समलैंगिक विवाह के मामले में मुख्य न्यायाधीश के अल्पमत में होने का मतलब क्या?
मंगलवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को शादी का अधिकार देने से इनकार कर दिया तो यह एक विरला मौक़ा था जब भारत के मुख्य न्यायाधीश अल्पमत में थे.
संविधान पीठ ऐसे मामलों की सुनवाई करती है जिनका सीधा संबंध उन मामलों से होता है जो संविधान के प्रावधानों से जुड़ी होती है.
संविधान पीठ में कम-से-कम पाँच वरिष्ठ जज होते हैं जिनकी संख्या 13 तक भी हो सकती है लेकिन नियम यह है कि यह संख्या सम न होकर विषम होती है ताकि किसी विषय पर मतभेद होने पर बहुमत से फ़ैसला हो सके.
संविधान पीठ की सुनवाई के दौरान देश का मुख्य न्यायाधीश अल्पमत में हो ऐसा एक प्रतिशत से भी कम मामलों में हुआ है.
समलैंगिकों को विवाह का अधिकार देने की माँग करने वाली कुल 21 याचिकाओं को मिलाकर हुई इस सुनवाई में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि समान लिंग और एलजीबीटी+ वाले जोड़ों के लिए विवाह कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
हालाँकि मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि समान-लिंग वाले जोड़ों को सिविल पार्टनरशिप का अधिकार है और उन्हें बच्चों को गोद लेने में भी सक्षम होना चाहिए, तीन अन्य न्यायाधीश इससे सहमत नहीं थे.
भारत का मुख्य न्यायाधीश मास्टर ऑफ़ रोस्टर होता है, इसका मतलब है कि उनके पास यह निर्धारित करने का पूरा अधिकार है कि कौन से न्यायाधीश किस विशेष मामले की सुनवाई करेंगे, यह शक्ति निर्विवाद है और इस शक्ति का प्रयोग चीफ़ जस्टिस के विवेक पर निर्भर है.
हाल में आई किताब ‘कोर्ट ऑन ट्रायल’ में लेखकों का कहना है कि मामले का न्याय कौन कर रहा है इसका असर नतीजों पर पड़ सकता है क्योंकि अलग-अलग जजों की न्यायिक सोच अलग-अलग होती है.
शोध से पता चला है कि विशेष रूप से संविधान पीठों में मुख्य न्यायाधीश बेहद सीमित मामलों में अल्पमत में रहे हैं.
2019 तक 1603 मामलों में से मुख्य न्यायाधीश ने केवल 11 संविधान पीठ के मामलों में अल्पमत में रहे है, यानी लगभग 0.7% मामलों में.
1950 से 2009 तक के एक अध्ययन के अनुसार संविधान पीठ के 1532 मामलों में से मुख्य न्यायाधीश केवल 10 में अल्पमत में थे जबकि 2009 तक संविधान पीठों में कुल असहमति दर 15% थी.
यह अध्ययन एक स्वतंत्र शोधकर्ता निक रॉबिन्सन ने किया था.
‘कोर्ट ऑन ट्रायल’ के लेखकों के अनुसार, 2010 से 2015 तक, 39 मामलों में से मुख्य न्यायाधीश कभी भी असहमत या अल्पमत में नहीं थे. 2016 से 2019 के बीच भारतीय वकील श्रुतंजय भारद्वाज के शोध के अनुसार 32 मामलों में मुख्य न्यायाधीश कभी भी असहमत या अल्पमत में नहीं थे.
पिछले साल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की संवैधानिकता के फैसले पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित असहमत थे और अल्पमत में थे.