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खरी – खरी,, चले भाट हियं हरषु ना थोरा,, अब नए दौर में चाटुकार – दलाल।

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खरी – खरी,, चले भाट हियं हरषु ना थोरा,, अब नए दौर में चाटुकार – दलाल।

 

राजशाही के दौर में राव के भांट फिर आया नया दौर तो मान्यवर के चाटुकार और दलालों से तहस नहस लोकतांत्रिक व्यवस्था।

निश्चित रूप से अच्छे काम की बड़ाई लिखनी चाहिए और दिखानी भी चाहिए! लेकिन वह धूर्तता पूर्ण व वास्तविकता से परे होकर नहीं अपने कर्तव्यों का बोध भी रहना चाहिए वह भी तब जब दुनिया हमसे और हमारी लेखनी पर विश्वास करतीं हैं! हमारा कर्तव्य बनता है की हम सही को सही और गलत को लिखे और दिखाएं! जिससे हमारी पहचान और चौथे स्तंभ की गरिमा बरकरार रहे! लेकिन अधिकारियों और नेताओं के बीच अपनी उपस्थिती और अपने संबंधों को मधुर बनाने और फिर लोगों के बीच यह बताने की साहब और नेता जी से हमारे बहुत मधुर संबंध है! हम आपका काम करवा देंगे लेकिन थोड़ा समझना पड़ेगा!

यह काम चौथे स्तंभ का नहीं है! ऐसे लोगों को राजा महाराजाओं के जमाने में राव के भांट कहा जाता था और अब शायद दलाल ! जिला मऊगंज में ऐसा ही कुछ चल रहा है! सुबह से शाम तक वास्तविक और धरातल की स्थिति से परे होकर नेता और अधिकारियों की बिर्दावली गाने और लिखने को अपना सौभाग्य मान कर पूरी तन्मयता के साथ उनके आगे पीछे मंडराते रहने की जो परंपरा चल पड़ी है वह कही ना कही चौथे स्तंभ और मऊगंज के लिए घातक है! वास्तविक स्थिति को छोड़कर सिर्फ नेताओं और अफसरों का महिमा मंडन करेंगे तो धरातल की स्थिति में सुधार कैसे होगा ? इस दृष्टिकोण पर भी चौथे स्तंभ के कलमकारों को सोचना चाहिए! यह बात क्यों कही जा रही है इसके पीछे का कारण भी जानना अति आवश्यक है! तो आइए एक नजर इधर भी डालते हैं!

मऊगंज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है की कुछ हो ना हो क्षेत्रीय जनता का मनोरंजन खूब हों रहा है! सब अपनी अपनी लोकप्रियता और प्रभुता बढ़ाने के चक्कर में काम कर रहे हैं ! चाहें जनप्रतिनिधि है जिला के वरिष्ठ आला अधिकारी! पहले मऊगंज सिर्फ तहसील था तो और बात थी! लेकिन अब जिला बन गया तो स्वाभाविक है की अपेक्षाएं भी बढ़ेगी और उन अपेक्षाओं की पूर्ति करने के लिए दो शख्सियत के पास अहम जिम्मेदारी मिली है! जिला कलेक्टर और स्थानीय विधायक! दोनों सम्माननीय लोगों की कार्यशैली देखने के बाद बड़े बुजुर्गो द्वारा कही गई एक कहावत याद आ रही है की !

घरहुं रहे और डोलउ चढि के आइंगें।

नगर परिषद के वार्ड क्रमांक 11 में वहां से गुजरते हुए जो दृश्य दिखा वह एक मानव होने के नाते कही ना कही पीड़ा दायक रहा चाहते हुए भी कुछ मदद नहीं कर सका! जिला कलेक्टर की गौशाला से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक गोवंश घायल अवस्था में लहूलुहान पड़ा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था! उस बेजुबान के रक्त से सड़क लाल थी! पशु चिकित्सा अधिकारी मऊगंज को फोन भी लगाया गया लेकिन शाम ढलने के बाद अधिकारी कहां फोन उठाते हैं ! बड़ी बात यह है की जिला मुख्यालय की दस किलोमीटर के इर्द-गिर्द की परिधि में लगभग 5 से 6 गौशालाएं कागजों में संचालित है! उनकी वास्तविक स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है!‌ और उससे भी ज्यादा क्षेत्र वासियों को और मऊगंज को गौरवान्वित करने वाले हमारे जिले के प्रथम कलेक्टर आदरणीय अजय श्रीवास्तव जी जिन्होंने अपने नवाचार से मऊगंज को समूचे देश में एक अलग पहचान दिलाने वाले कलेक्टर महोदय की गौशाला भी शुरू किए हैं वहां आने पर पता चला की गौशाला अब बंद हो चुकी है कलेक्टर की गौशाला में लगे सारे कर्मचारियों को उनके मूल विभाग में भेज दिया गया!

