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Rewa news:नशे के साम्राज्य की गहराइयों तक कब पहुंचेगा कानून?

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Rewa news:नशे के साम्राज्य की गहराइयों तक कब पहुंचेगा कानून?

 

 

 

 

 

 

 

रीवा और मऊगंज जिले में मेडिकल नशे का अवैध कारोबार पिछले 15 वर्षों से एक संगठित अपराध के रूप में जड़ें जमा चुका है। यह सिर्फ युवाओं की जिंदगियां बर्बाद करने तक सीमित नहीं है, बल्कि अपराध का एक मुख्य कारण भी बनता जा रहा है। गांव-गांव और कस्बों में फैले इस अवैध व्यापार की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि पुलिस की हर कार्रवाई के बावजूद यह व्यापार थमता नहीं दिखता।

हालिया घटनाएं और बरामदगी यह दिखाती हैं कि नशे का यह अवैध कारोबार केवल फुटकर विक्रेताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। सवाल यह है कि क्या कानून के लंबे हाथ इस नेटवर्क के मूल तक पहुंच पाएंगे, या फिर यह समस्या यूं ही बढ़ती जाएगी?

 

 

 

मेडिकल नशा: एक सामाजिक महामारी

रीवा और मऊगंज में नशीली कफ सिरप और गोलियों की खपत तेजी से बढ़ रही है। पुलिस की लगातार छापेमारी में सैकड़ों नग दवाएं बरामद हो रही हैं, जो इस बात का संकेत है कि यह कारोबार कितना बड़ा है। स्थानीय स्तर पर बेरोजगार युवा इसे रोजगार के एक आसान जरिये के रूप में देख रहे हैं। कम पढ़े-लिखे युवक, जिन्हें वैध नौकरी में संतोषजनक आय नहीं हो पाती, इस अवैध कारोबार की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

गांव से शहर तक फैला अवैध नेटवर्क

पिछले कुछ महीनों में हुई पुलिस कार्रवाइयों ने यह साफ कर दिया है कि रीवा और मऊगंज के गांवों में फुटकर विक्रेताओं से लेकर थोक व्यापारियों तक एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। फुटकर विक्रेताओं से भारी मात्रा में नशीली दवाएं और सिरप बरामद हुए हैं, लेकिन इससे आगे का नेटवर्क अब भी कानून की पहुंच से बाहर है।

 

 

 

 

सूत्रों के मुताबिक, ये नशीली दवाएं मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश से लाई जाती हैं। लेकिन यह माल उत्तर प्रदेश के किस हिस्से से आता है और इसके पीछे कौन हैं, इस पर अब तक पुलिस स्पष्ट जानकारी नहीं जुटा पाई है।

बेरोजगार युवाओं के लिए ‘आसान कमाई का जरिया’

मेडिकल नशे का कारोबार बेरोजगार युवाओं के लिए एक ‘सुनहरे अवसर’ के रूप में सामने आ रहा है। नाम न बताने की शर्त पर एक युवक ने खुलासा किया कि इस धंधे में मुनाफा इतना अधिक है कि जोखिम उठाने से भी कोई हिचकिचाहट नहीं होती।

“एमआरपी से ₹100 अधिक कीमत पर दवा बेचकर एक दिन में 5,000 रुपये तक की कमाई हो जाती है। 10-15 शीशियां बेचने में ज्यादा समय नहीं लगता। ग्राहक खुद संपर्क करते हैं, और भुगतान नकद या ऑनलाइन कर दिया जाता है।”

यह धंधा इतना संगठित है कि इसमें उधारी का कोई स्थान नहीं है। इसके अलावा, स्थानीय माफिया विक्रेताओं को कानूनी और आर्थिक सहायता भी प्रदान करते हैं, जिससे नए युवाओं को इसमें शामिल होने में कोई डर नहीं लगता।

 

 

 

पुलिस की कार्रवाई और उसकी सीमाएं

हाल ही में गढ़ थाना क्षेत्र के लौरी नंबर 1 में पुलिस ने एक बड़े गोदाम पर छापेमारी की, जहां से भारी मात्रा में नशे की सामग्री बरामद हुई। एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसके अन्य साथी अब भी फरार हैं।

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यह पहली बार नहीं है जब पुलिस ने इस तरह की सफलता हासिल की हो। लेकिन हर बार फुटकर विक्रेताओं या छोटे स्तर के कारोबारियों को पकड़ने के बाद मामला वहीं ठहर जाता है। मुख्य सप्लायर और माफिया अब भी कानून की पहुंच से बाहर हैं।

“यदि फुटकर विक्रेताओं के पास सैकड़ों पेटियां बरामद हो रही हैं, तो जाहिर है कि सप्लाई चेन का असली स्रोत कहीं और है। पुलिस को इस नेटवर्क की जड़ तक पहुंचने के लिए व्यापक रणनीति अपनानी होगी,” एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा।

 

 

थोक व्यापारियों और माफियाओं को संरक्षण

इस अवैध कारोबार में शामिल मुख्य माफिया अपने नेटवर्क को बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश करते हैं। वे न केवल अपने विक्रेताओं को कानूनी सहायता प्रदान करते हैं, बल्कि उनके परिवारों की देखभाल भी करते हैं। यही कारण है कि छोटे विक्रेता इस धंधे में जोखिम उठाने से नहीं डरते।

इसके अलावा, बताया जाता है कि इस नेटवर्क के कुछ बड़े खिलाड़ी राजनीतिक और सामाजिक संरक्षण का भी लाभ उठाते हैं। ऐसे में पुलिस और प्रशासन के लिए इस नेटवर्क को तोड़ना और भी कठिन हो जाता है।

 

समाज पर प्रभाव और समाधान की जरूरत

मेडिकल नशे का यह कारोबार सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। रीवा और मऊगंज के युवा, जो भविष्य के निर्माता हो सकते थे, इस दलदल में फंसकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं।

इस समस्या का समाधान सिर्फ पुलिस कार्रवाई से नहीं हो सकता। इसके लिए व्यापक सामाजिक और आर्थिक उपायों की जरूरत है:

1. युवाओं के लिए वैकल्पिक रोजगार: रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराना सबसे बड़ा समाधान हो सकता है।

2. सख्त कानून और निगरानी: नशीली दवाओं की आपूर्ति और वितरण पर सख्त निगरानी होनी चाहिए।

3. जनजागरूकता अभियान: समाज में इस समस्या के दुष्परिणामों को लेकर जागरूकता फैलानी होगी।

 

 

क्या नशे के साम्राज्य का अंत होगा?

रीवा और मऊगंज के नागरिकों के लिए यह सवाल सबसे बड़ा है। पुलिस और प्रशासन की हर कार्रवाई के बावजूद यह अवैध धंधा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।

जब तक कानून थोक व्यापारियों और मुख्य माफियाओं तक नहीं पहुंचता, तब तक यह समस्या यूं ही बनी रहेगी। समाज के हर व्यक्ति, खासकर युवाओं को इस अवैध धंधे से दूर रखने के लिए मिलकर काम करना होगा।

रीवा के नागरिकों की उम्मीदें अब प्रशासन और कानून पर टिकी हैं। क्या यह नशे का साम्राज्य समाप्त होगा, या फिर यह समस्या भविष्य में और विकराल रूप लेगी? यह देखने वाली बात होगी।

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