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जानिए क्या है होली मनाने का महत्व, पौराणिक कथाएं, मान्यताएं,  इस ऐतिहासिक मंदिर में सैकड़ों वर्षों से पारंपरिक रूप में मनाई जा रही होली।

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जानिए क्या है होली मनाने का महत्व, पौराणिक कथाएं, मान्यताएं,  इस ऐतिहासिक मंदिर में सैकड़ों वर्षों से पारंपरिक रूप में मनाई जा रही होली।

रीवा जिले के मनगवां विधानसभा क्षेत्र के श्री राधा कृष्ण प्रणामी मंदिर फूलपुर टिकुरी में सैकड़ों साल से पारंपरिक रूप से होली का त्योहार मनाया जाता है बताया जाता है कि संत शिरोमणि श्री गोपाल मणि परमहंस जी महाराज की तपोस्थली श्री राधा कृष्ण प्रणामी मंदिर फूलपुर टिकुरी 37 मनगवां रीवा में होलिकोत्सव के अवसर पर फाग गायन कार्यक्रम मेला एवं भंडारा आयोजित किया जाता है इसी परंपरा के अनुरूप बीते दिन दो दिवसीय होलिकोत्सव आयोजन संपन्न हुआ। जिसमें होली के इस पावन अवसर पर फाग गायन के साथ साथ संगीतमय भजन एवं सत्संग प्रवचन का आयोजन किया गया। जो होली के दिन से धूरेडी के दिन दोपहर 4:00 बजे तक चलता रहा। उसके बाद मंदिर परिसर में ही विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। इस दौरान मंदिर के मुख्य पीठाधीश्वर श्री श्री 108 श्री अखंडानंद जी महाराज ने बताया कि होली में रंग खेलने की शुरुआत भगवान को लाल रंग चढ़ाकर करते हैं। इसके अलावा लाल रंग बच्चों और युवाओं को लगाया जाता है । यह उनकी ऊर्जा, जज्बे और जोश को प्रदर्शित करेगा । आज का युवा वर्ग पूरी तरह से नशे की ओर बढ़ता जा रहा है जिस पर आज के दिन सभी लोगों को यह निर्णय लेना चाहिए कि जब हम नशे से दूर रहेंगे तो आने वाली पीढ़ी भी नशे से दूर रहेगी नशे से दूर रहकर रंग खेलने का अलग ही उत्साह एवं आनंद होता है । सृष्टि महज एक राग और रंगों का खेल है, फागुन के महीने में यह खेल अपने चरम पर होता है।प्रकृति के मनोहारी व लुभावने रूप को निहार कर जीवों के भीतर राग एवं रंग हिलोरें लेने लगता है। ये भीतर की हिलोरें जब बाहर प्रकट होती हैं तो, उत्सव का रूप ले लेती हैं और रंगों का पर्व होली मनाया जाता है। हर इंसान किसी न किसी रंग में रंगा है, किसी न किसी राग में मस्त है। दुनिया के रंगमंच पर विभिन्‍न भूमिकाएं आदा कर रहे इंसान अलग-अलग रंगों की शरण लेते हैं। इस अवसर पर टिकुरी के अलावा कई अन्य गांव के लोग संगीत सुनने के लिए कार्यक्रम में उपस्थित रहे । विशेष आकर्षण का केंद्र मंदिर परिसर के अंदर लगने वाले मेले की भव्यता रहती है। इस मेले में घर में उपयोग होने वाले बर्तनों के अलावा बच्चों के खिलौने की जमकर बिक्री होती है। जहां आसपास के दुकानदार एवं ग्राहक पूरी श्रद्धा के साथ आकर राधा कृष्ण के मंदिर में रंग रूपी प्रेम के साथ-साथ आशीर्वाद भी पाते हैं।

होली का त्योहार को मनाने के पीछे क्या है मान्यताएं।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है होलिका दहन यानी होली से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं हालांकि ज्यादातर लोगों को होलिका और प्रहल्लाद वाली कहानी पता है, लेकिन इसके अलावा शिवजी-कामदेव और राजा रघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं होलिका दहन से जुड़ी ये कथाएं और मान्यताएं हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है और लोगों में समानता और एकता की मिशाल बनता है होली का त्योहार।

होलिका दहन से जुड़ी मान्यताएं।

यह सबको पता है कि हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भक्त है, तो उसने प्रह्लाद को रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया। हिरण्यकश्यपु की होलिका नाम की एक बहन थी। उसे वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर कई। किंतु भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और ये त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा।

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शिवजी ने कामदेव को किया था भस्म।

मान्यता है कि इंद्र ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया, इससे सारे जगत के प्राणी काममोहित हो गए कामदेव का शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला होली के दिन भगवान शिव की तपस्या भंग हुई उन्होंने रोष में आकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) इनको अपने पर हावी न होने दें तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस घटना के बाद शिवजी ने माता पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों, मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर जोरदार उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में घर-घर मनाया जाता है।

होली मनाने के पीछे एक और कहानी।

बताया जाता है कि राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी ने शिव से अमरत्व प्राप्त कर लोगों को खासकर बच्चों को सताना शुरु कर दिया। भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई तब राजा रघु के पूछने पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि शिव के वरदान के प्रभाव से उस राक्षसी की देवता, मनुष्य, अस्त्र-शस्त्र या ठंड, गर्मी या बारिश से मृत्यु संभव नहीं, किंतु शिव ने यह भी कहा है कि खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग उसकी मृृत्यु का कारण बन सकता है अत: ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन शीत ऋतु की विदाई का तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है उस दिन सारे लोग एकत्र होकर आनंद और खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं, तालियां बजाएं छोटे बच्चे निकलकर शोर मचाएं, लकडिय़ा, घास, उपलें आदि इकट्‌ठा कर मंत्र बोलकर उनमें आग जलाएं, अग्नि की परिक्रमा करें व उसमें होम करें। राजा द्वारा प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करने पर अंतत: ढुण्डा नामक राक्षसी का अंत हुआ इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा तथा प्रजा के भय का निवारण हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुई है।

राजाओं से लेकर राजनेताओं तक।

राजतंत्र में राजाओं द्वारा पारंपरिक तौर पर होली के उत्सव मनाया जाता था अब यही परंपरा राजनेता निभाने लगे हैं प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से लेकर सांसद और विधायक होली के त्योहार पर लोगों के साथ रंग गुलाल खेलते हैं समानता और भाईचारे का संदेश देते हैं रीवा जिले में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला सहित लगभग सभी विधायकों ने होली के दिन जनता के बीच जाकर होली का त्यौहार मनाया गांव और शहर के मंदिरों में होली के दिन उत्साह पूर्वक होली मनाई गई तो वहीं जिले भर में गांव-गांव फाग का गायन किया गया श्री राधा कृष्ण प्रणामी मंदिर फूलपुर टिकुरी में क्षेत्रीय विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति सहित क्षेत्र के जनपद सदस्य मृगेंद्रनाथ त्रिपाठी और सैकड़ो की संख्या में लोगों ने पहुंचकर होली के पारंपरिक कार्यक्रम में सहभागिता दी विधायक नरेंद्र प्रजापति ने फाग गायन कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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