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Rewa आश्चर्यजनक किंतु सत्य यहां आदिवासी परिवार के घर में चूल्हे से निकले थे ‘लोढ़ बाबा’, महाकालेश्वर की तर्ज पर होता है श्रृंगार।

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Rewa आश्चर्यजनक किंतु सत्य यहां आदिवासी परिवार के घर में चूल्हे से निकले थे ‘लोढ़ बाबा’, महाकालेश्वर की तर्ज पर होता है श्रृंगार।

हर साल बढ़ रहा है “लोढ़ बाबा शिवलिंग” का आकार।

 

सावन माह होने से इन दिनों शिवालयों में भक्तों की भीड़ भीड़ ज्यादा है। सावन माह के सोमवार के दिन तो दिनभर तांता लगा रहता है। जिले में कई ऐसे शिव मंदिर है, जिनका अपना अलग इतिहास है। संभागीय मु यालय से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर नवागांव का लोढ़ बाबा मंदिर भी इन्हीं में से एक है। जिले की मनगवां तहसील अंतर्गत नवागांव में लोढ़ बाबा के नाम से स्थापित शिवलिंग के प्रति भक्तों में अपार आस्था है, ऐसा लोग बताते हैं कि यहां शिवलिंग आदिवासी परिवार के चूल्हे से प्रकट हुए हैं उनके प्रकट होने के दौरान लोढ़िया से जितनी बार ठोका गया उतना ही बार शिवलिंग ऊपर आया था लगभग पांच सौ साल प्राचीन इस शिवलिंग का आकार भी हर साल बढ़ रहा है। लोढ़ बाबा का श्रृंगार उज्जैन के महाकालेश्वर की तर्ज पर प्रतिदिन किया जाता है, मंदिर के पुजारी बाल्मीक गोस्वामी बताते हैं कि लगभग पांच सौ वर्ष प्राचीन इस मंदिर में श्रद्धालुओं की वैसे तो 12 महीने भीड़ लगती है लेकिन सावन के महीने में श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ देखने को मिलती है

साल में तीन दिन लगता है विशाल मेला।

लोढ़िया बाबा मंदिर में साल में तीन बार विशाल मेला लगता है बसंत पंचमी, शिवरात्रि और तीजा के मौके पर यहां मेले में अपार भीड़ होती है। यहां तड़के चार बजे से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो जाता है। अब यहां भव्य मंदिर बन गया है। इस मंदिर में पूजा करने दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं।

मन्नत की बंधते हैं नारियल

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ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा- अर्चना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यहां मन्नत के लिए श्रद्धालुओं द्वारा नारियल बांधे जाते हैं। संतान प्राप्ति, बीमारियों से छुटकारा सहित अन्य कामनाओं के साथ यहां आकर लोग नारियल बांधते और लोगों की मन्नतें पूरी होती है।

रास्ता खराब, फंस जाते हैं वाहन।

इस मंदिर को जाने वाला रास्ता ठीक नहीं है। बरसात के दिनों में यहां पहुंचना कठिन हो जाता है। वाहन फंस जाते हैं। सावन के माह मे यहां जाने वाले भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। लेकिन रास्ता खराब होने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

ऐसे हुई लोढ़ बाबा प्रगट।

बताया जाता है कि पांच-छह सौ साल पहले यहां रहने वाले एक आदिवासी परिवार के घर में चूल्हे से लोढ बाबा प्रकट हुए थे। यहां आदिवासी परिवार रहता था और चूल्हे में रोटी बनाने के दौरान ये शिवलिंग निकल आए रोटी बना रही आदिवासी महिला ने लोढिया से इन्हें ठोक कर दबा दिया। लेकिन फिर ऊपर आ गए। कई बार ऐसी प्रक्रिया चलती रही तब इस घटना को महिला ने गांव के लोगों को बताया जिसके बाद लोगों ने इन्हें लोढ़ बाबा का नाम दे दिया और यहां मंदिर बन गया, बताया जाता है कि यह आदिवासी परिवार गुढ़ क्षेत्र में रहता है। इस परिवार के वंशज हर साल यहां पूजा करने आते हैं। यहां पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।

 

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