रबी फसलों की बुवाई के लिए किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह ऐसे करें खेती तो धरती से पैदा होगी दौलत।
कृषि लाभ का धंधा बन चुका है आधुनिक युग में उन्नत किस्म की खेती करना सभी किसानों का सपना है सिंचाई परियोजनाओं के आने से किसानों के खेत सिंचित हो रहे हैं और खेती से किसान मुनाफा कमा रहे हैं कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर की जाने वाली खेती से अब धरती दौलत पैदा करने लगी है और हर किसान खेती से मालामाल हो रहा है किसानों द्वारा रबी फसल की बुआई प्रारंभ कर दी गई है। रीवा जिले में रबी फसलों की बोनी दिसम्बर तक की जाती है। इस समय किसान को दो मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिए, पहला बीज तथा दूसरा उर्वरक। अगर बीज गुणवत्ता पूर्ण है और उर्वरक का प्रयोग समुचित नहीं है तो फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कृषि विशेषज्ञों ने कहा है कि कृषक बन्धुओं को ध्यान रखना चाहिए कि कौन सी खाद, कब, किस विधि से एवं कितनी मात्रा में देना चाहिए जिससे कि बढ़िया उत्पादन लिया जा सके।
कृषि विभाग द्वारा किसानों को दी गई सामयिक सलाह के अनुसार गेहूँ सिंचित हेतु अनुशंसित नत्रजन फास्फोरस पोटाश तत्व 120:60:40 सिंचित पछेती बोनी 80:40:30 असिंचित गेहूँ 60:30:30 एवं चना हेतु एन.पी.के. 20:60:20 एवं गंधक 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपयोग में लाना चाहिए। प्रायः कृषक बंधु डी.ए.पी. एवं यूरिया का बहुतायत से प्रयोग करते है। डी.ए.पी. की बढ़ती मांग, उंचे रेट एवं मौके पर स्थानीय अनुपलब्धता से कृषकों को कई बार समस्या का सामना करना पड़ता है। परंतु यदि किसान डी.ए.पी. के स्थान पर अन्य उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, एन.पी.के.(12:32:16), एन.पी.के. (16:26:26) एन.पी.के. (14:35:14) एवं अमोनियम फास्फेट सल्फेट का प्रयोग स्वास्थ मृदा कार्ड की अनुशंसा के आधार पर करें तो वे इस समस्या से निजात पा सकते है।
प्रायः कृषक नत्रजन फास्फोरस तो डी.ए.पी. एवं यूरिया के रूप में फसलों को प्रदाय करते है परंतु पोटाश उर्वरक का उपयोग खेतों में नही करते जिससे कृषक की उपज के दानों में चमक व वजन कम होता है, और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को हानि होती है। इसलिये किसान बन्धुओं को आवश्यक है कि वे डी.ए.पी. के अन्य विकल्पों क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुरूप प्रयोग करें। जहां डी.ए.पी. उर्वरक का प्रभाव भारी भूमि में अधिक प्रभावशाली होता है वहीं एन.पी.के. उर्वरकों का प्रभाव हल्की भूमि में ज्यादा कारगर होता है। एस.एस.पी. के प्रयोग से भूमि की संरचना का सुधार होता है क्योकि इसमें कॉपर 19 प्रतिशत एवं सल्फर 11 प्रतिशत पाया जाता है। एस.एस.पी. पाउडर एवं दानेदार दोनों प्रकार का होता है। एस.एस.पी. पाउडर को खेत की तैयारी के समय प्रयोग किया जाता है। वहीं एस.एस.पी, दानेदार को बीज बोआई के समय बीज के नीचे दिया जा सकता है।
डी.ए.पी. में उपलब्ध 18 प्रतिशत नत्रजन में से 15.5 प्रतिशत नत्रजन अमोनिकल फार्म में एवं 46 प्रतिशत फास्फोरस में से 39.5 प्रतिशत पानी में घुलनशील फास्फोरस के रूप में मृदा को प्राप्त हो पाती है। शेष फास्फोरस जमीन में फिक्स हो जाने के कारण जमीन कठोर हो सकती है। इसी प्रकार इफको द्वारा नैनो तकनीक आधारित नैनो यूरिया (तरल) यूरिया के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न होने वाली समस्या के नियंत्रण के लिए बनाया गया है। सामान्यतः एक स्वस्थ पौधे में नत्रजन की मात्रा 1.5 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक होती है। फसल विकास की विभिन्न अवस्थाओं में नैनो यूरिया (तरल) का पत्तियों पर छिड़काव करने से नाइट्रोजन की आवश्यकता प्रभावी तरीके से पूर्ण होती है एवं साधारण यूरिया की तुलना में अधिक एवं उत्तम गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त होता है।
अनुसंधान परिणामों में पाया गया है कि नैनो यूरिया (तरल) के प्रयोग द्वारा फसल उपज, बायोमास, मृदा स्वास्थ और पोषण गुणवत्ता के सुधार के साथ ही यूरिया की आवश्कता को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। नैनो यूरिया (500 मि.ली.) की एक बोतल कम से कम एक यूरिया बैग के बराबर होती है। इसलिये कृषकों को नैनो यूरिया (तरल), एस.एस.पी. एवं एन.पी.के. विभिन्न उर्वरकों के विकल्प के रूप में स्थानीय उपलब्धता, रेट का आंकलन कर प्रयोग न्यायसंगत प्रतीत होता है।