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कलेक्टर मऊगंज गौवंश गोद लेने का सराहनीय अभियान चलाया था और इस सराहनीय और दर्शनीय अभियान के साक्षी बनने का सौभाग्य क्षेत्रीय लोगों के साथ साथ मध्यप्रदेश सरकार के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष वर्तमान विधायक गिरीश गौतम और भाजपा जिला अध्यक्ष के साथ साथ जिला में संचालित समस्त कार्यालयों के कर्मचारियों और बिर्दावली गाने वाले कलमकारों को भी मिला था ! उसके बाद सड़क पर इस तरह से गोवंशो की दुर्दशा कही ना कही एक मानव होने के नाते पीडा दायक लगी!
*घरहुं रहे और डोलउ चढि के आइंगे।

इसलिए लिखना पड़ा की हमारे क्षेत्र के माननीय विधायक जी क्या कम थें जो जिला कलेक्टर भी उन्हीं की राह में चल पड़े ? सिर्फ और सिर्फ पब्लिकसिटी पाने के लिए अक्सर नए – नित नवाचार करते रहते हैं! और कुछ दिनों बाद उन नवाचारो की समीक्षा करने की वजाय उसको पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है! इसलिए पब्लिकसिटी लिखना पड़ा क्योंकि कलेक्टर की गौशाला जो लाखों खर्च कर बनाया गया बड़े बड़े पोस्टर बेनर लगें अब उसमें एक भी गोवंश नहीं और नवाचार भी लगभग बंद हो चुका है! तो वहीं आप सबको बखूबी याद होगा की अपने माननीय विधायक जी अपने पहले कार्यकाल में सैकड़ों की संख्या में आवारा गोवंशो के साथ थाने पहुंचे थे! शाय़द उस समय पर प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी! और हमारे विधायक जी विपक्षी दल से थें तो उस समय आवारा गोवंशो की समस्या विधायक जी को दिखती थी! लेकिन उसके बाद से लेकर आज तक हमारे माननीय विधायक जी सरकार द्वारा चलाए जा रही गौशालाओं का निरीक्षण करते हुए नहीं देख गए।

सड़कों पर गौवंश क्यों –?

मऊगंज क्षेत्र में जब लगभग चार दर्जन से ज्यादा गौशालाएं जो कागजों में संचालित है तो इतने गोवंश सड़कों पर क्यों हैं ?
आवारा मवेशियों के चलते लगातार दुर्घटनाएं बढ़ रही है! आवारा गोवंशो के साथ साथ आम जनता भी इन दुर्घटनाओं में परलोक सिधार रही है! चिंतनीय है की मऊगंज में चाहे नेता हो या फिर जिला के वरिष्ठ अधिकारी सब अपने अपने तरीके से अपनी प्रभुता स्थापित करने में लगे हैं और हम जैसे हमारे पत्रकार साथी नेताओं और अधिकारियों की कमियों को छुपाकर उनकी प्रभुता को परोस रहे हैं!

यह दुर्भाग्य है की हम सब मिलकर अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने कर्तव्यों से विमुख होकर वास्त्विक आइना दिखाने की वजाय चाटुकारिता में लगे हैं ! शायद यह भूल रहे हैं की नेता और अधिकारी आते जाते रहेंगे लेकिन हमें तो यही रहना है और जब हम ही सही को गलत, और ग़लत को सही बता कर आम जनता के सामने नेताओं और अफसरो की झूठी वाहवाही लिखेंगे और दिखाएंगे तो विकसित मऊगंज की परिकल्पना कोरी ही रहेगी जो कभी नहीं पूरी हो सकती, पत्रकार साथियों से आह्वान है की क्षेत्र और आमजनता की समस्याओं पर मिलकर काम करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए वास्तविक आइना दिखाने का प्रयास करें! हालांकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए सच बोलना और सच लिखना भी कठिन है लेकिन

“गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले”

लेखक: मिथिलेश त्रिपाठी पत्रकार मऊगंज।

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