Rewa news, जिसका सूरज कभी न डूबे, हिन्दी ऐसी ऊषा है, हिंदी संस्कारों की जननी है हिंदी कला मंजूषा है।
Rewa news, जिसका सूरज कभी न डूबे, हिन्दी ऐसी ऊषा है, हिंदी संस्कारों की जननी है हिंदी कला मंजूषा है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने मनाया हिंदी दिवस।
विराट वसुंधरा / मनोज तिवारी
रीवा। हिंदी पखवाड़े के अवसर पर बीते दिनांक 16 सितंबर 2024 सोमवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं बघेली सेवा मंच के तत्वधान में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय स्टेडियम के सभाकक्ष में हिन्दी भाषा के विविध पक्षों पर संगोष्ठी एवं काव्य संध्या का आयोजन किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. एन.पी. पाठक (पूर्व कुलपति अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा) एवं मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चंद्रिका प्रसाद चंद्र रहे।कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाकौशल प्रांत के महामंत्री श्री चंद्रकांत तिवारी ने की।आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ.चंद्र ने हिन्दी भाषा के उद्भव एवं विकास की यात्रा की चर्चा करते हुए हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिये का पक्ष रखा।उन्होने कहा कि हिन्दी भाषा अपनी बोलियों के सामर्थ्य से समृद्ध है एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी मुख्य बाधा है।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्गार व्यक्त करते हुए डॉ.एन.पी. पाठक ने कहा कि आज के बाजारवाद के युग में हिन्दी वैश्विक स्तर पर काफी तेजी से अपना स्थान बना रही है। कोई भी वैश्विक कंपनी या संस्था बिना हिन्दी के अपने को बाजार में सुरक्षित नहीं रख पाएगी।उन्होने कहा कि आज हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी संख्या में बोली जाने वाली भाषा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं श्री चंद्रकांत तिवारी ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य वह है जिससे समाज का हित हो, समाज को बांटने वाला लेखन साहित्य नहीं कहा जा सकता है।उन्होने बताया कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद इस वर्ष स्थानीय बोलियों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के अभियान के साथ सतत् रूप से कार्य कर रहा है। इसी परिपेक्ष्य में बघेली भाषा को लेकर हमारा संगठन लेखन एवं प्रकाशन को लेकर आगामी योजनाएं बना रहा है।कार्यक्रम के प्रथम सत्र का संचालन शिवानंद तिवारी (जिलाध्यक्ष, अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला-रीवा)ने किया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा आणंद गुजरात में आयोजित हुए राष्ट्रीय महिला साहित्यकार सम्मेलन में सहभागिता करने वाली दो कवयित्रियों श्रीमती सीमारानी झा एवं डॉ.अरुणा पाठक को उपस्थित अतिथियों एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला महामंत्री डॉ रंजना मिश्रा द्वारा शाल श्रीफल से सम्मानित भी किया गया।
संगोष्ठी के उपरांत एक शानदार काव्य संध्या का आयोजन किया गया,जिसमें नगर के नवोदित एवं वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया।काव्य पाठ का श्रीगणेश डॉ राजकुमार शर्मा द्वारा की गई मां शारदे की वंदना से हुआ। इसके बाद कवयित्री सीमारानी झा ने काव्य पाठ किया पंक्तियां दृष्टव्य है-“सब कुछ अच्छा तो नहीं मगर,
पहले से पर कुछ अच्छा है,
कोई वादा वो करता नहीं मगर,
वादा तोड़ने से ये अच्छा है।” डॉ अरुणा पाठक आभा ने काव्य पाठ किया-“मैं पुण्य सलिल नर्मदा तनुजा, रहने को विंध्य प्रदेश मिला”। छंदों की रसदार बहाते हुए अनुसुइया प्रसाद मिश्र ने अपने काव्य पाठ से सभी का मन मोह लिया- “मातु उदास पिता अब व्याकुल मोहन राह तकै अब राधा”। सुखनंदन प्रजापति ने हिन्दी के मान और सम्मान पर कविता पढ़ी-
“ऐसा नहीं कि हिन्दी के छात्र नहीं मेधावी हैं,
पर देखो यारों हिंदी पर अंग्रेजी अब हाबी है”।
हिंदी के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ राम सरोज द्विवेदी शांतिदूत ने काव्य पाठ किया-
“हिंदी संस्कारों की जननी हिंदी कला मंजूषा है,
जिसका सूरज कभी न डूबे हिंदी ऐसी ऊषा है”।
बघेली सेवा मंच के अध्यक्ष
भृगुनाथ पाण्डेय भ्रमर ने अपनी कविता के माध्यम से वर्तमान पारिवारिक विसंगतियों को उजागर किया-
“विषम स्थिति में भी मां-बाप को मजबूर मत करना,
सहारा चाहिए जब उनको खुद से दूर मत करना”।
वरिष्ठ कवि एवं व्यंगकार रामनरेश तिवारी निष्ठुर ने अपने व्यंगों के माध्यम से श्रोताओं को ठहाके लगाने के लिए मजबूर किया।पंक्तियां इस प्रकार हैं-
“मैंने अपने प्रदेश के प्रमुख राजनीतिज्ञ का नया नुस्खा अपनाया है,
और सभी नियमों को थोड़ा शिथिल करते हुए बताया है”। शहर की नामचीन शायर हशमत रीवानी ने साम्प्रदायिक सद्भाव एवं देशप्रेम की उत्कृष्ट रचनाएं सुनाईं।गजलकार एवं गीतकार शिवानंद तिवारी ने गजल पेश की-
“किसी से कर लिया वादा तो फिर तोड़ा नहीं जाता,
वो उलझाता बहुत है यार पर छोड़ा नहीं जाता।”
वो मेरा है नहीं ये बात सच के पास है लेकिन,
उसे खुद से घटाकर और कुछ जोड़ा नहीं जाता।”
डॉ रजनीश ओजस्वी ने देशप्रेम से ओतप्रोत कविता पढ़ी।
” तुम चाहते हो समता और समानता,
यह है तुम्हारी महानता।”
डॉ विनय दुबे ने श्रृंगार की बड़ी ही मनमोहक रचना प्रस्तुत की।सभी अतिथिगण एवं कवियों का धन्यवाद ज्ञापन विमलेश द्विवेदी ने किया।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा हिन्दी पखवाड़े पर आयोजित इस कार्यक्रम का संयोजन डॉ. रंजना मिश्रा (महामंत्री,अखिल भारतीय साहित्य परिषद रीवा) ने किया। अतिथिगण एवं कवियों के अलावा कार्यक्रम में अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहें, जिनमें प्रमुख रूप से प्रो.रामभूषण मिश्र( विशेष आमंत्रित सदस्य), विजय दुबे,भूपेंद्र वर्मा,वासुदेव शुक्ला,अखिलेश शुक्ला,रुचि सिंह बघेल,रवि त्रिपाठी,विवेक नामदेव(कोषाध्यक्ष),रामजी पाण्डेय, नरेंद्र गौतम,महेंद्र सिंह,एसएन सिंह, विनायक प्रसाद अग्निहोत्री,शैलेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह आदि उपस्थित रहे।