MP news, पूर्व विधायक अभय मिश्रा ने छोड़ी भाजपा और कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए सिद्धार्थ तिवारी राज़।
रीवा। जिले की राजनीति में आज दो उलटफेर हुए हैं कांग्रेस नेता सिद्धार्थ तिवारी राज आज भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर अमहिया कांग्रेस को भगवा मय बना दिए तो वहीं दूसरी घटना पूर्व विधायक अभय मिश्रा के भाजपा छोड़ने की खबर आ रही है दोनों घटनाएं आने वाले चुनाव में क्या गुल खिलाएगी यह कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन यह तय है कि दोनों नेताओं का कहीं ना कहीं पार्टी छोड़ना उनके निजी स्वार्थ से प्रेरित है। यहां पर अभय मिश्रा की भाजपा छोड़ने की इतनी चर्चा नहीं है जितनी कि सिद्धार्थ तिवारी की भाजपा में शामिल होने की है क्योंकि सिद्धार्थ तिवारी पूर्व सांसद स्वर्गीय सुंदरलाल तिवारी के सुपुत्र हैं तो वही विंध्य क्षेत्र के सफेद शेर कहे जाने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता स्वर्गीय श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी के पोते हैं जो कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके थे।
टिकट के लिए सिद्धार्थ हुए दल बदलू।
सिद्धार्थ तिवारी बीते वर्ष से त्योंथर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थी तो वहीं स्थानीय कांग्रेस नेता रमाशंकर सिंह पटेल जो 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ें थे और चुनाव हार गए थे उन्हें कांग्रेस पार्टी ने इस लिहाज से टिकट दिया कि 2018 में रमाशंकर पटेल को पर्याप्त मत मिले थे स्थानीय कांग्रेस नेता हैं और कांग्रेस की सर्वे में जीतने वाले नेताओं की लिस्ट में थे तो वहीं सिद्धार्थ तिवारी विधायक बनने की आस लगाए त्योंथर विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे लेकिन बाहरी नेता होने के कारण उन्हें टिकट नहीं दिया गया कई दिनों से सिद्धार्थ तिवारी के कांग्रेस छोड़ने की चर्चाएं चल रही थी और आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के हाथों उन्होंने भोपाल में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है।
अभय मिश्रा ने फिर छोड़ी भाजपा।
2018 से लेकर 2023 तक कांग्रेस पार्टी के लिए काम करने वाले पूर्व विधायक अभय मिश्रा 3 माह पहले ही कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे उस दौरान उनका कहना था कि भाजपा में सुकून के लिए घर वापसी किए हैं लेकिन एक बार फिर ठीक चुनाव के पहले उन्होंने भाजपा छोड़ दिया है अभय मिश्रा की भाजपा छोड़ने का त्यागपत्र सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है।
वायरल हुआ त्यागपत्र
“मेरे द्वारा एक माह पूर्व भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता गृहण की गई थी। एवं शीर्ष नेतृत्व द्वारा मुझे दिये गये अश्वासन से हटकर वादा खिलाफी मुझे दिखाई दे रही है। माननीय मुख्यमंत्री जी अपने काम के प्रति प्रतिवद्ध नहीं है। एवं मेरी पत्नी नीलम मिश्रा को भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव नहीं लडना चाहती है। सेमरिया की जनता जनार्दन मुझे ही बतौर प्रत्याशी देखना चाहती है। वह भी सिर्फ कांग्रेस पार्टी से और वोट देने का मन बना रखी है। और कांग्रेस के सक्षम प्रत्याशी के रूप में क्षेत्र की जनता ने पूर्ण रूपेण कांग्रेस पार्टी को मुझे मान रही है। एवं मुझ पर दबाव बनाए हुये हैं। कि भारतीय जनता पार्टी से त्यागपत देकर कांग्रेस पार्टी में वापस आऊ एवं पंजे के चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लडूं। कमलनाथ जी ने मुझे पार्टी छोड़ने से दो दिन पहले ही संकेत दिए थे लेकिन मैं खुद गलती की और गुस्से में कांग्रेस छोड़ दी माननीय शिवराज जी ने के.पी तिपाठी को हाथ में जल लेकर टिकट न देने का वायदा किया था। किन्तु मुझे समय रहते जानकारी हो गई कि राजेन्द्र शुक्ल के प्रभाव में उन्होने के. पी त्रिपाठी को टिकट देने का निर्णय किय है।
अत: मैं भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता से स्तीफा फा दे रहा हूँ कृपया स्वीकार करे।
टिकट की चाहत में भटक रहे सिद्धार्थ और अभय।
आज जिस तरह से रीवा जिले में दो महत्वपूर्ण घटनाएं सामने आई उससे कांग्रेस और भाजपा में फर्क पड़े या ना पड़े लेकिन जनता के मन में यह फर्क जरूर पड़ रहा है कि दोनों नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए दल बदल किए हैं अब यह तो पता नहीं है कि सिद्धार्थ तिवारी को किस आधार पर भाजपा त्योंथर से टिकट दे देगी क्योंकि वहां भाजपा के ही विधायक हैं और भाजपा के ही दो-तीन नेता टिकट की लाइन में है जिन्होंने बीजेपी के लिए वर्षों से काम किया है और सिद्धार्थ तिवारी के पास ऐसा कोई एक भी कारण नहीं है कि जिससे भाजपा को बड़ा राजनीतिक लाभ होने वाला हो बहरहाल जन चर्चा यह भी है कि गुढ़ से उन्हें भाजपा टिकट देगी या फिर लोकसभा चुनाव लड़ाएगी जो अभी भविष्य के गर्त में है। तो वही हाल पूर्व विधायक अभय मिश्रा का है जो कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए और फिर 2 महीने बाद फिर भाजपा छोड़ दिए और कांग्रेस से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर किए हैं। दोनों नेताओं को उनकी नई नवेली पार्टी में स्थानीय नेता कितनी तवज्जो देते हैं पार्टी टिकट देती है य नहीं और जनता उन्हें विधायक बनाती है या नहीं यह तो वक्त बताएगा लेकिन जनता यह कहने में नहीं चूक रही है कि दोनों नेताओं ने अपने निजी स्वार्थ के लिए दल बदल किया है।
एक नेता जी का हर महीने पार्टी बदलने का मामला समझ से परे है वो जनता की सेवा करने के पछ में है या व्यक्तिगत अपनी सेवा के लिए बेचैन है मेरा मानना है कि इस नेता और इसके एक चम्मच को हर पार्टी लात मारकर भगा देना चाहिए क्योंकि यह किसी एक का नही हो सकता और ओछी मानसिकता का है।