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Rewa news- गंगेव जनपद CEO रहे प्रमोद ओझा सहित 7 के विरुद्ध 43 लाख की रिकवरी पड़ी डंडे बस्ते में।

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Rewa news- गंगेव जनपद CEO रहे प्रमोद ओझा सहित 7 के विरुद्ध 43 लाख की रिकवरी पड़ी ठंडे बस्ते में।

दोषियों ने हाई कोर्ट तक लगाई दौड़, जिला सीईओ रीवा से तत्काल कैविएट अथवा इंटरवेंशन लगाए जाने की सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने की मांग।

विराट वसुंधरा
मध्य प्रदेश की ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। शासन द्वारा ग्रामीण विकास के लिए दी जाने वाली राशि का किस कदर बंदरवाट किया जा रहा है उसका एक ताजा उदाहरण रीवा जिले की गंगेव जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत चौरी में हुई जांच और उसके बाद की गई कार्यवाही से पता चलता है। दरअसल रीवा की गंगेव जनपद पहले से ही भ्रष्टाचार का केंद्र बिंदु रहा है जहां पर 38 ग्राम पंचायतो में हुए व्यापक स्तर के कराधान घोटाले का जिन्न अभी बोतल के अंदर नहीं गया और आए दिन भ्रष्टाचार की नई इबारतें सामने आ रही हैं। ताजा मामले में जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे के द्वारा मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 की धारा 89 की सुनवाई के बाद दिनांक 20 दिसंबर 2823 को एक अंतिम नोटिस क्रमांक 7820 जारी की गई है जिसमें तत्कालीन सरपंच सहित संलिप्त 07 शासकीय कर्मचारियों और इंजीनियरों को दोषी पाया जाकर इनके विरुद्ध 43 लाख 50 हजार 46 रुपए की 7 दिवस के भीतर वसूली राशि भरे जाने के आदेश जारी किए गए हैं।

कौन -कौन हैं भ्रष्टाचार में दोषी।

गौरतलब है कि मामले की जांच तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे एसडीओ एस आर प्रजापति एवं एसडीओ जितेंद्र रविवार के द्वारा की गई थी। गंगेव की चौरी पंचायत में भ्रष्टाचार की कई स्तर पर जांच हुई जिसमें 50 लाख से अधिक की वसूली नोटिस जारी की गई थी। इसके बाद मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 की धारा 89 के तहत न्यायालय मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा में दोषियों को पर्याप्त सुनवाई का अवसर दिया गया जिस पर स्वयं जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे भी ग्राम पंचायत चौरी में भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए मौके पर आए थे। इन जांचों के बाद और पर्याप्त सुनवाई अवसर दिए जाने के बाद दिनांक 20 दिसंबर 2023 को सीईओ जिला पंचायत रीवा के द्वारा कुल 43 लाख 50 हजार 46 रुपए की वसूली आदेश जारी किए गए हैं जिसमे तत्कालीन सरपंच सविता जायसवाल के नाम 16 लाख 5 हजार 301 रुपए, तत्कालीन सचिव बुद्धसेन कोल के नाम 4 लाख 6 हजार 286 रुपए, तत्कालीन सचिव सुनील गुप्ता के नाम 3 लाख 98 हजार 61 रुपए, वर्तमान ग्राम रोजगार सहायक एवं तत्कालीन प्रभारी सचिव आरती त्रिपाठी के नाम 10 लाख 73 हजार 850 रुपए, तत्कालीन उपयंत्री डोमिनिक कुजूर के नाम 1 लाख 25 हजार 826 रुपए, तत्कालीन उपयंत्री अजय तिवारी के नाम 3 लाख 48 हजार 60 रुपए, तत्कालीन सहायक यंत्री स्वर्गीय अनिल सिंह के नाम 3 लाख 48 हजार 60 रुपए के कुल 43 लाख 50 हजार 46 रुपए का वसूली आदेश जारी किया गया। उक्त राशि भरे जाने के लिए 7 दिवस का समय दिया गया है और न भरे जाने की स्थिति में धारा 92 की कार्यवाही करते हुए सिविल जेल और भू राजस्व संहिता में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप कार्यवाही की जाएगी।

