Rewa news: विकास के लिए धन की कमी नहीं का दावा तो फिर वेंटीलेटर की कमी क्यों : अजय खरे
दिमागी चोट का शिकार बेहोश मरीज को दो रात भटकाया गया
समय पर इलाज नहीं मिलने से आखिरकार मौत हो गई
रीवा। कहने को स्थानीय संजय गांधी अस्पताल में रीवा संभाग के तमाम मरीज अच्छे इलाज की आशा में भर्ती होने आते हैं लेकिन यहां नाम बड़े दर्शन छोटे वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अस्पताल में भर्ती होने की जगह होने के बावजूद मरीज को इस प्रत्याशा में भर्ती नहीं किया जाता कि उन पर कोई वरदहस्त नहीं है। साफ-साफ कहा जाता है कि किसी बड़े से फोन कराओ तब भर्ती किया जाएगा। मौत के मुंह जूझ रहे मरीजों को तत्काल भर्ती करके इलाज शुरू करने की जगह उन्हें करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर जबलपुर ले जाने की सलाह दे दी जाती है।
मरीज के परिजन मजबूर होकर कई अस्पतालों का चक्कर लगाते हुए इधर-उधर भागते रहते हैं और समय पर सही इलाज नहीं मिलने के कारण मरीज की मौत हो जाती है। साल भर में ऐसे सैकड़ो मामले हैं लेकिन कोई खुलकर सामने नहीं आता है। आखिरकार बड़े लोगों और डॉक्टरों से पंगा कौन मोल ले? ऐसी ही एक दुखद घटना रामपुर नैकिन निवासी राजबहोर शर्मा के साथ हुई जो 1 नवंबर 2024 को सिंगरौली जिले के बरगवां में सड़क पार करते समय एक मोटरसाइकिल की चपेट में आने के कारण मस्तिष्क आघात के शिकार हो गए। उन्हें बेहोशी हालत में पहले सिंगरौली जिला मुख्यालय बैढ़न के शासकीय अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें रीवा के संजय गांधी चिकित्सालय में भर्ती होने की सलाह दी। किसी तरह रात में उन्हें रीवा के संजय गांधी अस्पताल लाया गया जहां वेंटिलेटर नहीं होने की बात करके उन्हें भर्ती करने की जगह जबलपुर ले जाने को कहा। 2 नवंबर को जबलपुर के शासकीय अस्पताल में भी वेंटिलेटर नहीं होने की बात कहकर भर्ती करने की जगह वहां के डॉक्टरों ने मरीज को वापस संजय गांधी अस्पताल रीवा ले जाने को कहा। जबलपुर से रीवा आकर जब संजय गांधी अस्पताल में मरीज को भर्ती करने की कोशिश की गई तो वहां वेंटीलेटर ना होने का बहाना करते हुए भर्ती करने से इनकार कर दिया गया। इसके चलते मरीज के परिजन 2 और 3 नवम्बर की मध्य रात्रि में परेशान होते रहे और इधर-उधर भटकते रहे।
इस दौरान संजय गांधी अस्पताल के प्रमुख और अन्य डॉक्टरों द्वारा भी फोन नहीं उठाए गए। अस्पताल में ड्यूटी कर रहे स्टाफ ने मरीज के परिजनों से सुपर स्पेशलिटी में भर्ती होने की सलाह दी। लेकिन सुपर स्पेशलिटी में मौजूद स्टाफ ने यह कहा गया कि संजय गांधी अस्पताल से यह लिखा कर लाओ कि वहां पर वेंटीलेटर नहीं है। लेकिन संजय गांधी अस्पताल के द्वारा ऐसा लिखने से इनकार किया गया। इस तरह 3 नवंबर की सुबह 12 बजे से पहले तक मरीज के परिजन काफी परेशान होते रहे। पिछले दो दिनों से उन्हें खाने और सोने की फुर्सत भी नहीं मिली। 12 बजे के बाद किसी तरह संजय गांधी अस्पताल में मरीज की भर्ती तो हो गई लेकिन काफी देर से मिले इलाज की वजह से मरीज राज बहोर शर्मा की जिंदगी नहीं बचाई जा सकी। करीब 1:30 बजे दोपहर उनकी अंतिम सांस टूट गई। मृतक राजबहोर शर्मा मऊगंज के समाजसेवी पत्रकार श्री शिव कुमार मिश्रा के साढ़ू भाई थे। पत्रकार मिश्रा जी ने अपने साढ़ू भाई का जीवन बचाने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन व्यवस्थागत खामियों के चलते सही समय पर इलाज नहीं मिला और अकाल मौत हो गई। 10 साल पहले रीवा के एक युवक का सड़क दुर्घटना में भेजा बाहर आने के बाद भी उसे बेहोशी हालत में एयरबस से दिल्ली ले जाकर समय पर इलाज मिल जाने के कारण बचा लिया गया था। लेकिन आम आदमी के लिए यह सुविधा कहां उपलब्ध है। समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक अजय खरे ने कहा कि संजय गांधी अस्पताल और सुपर स्पेशलिटी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन दीपक तले अंधेरा जैसी स्थिति बनी हुई है।
श्री खरे ने कहा कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला का गृह जिला रीवा है और उनके हाथ में स्वास्थ्य मंत्रालय है। ऐसी स्थिति में यहां वेंटीलेटर का अभाव या बहानाबाजी करके किसी मरीज को रीवा से जबलपुर और जबलपुर से रीवा भटकाया जाना बेहद आपत्तिजनक है। मौत के मुंह में जूझ रहे व्यक्ति के इलाज और भर्ती करने में किसी तरह की आनाकानी नहीं की जानी चाहिए। श्री खरे ने कहा कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला के द्वारा लंबे समय से यह बात बड़े दावे के साथ की जाती है कि विकास के लिए धन की कोई कमी नहीं है। ऐसी स्थिति में वेंटिलेटर की कमी या उसका कृत्रिम संकट होंना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है।