Rewa news:यादें-अर्जुन-सिंह
“न दैन्यम,न पलायनम” का यह संस्कृत वाक्य मुख्य रूप से भारत की राजनीति में स्व.कुँवर अर्जुन सिंह जी के साथ जोड़कर प्रयुक्त होता था !
रीवा।महाभारत में वर्णित वाक्य इसका अर्थ है “न तो किसी प्रकार का दीन भाव स्वीकार करना है और न ही संघर्ष से पलायन करना है” ! यह वाक्य साहस,आत्मविश्वास और कर्तव्य के प्रति समर्पण को व्यक्त करता है !
स्व. कुँवर अर्जुन सिंह जी के राजनीतिक जीवन में “न दैन्यम, न पलायनम” वाक्य के प्रयोग होन का एक खास कारण था ! यह वाक्य उनके संघर्षशील व्यक्तित्व और दृढ़ राजनीतिक दृष्टिकोण का प्रतीक बन गया था,प्रदेश और देश की राजनीति में जब भी उनके समक्ष कठिन परिस्थितियाँ आईं या पार्टी के भीतर विरोधाभास हुए तब उन्होंने इस वाक्य को अपने सिद्धांत के रूप में अपनाया और इस पर दृढ़ता से डटे रहे !
उन्होंने इस वाक्य का उपयोग अपने समर्थकों और विरोधियों को यह बताने के लिए किया कि वे न तो किसी दबाव में झुकेंगे,न ही विरोधियों के सामने हार मानेंगे ! खासतौर से कांग्रेस पार्टी में,जब उनके विचार या कार्यशैली से अन्य नेताओं में असहमति होती थी तब भी वे अपनी स्थिति पर अडिग रहते और पार्टी में अपना प्रभाव बनाए रखते थे !
इस प्रकार “न दैन्यम, न पलायनम” स्व. कुँवर अर्जुन सिंह जी की दृढ़ता और उनकी राजनीतिक यात्रा का आदर्श बन गया,जो उनके समर्थकों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी था !
आज की मौजूदा राजनीति में दाउ साहब की राजनैतिक यात्रा का वृतांत स्मरण रखना और अपने कर्तव्यों में निहित करना प्रासंगिक प्रतीत होता है !
वरिष्ठ कांग्रेस नेता
गिरिजेशधनेन्द्र पाण्डेय