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धारा 89 की सुनवाई में सहायक लेखाधिकारी और जनपद सीईओ प्रमोद कुमार ओझा पर मेहरबानी।

रीवा जिले की गंगेव जनपद की ही सेदहा पंचायत की तरह चौरी पंचायत में भी एक कार्य में तत्कालीन सरपंच सचिव उपयंत्री सहायक यंत्री के साथ यात्री के साथ तत्कालीन सहायक लेखा अधिकारी बसंत पटेल एवं तत्कालीन गंगेव जनपद सीईओ प्रमोद कुमार ओझा को भी जांचकर्ता अधिकारी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के द्वारा दोषी पाया गया था जिनके विरुद्ध वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई थी। लेकिन सेदहा पंचायत की ही तरह चौरी पंचायत में भी धारा 89 की सुनवाई के उपरांत बिना स्पष्ट कारण बताए हुए जिला पंचायत सीईओ रीवा संजय सौरभ सोनवणे के द्वारा दोनों ही अधिकारियों को दोषमुक्त कर दिया गया जबकि इस निर्णय के पीछे कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया। इस प्रकार सीईओ जिला पंचायत सीईओ के इस ऑर्डर में स्पीकिंग ऑर्डर का भी अभाव दिखा। गौरतलब है कि मनरेगा के कार्यों में अंतिम भुगतान जनपद स्तर से किया जाता है जिसमें बिल वाउचर और कार्य के सत्यापन के बाद सहायक लेखा अधिकारी भुगतान के प्रथम सिग्नेटरी होते हैं जबकि द्वितीय और अंतिम सिग्नेटरी जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी होते हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि यदि जनपद स्तर से ही किसी भी दोषपूर्ण कार्य का भुगतान किया जाना है तो क्या सहायक लेखा अधिकारी और संबंधित जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आंख बंद कर और बिना भौतिक सत्यापन किए हुए ही भुगतान कर देंगे जो कार्य मौके पर अस्तित्व में ही नहीं है ?

इससे स्पष्ट है कि पूरे मामले में जनपद स्तर के सहायक लेखा अधिकारी एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन अब किन कारणों से धारा 89 की सुनवाई के उपरांत जिला पंचायत सीईओ के द्वारा इन दो अधिकारियों को दोषमुक्त किया गया समझ के परे है। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी का कहना है कि मामले में वह वरिष्ठ अधिकारियों को लेख करेंगे और इन निर्दोष छोड़े गए आरोपी अधिकारियों की भी भूमिका तय करने की अपील करेंगे।

तत्कालीन चौरी सरपंच ने हाई कोर्ट जबलपुर में दायर की है आधा दर्जन याचिकाएं।

चौरी पंचायत में हुए व्यापक भ्रष्टाचार और उसके विरुद्ध कराई जाने वाली जांचों को लेकर तत्कालीन चौरी पंचायत सरपंच सविता जैसवाल के द्वारा हाई कोर्ट जबलपुर में कई रिट याचिकाएं भी दायर की गई हैं जिसमें जांचों को न किए जाने और जांच रिपोर्ट में रोक लगाई जाने से लेकर धारा 89 की न्यायालयीन सुनवाई तक को भी प्रभावित करने का भरपूर प्रयास किया गया है। गौरतलब है कि जब तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेडे कार्यरत थे उस समय भी तत्कालीन सीईओ के विरुद्ध अवमानना याचिका भी सविता जैसवाल के द्वारा लगाई गई थी। हालांकि कई ऐसी याचिकाएं भ्रष्टाचार को दबाने और उनकी जांच और कार्यवाही न हो इसके लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से लगाई गई है। जहां शासन ने कुछ याचिकाओं के जवाब हाई कोर्ट जबलपुर में दे दिए हैं वहीं अभी भी कुछ याचिकाएं ऐसी हैं जिनके जवाब नहीं दिए जा सके हैं जो स्वयं ही चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसे में तत्काल कैविएट लगाई जाए अथवा तत्काल जवाब फाइल कर दिया जाए तो आरोपी और दोषियों को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलेगी लेकिन समय पर जवाब फाइल न किए जाने और लंबे समय तक प्रकरण हाई कोर्ट में लंबित रहने के कारण आरोपियों को लाभ मिलता रहता है जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की भी मिलीभगत रहती है।

 

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