पंचायत झगरहा की तत्कालीन सरपंच शांति कोल व सचिव बाबूलाल कोल पर संयुक्त रूप से 25 लाख 27 हजार 705 रुपए शासकीय राशि गबन की पुष्टि होने के बाद वसूली का प्रस्ताव तैयार किया गया था। लेकिन आज तक संंबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते राशि की वसूली नहीं हो पाई है। जबकि उच्च न्यायालय ने भी इस संबंध में आदेश जारी किया था कि तीन महीने के अंदर राशि की वसूली सुनिश्चित कराई जाए। श्री पाण्डेय ने कहा है कि लाखों के गबन के मामले में संबंधित अधिकारी राशि की वसूली को लेकर पूरी तरह से निष्क्रिय बने हुए हैं।