MP news, अजय सिंह राहुल, अभय मिश्रा सहित कई विधायकों के निर्वाचन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर।
मध्यप्रदेश के 14 विधायकों के निर्वाचन को हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्य पीठ, इंदौर और ग्वालियर बेंच में दायर की गई याचिका।
मध्य प्रदेश की सभी 230 सीटों में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है जिसके लिए बीते 17 नवंबर 2023 को मतदान संपन्न हुआ था और 3 दिसंबर 2023 को परिणाम घोषित किए गए थे चुनाव परिणाम आने के बाद निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्वाचन प्रक्रिया से असंतुष्ट थे और चुनाव के दौरान अनुचित प्रक्रिया मानते हुए निर्वाचन को चुनौती दी है नियमानुसार नतीजे आने के 45 दिन के अंदर निर्वाचन को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है, सोशल मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो इसी नियम के तहत BJP और Congress के कुल 14 विधायकों के निर्वाचन के खिलाफ हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्य पीठ, इंदौर और ग्वालियर की खंडपीठ में कुल 14 विधायकों के खिलाफ उनके निर्वाचन को चुनौती दी गई है।
14 विधायकों के निर्वाचन को दी गई चुनौती।
मध्यप्रदेश के जिन निर्वाचित विधायकों को हाईकोर्ट में उनके निर्वाचन को चुनौती दी गई है उनमें नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, अजय सिंह राहुल, अभय मिश्रा, नीना वर्मा,भगवान दास सबनानी, प्रदीप लारिया, कंचन तन्वे, सीताशरण शर्मा और आरिफ मसूद राजकुमार करहे, अरुण भीमावद, देवेंद्र प्रताप सिंह, चंदा सिंह गौर, नागेंद्र सिंह, के निर्वाचन को चुनौती दी गई है इनमें से धार विधानसभा सीट से निर्वाचित विधायक नीना वर्मा के निर्वाचन को लगातार चौथी बार चुनौती मिली है जबकि नीना वर्मा का एक बार हाईकोर्ट से निर्वाचन शून्य कर दिया था।
खतरे में पड़ सकती हैं विधायकी।
निर्वाचन के दौरान अगर गड़बड़ी हुई होती है तो विधायकों का निर्वाचन शून्य भी हो जाता है जैसे कि धार की विधायक नीना वर्मा के साथ एक बार हो चुका है 2023 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अब 14 विधायकों की विधायकी खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है इन सभी निर्वाचित विधायकों के सामने कानूनी दांव पेंच का पलड़ा भारी भी पड़ सकता है इन विधायकों पर आरोप है कि इन विधायकों अनैतिक तरीके अपनाकर चुनाव जीते हैं जिनके खिलाफ चुनाव हारे प्रत्याशी और अन्य नागरिकों ने 14 विधायकों के खिलाफ अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं हालांकि जरूरी नहीं है कि सभी 14 विधायकों के खिलाफ लगे आरोप सही साबित होंगे लेकिन कभी कभी विधायकों के निर्वाचन में कानूनी दांवपेंच भारी पड़ जाता है और विधायकी शून्य हो जाती है।