Rewa MP: तो क्या -? किसी नेता के दबाव में खोली गई सील दुकान या अधिकारियों ने किया विश्वासघात।
विराट वसुंधरा, ब्यूरो
रीवा। जिले में खाद की कालाबाजारी और मिलावटखोरी की खबरों का विराट वसुंधरा द्वारा प्रमुखता से कई बार खबरें छापी गई इन खबरों को प्रशासनिक अधिकारियों ने संज्ञान लिया और छाप मार्ग कार्यवाही शुरू की लेकिन अब प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सील की गई दुकानों को खोले जाने से कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है बता दें कि रीवा जिले के मनगवां, गंगेव और गढ़ क्षेत्रों में दिनांक 23 नवंबर को कृषि और राजस्व विभाग की संयुक्त टीम ने खाद-बीज की दुकानों का निरीक्षण किया। इस दौरान कई दुकानदार दुकानें बंद कर भाग खड़े हुए अधिकारियों ने गढ़ क्षेत्र की एक दुकान को सील कर दिया किया, लेकिन अगले ही दिन, 24 नवंबर को, प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सील की गई दुकान खोल दी गई जिसको लेकर शंकाएं कुछ और इशारा कर रही हैं बताया जाता है कि 24 नवंबर की दोपहर 3 बजे, बिना किसी सूचना और जांच प्रक्रिया पूरी किये मऊगंज के कृषि विभाग के अनुविभागीय अधिकारी ने दुकान की सील खोलवा दी है दुकान के खुलने का सीधा मतलब निकाला जा रहा है कि किसी प्रभावशाली नेता के दबाव में यह किया गया है या फिर अधिकारियों द्वारा अपने सिस्टम और जनता के साथ विश्वासघात किया गया है।
बड़ा सवाल।
प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जब दुकान खोली सील की गई थी तब उन्होंने ऐसा क्या पाया जो वैधानिक प्रक्रिया के खिलाफ था और अब ऐसा क्या हुआ कि सील की गई दुकान दूसरे दिन ही खोल दी गई अगर सबकुछ ठीक था तब दुकान सील क्यों कर दी गई थी जबकि मीडिया कर्मियों ने अधिकारियों से इस विषय में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि दुकानदार ने धमकी दी थी कि यदि सील नहीं खोली गई, तो वह क्षतिपूर्ति का दावा करेगा इस दौरान अधिकारियों ने यह भी स्वीकार किया है कि नियमानुसार प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया दो तरह की बातें आखिर क्यों की जा रही है।
प्रशासन का गैर-जिम्मेदार रवैया।
इस नाटकीय कार्यवाही के संबंध में जब अधिकारियों से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट जवाब देने से बचते हुए यह कहा कि आरटीआई के तहत जानकारी लीजिए जबकि मीडिया को जानकारी देना अधिकारियों का फर्ज बनता है अधिकारियों का यह रवैया पारदर्शिता की कमी और जवाबदेही के अभाव को दर्शाता है। हो न हो रीवा जिले की यह घटना प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियों और राजनीतिक दबाव के प्रभाव को उजागर करती है। यदि समय रहते ऐसे मामलों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो किसानों का प्रशासन पर से भरोसा उठ जाएगा। प्रशासन को निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि किसानों के हित सुरक्षित रह सकें।
जांच प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी।
दुकान खोलने के दौरान नियमों और प्रक्रियाओं की पूरी तरह अनदेखी की गई।
1. स्टॉक रजिस्टर की जांच नहीं हुई।
2. खाद और बीज की गुणवत्ता की कोई पुष्टि नहीं हुई।
3. ग्राहकों को दी गई रसीदों की जांच नहीं की गई।
4. स्थानीय गवाहों और पंचनामा तैयार करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
यह स्पष्ट है कि प्रशासनिक कार्रवाई दबाव में की गई और नियमानुसार निरीक्षण को दरकिनार कर दिया गया इस कार्यवाही के बाद किसानों में नाराजगी है और व्यापारियों में खुशी देखी जा रही है।
इन कारणों से पनप रही समस्या।
1. राजनीतिक हस्तक्षेप: प्रशासनिक कार्रवाई में नेता का दबाव।
2. पारदर्शिता की कमी: निरीक्षण और सील खोलने की प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं।
3. किसानों की अनदेखी: व्यापारियों के पक्ष में निर्णय।
4. जवाबदेही का अभाव: अधिकारी सवालों से बचते नजर आए।
समाज और प्रशासन से अपील।
1. सख्त कार्रवाई: खाद-बीज की दुकानों की नियमित और निष्पक्ष जांच हो।
2. पारदर्शिता: सीलिंग और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक: प्रशासनिक कार्यों में नेताओं का हस्तक्षेप रोका जाए।
4. किसानों को प्राथमिकता: व्यापारियों के बजाय किसानों के हित सुरक्षित किए जाएं।
क्या कहते हैं किसान।
इस संबंध में किसानों का कहना है कि खाद और बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं होगी, तो हमारी फसलें कैसे सुरक्षित रहेंगी यह हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
क्या कहते हैं व्यापारी।
इस संबंध में व्यापारियों का कहना है कि गलत तरीके से दुकान सील की गई थी सील की गई दुकान खुलने से व्यापारियों में खुशी देखी जा रही उन्होंने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे अपने अधिकारों की जीत बताया है।
मीडिया का सुझाव।
यह खबर मीडिया की तरफ से प्रशासनिक तंत्र के लिए चेतावनी नहीं बल्कि सुझाव है है कि अब समय आ गया है कि शासन अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करे और किसानों को प्राथमिकता देते हुए निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित करे जिससे कि मिलावटखोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।
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