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Rewa MP षडयंत्रपूर्वक् दबायी गई देश की हजारो वर्षों की समृद्ध और संस्कृतिक धरोहर।

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षडयंत्रपूर्वक् दबायी गई देश की हजारो वर्षों की समृद्ध और संस्कृतिक धरोहर।

ज्ञान परंपरा कार्यक्रम नहीं, बने सांस्कृतिक आंदोलन: डॉ मुकेश येंगल।

रीवा। देशभर में विशद भारतीय ज्ञान परंपरा के विस्तार के लिए चलाये जा रहे अभियान के अंतर्गत शिक्षण संस्थान रतहरा में बृहद आयोजन किया गया। व्याख्यान माला में पर्यावरण एवं पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ मुकेश येंगल, इंजी. वैंकटेश् कौशिक बंगलौर एवं डॉ विपिन वल्लभदास बालाघाट ने अपने विचार व्यक्त किये।

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शिक्षाविद् डॉ मुकेश येंगल ने कहा कि समृद्ध पुरातन भारतीय सभ्यता एवं ज्ञान परंपरा के विस्तृत 5000 सालों की सांस्कृतिक धरोहर को देश की आजादी के बाद के दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से शिक्षाशास्त्रियों ने विगत 500 वर्षो के मुगलकालीन इतिहास और शिल्पकला को महान निरूपित करते हुए विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के कोर्स में समाहित कर , जो इतिहास और संस्कृति वाकई में बताई जानी चाहिए थी उसे षड्यंत्रपूर्वक दबा दिया गया। भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की यही कोशिश पिछले 30 वर्षो में बनी सैकड़ो फिल्मों द्वारा किया गया। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के असंख्य शिक्षाविदों द्वारा भी इस बात का विरोध नहीं किया गया।

पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ मुकेश येंगल ने कहा कि अजन्ता एलोरा की गुफ़ाएँ और कैलाशा मन्दिर विश्व में श्रेष्ठतम है और दक्षिण भारत के सैकड़ो मंदिरों का शिल्प व निर्माण अद्भुत और आश्चर्यजनक है। मिश्र के पिरामिडो को ही इन निर्माणो के साथ तुलना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की श्रृंखला एक अच्छी शुरुआत है। लेकिन इसे कार्यक्रम के रूप में नहीं बल्कि सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाना चाहिए।

इंजी वैंकटेश् कौशिक बंगलौर ने कहा कि दक्षिण सहित भारत के मंदिरों की पुरातन इंजीनियरिंग, ड्राइंग और शिल्प के साथ उनका वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण किया जाय तो विश्व के चिंतकों की आँखें फटी रह जायेगी। उत्तर – पश्चिम के, 80 प्रतिशत से ज्यादा लेखक और शिक्षाविदों ने दक्षिण की महान परंपरा और संस्कृति को अभी जाना ही नहीं है।

वक्ताओं में विपिन वल्लभदास, डॉ अक्षय चतुर्वेदी, और डॉ सदानंद जी ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्थान पर अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शिक्षाविद एवं सामाजिक संगठनो के साथी उपस्थित रहे।

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