धार्मिक आस्था और कानून का पालन: समय की आवश्यकता, लेकिन कानून पर आस्था का भारी होन चिंताजनक।
धर्म मानव जीवन का आधार है, जो व्यक्ति और समाज को शांति, सुख, और समृद्धि की ओर ले जाता है। प्रत्येक धर्म का मूल उद्देश्य मानवता की सेवा और समाज में सामंजस्य स्थापित करना है। हालांकि, हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि धार्मिक आयोजनों के नाम पर नियमों और कानूनों की अनदेखी हो रही है, जिससे सामाजिक व्यवस्था और शांति भंग हो रही है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण और सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली अनियंत्रित गतिविधियों को रोकने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं। इसके बावजूद, नव दुर्गा उत्सव, गणेश चतुर्थी जैसे धार्मिक पर्वों के दौरान डीजे, पटाखे और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग हो रहा है। यह न केवल पर्यावरण को हानि पहुंचा रहा है, बल्कि बीमार लोगों, विद्यार्थियों और शांति चाहने वाले आम नागरिकों के लिए भी गंभीर समस्याएँ खड़ी कर रहा है।
हाल ही में, रीवा संभाग के कई जिलों में नियमों की खुली अवहेलना देखी गई। 13 अक्टूबर 2024 को, मध्यप्रदेश के कई जिलों सहित रीवा जिले के मनगवा, गढ़, चाकघाट और हनुमान नगर सहित कई स्थानों पर डीजे और आतिशबाजी का शोर सुना गया, शहर में भी डीजे बजा जो स्पष्ट रूप से न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है। यह स्थिति चिंताजनक है, और यह सवाल उठाता है कि प्रशासनिक तंत्र और संबंधित विभाग नियमों का पालन कराने में असफल क्यों हो रहे हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि किसी भी रूप में कानून और दूसरों के अधिकारों की अनदेखी की जाए। हर धर्म हमें सहिष्णुता, संयम और दूसरों के अधिकारों का सम्मान सिखाता है। धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य समाज में शांति और सौहार्द बढ़ाना होना चाहिए, न कि अव्यवस्था और शोर-शराबे से अन्य लोगों की जिंदगी को कठिन बनाना।
समाज के सभी वर्गों, धार्मिक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक आस्थाएँ संविधान और न्यायिक आदेशों के दायरे में रहें। धार्मिक आयोजनों के दौरान संयम और नियमों का पालन कर हम समाज में शांति और सद्भाव बनाए रख सकते हैं।
देखने को मिलता है कि धार्मिक आयोजनों में युवा वर्ग अधिक सक्रिय रहते हैं उदंडता का भी प्रदर्शन करते है डांडिया नृत्य में आज की रात मजा हुस्न का आंखों से लीजिए जैसे फूहड़पन के गानों पर बालाएं नृत्य करते देखी जा रही है यह सब धार्मिक मान्यताओं के विपरीत ही माना जाएगा।
यह समय की मांग है कि सभी धार्मिक गतिविधियाँ कानून के दायरे में हों और मानवता के प्रति हमारे दायित्वों को ध्यान में रखते हुए आयोजित की जाएँ। तभी हम सही मायने में एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।