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कांग्रेस मुक्त भारत या कांग्रेस युक्त भाजपा, सत्ता लोभ य फिर नेताओं का चारित्रिक पतन आखिर किस दिशा जा रही देश की राजनीति।

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कांग्रेस मुक्त भारत या कांग्रेस युक्त भाजपा, सत्ता लोभ य फिर नेताओं का चारित्रिक पतन आखिर किस दिशा जा रही देश की राजनीति।

लोकसभा चुनाव 2024 की अब कभी भी घोषणा हो सकती है। केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा इसे लेकर काफी उत्साहित है। भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा एक नारा बड़े पुरजोर तरीके से लगाया जा रहा है। मंचीय भाषणों में ’कांग्रेस मुक्त भारत’ का यह नारा या श्लोगन खूब चर्चित हो रहा है। श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंच गया है। इस उत्साह के कारण कांग्रेस में भी निराशा का वातावरण बन गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली सफलता ने भी कांग्रेस मुक्त भारत के नारे की गूंज को बढ़ा दिया है। किंतु क्या यह असल में होने वाला हैं ? क्या कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में अपने पूर्व के प्रदर्शन से भी कमजोर प्रदर्शन करने जा रही है ? क्या वर्तमान में मोदी लहर पर सवार भाजपा देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल को सबसे कमजोर प्रदर्शन करने की स्थिति में ला खड़े करेगी ? इन सवालों के मध्य एक बड़ा सवाल यह उठता है की क्या भारत को कांग्रेस से मुक्त करने के लिए कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल करने का अभियान सुनियोजित ढंग से एक रणनीति के तहत चलाया जा रहा है। जिस प्रकार से कांग्रेस से नेता भाजपा में जा रहें है, उससे तो ऐसा लगता है की यह श्लोगन कांग्रेस मुक्त भारत के स्थान पर भाजपा युक्त कांग्रेस होता जा रहा है। जिस तेजी से भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा है। उससे तो यह लगता है की कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है।

देखा जाए तो दोनो ही दल एक ही थैली के चट्टे–बट्टे है। लोकसभा चुनाव के दौरान देश भर में कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक पार्टियों के नेताओं का भाजपा में जाने का सिलसिला बढ़ने लगेगा। बेशक राजनीतिक दलों से जुड़ाव का सबसे बड़ा कारण उस दल की विचारधारा है। देश में दल तो बहुत है, किंतु प्रमुख राजनीतिक दल के रूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। जो देश का सबसे पुराना राष्ट्रीय दल है। कांग्रेस की विचारधारा धर्मनिरपेक्ष होकर देश में सभी धर्म, जाति, भाषा का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय एकता स्थापित करने की रही है। कांग्रेस अब भी इस विचारधारा पर कायम है। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में कांग्रेस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

कांग्रेस आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने वाला प्रमुख संगठन था। महात्मा गांधी, जवाहर नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, नीलम संजीव रेड्डी, डा राजेंद्र प्रसाद, पंडित शंकर दयाल शर्मा, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, सोनिया गांधी, राहुल गांधी इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे है। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के 89 वें राष्ट्रीय अध्यक्ष है। कांग्रेस का अपना गौरवशाली इतिहास है, राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस ने लंबे समय देश पर शासन किया यूं कहें कि सबसे अधिक समय तक देश की सत्ता में कांग्रेस रही। कांग्रेस को देश की राजनीति में विचारधारात्मक रूप से भाजपा से कठिन चुनौती मिली है।

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राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान समय स्वर्णिमकाल है। देश की सता पर विराजित भाजपा के इतिहास को समझने के लिए भारतीय जनसंघ के इतिहास को समझना होगा। अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्तुम्बर 1951 में दिल्ली में हुई थी। श्यामाप्रसाद मुखर्जी, बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के स्थापक सदस्य रहे है। जनसंघ की विचारधारा एकात्म मानववाद से जुड़ी रही है। जनसंघ का 1977 में जनता पार्टी और अन्य दलों में विलय हो गया। जनसंघ के पद चिन्हों को पुन सयोंजित कर 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। भाजपा 1984 के आम चुनाव में मात्र 2 लोकसभा सीटों पर ही विजय हो पाई थी। 1998 में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का निर्माण हुआ। अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष का कार्यकाल ही पूरा कर पाई। इसके बाद अटलजी के नेतृत्व में सरकार बनी जिसने अपना कार्यकाल पूर्ण किया।

वर्तमान की फायर ब्रांड भाजपा का उदय गुजरात के मुख्यमंत्री देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पदार्पण से हुआ। 2014 के आम चुनाव में भाजपा और राजग को भारी सफलता मिली। तब से अब तक भाजपा का कारवां बढ़ता जा रहा है। राज्य दर राज्य भाजपा का विजय अभियान जारी है। भाजपा की आधिकारिक विचारधारा एकात्म मानववाद की है। किंतु भाजपा नेता देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेताओं ने गांधीवादी समाजवाद को भी पार्टी की अवधारणा के रूप में स्वीकार किया। मोदी युग की भाजपा प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर मुखर दिखाई देती है।
कांग्रेस और भाजपा की विचारधारा ने समय–समय पर देश को आंदोलित किया है। अब जबकि भाजपा का प्रभाव देश की राजनीति में असर दिखा रहा है। धारा 370 और श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा अन्य पार्टी के बड़े नेताओं को आकर्षित कर रहीं है। हाल में महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की, इससे पूर्व हेमंत बिश्वशर्मा जो असम राज्य के मुख्यमंत्री है। कांग्रेस से भाजपा में गए है। वर्ष 2024 के आम चुनाव का समय जैसे–जैसे निकट आ रहा है। कांग्रेस के अनेकों नेताओं के नाम भाजपा में जाने लिए चल रहे है। मध्यप्रदेश में भी सियासी पारा चढ़ा हुआ है।

जबलपुर के महापौर जगतसिंह अन्नू जो कांग्रेस पार्टी से भाजपा में गए। जबलपुर के कांग्रेस जन उनके इस निर्णय से बहुत आक्रोशित दिखे उन्होंने महापौर के विरुद्ध नारेबाजी की उनके चित्र को नर्मदा में बहाकर तर्पण किया। एमपी की सियासत में कांग्रेस से भाजपा में जाने वालों की लंबी फेहरिस्त के चर्चे प्रतिदिन अखबारों और सोशल मीडिया की सुर्खियां बने हुए है। 14 फरवरी के दिन भोपाल में बड़वानी जिला कांग्रेस अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह दरबार ने भाजपा का दामन थाम लिया। दरबार बरसो से कांग्रेस में थै। पूर्व गृह मंत्री बाला बच्चन के निकटवर्ती माने जाते है। सियासी तौर पर दलबदल को आमजन उचित नहीं मानता। किंतु राजनीति में यह फैशन बन गया है। चुनाव के दौरान दरबदल की प्रक्रिया में अचानक तेजी आ जाती है। एमपी में पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ के भाजपा में जाने की भी खूब चर्चा है। अब सवाल यह उठता है की एक पार्टी की विचारधारा के पैरोकार रहे। बड़े नेताओं की विचारधारा अचानक क्यों बदल रही है? क्या यह आकर्षण विचारधारा के परिवर्तन का है ? या फिर इस दल बदल के पीछे सत्ता और पावर में बने रहने की मंशा है? देश के आमजन में दल बदल को लेकर यह चर्चा चल रही है।

आमजन के मध्य कांग्रेस से बड़े पैमाने पर भाजपा में शामिल हो रहे नेताओं को लेकर यह भी कहा जाने लगा है की भाजपा का अभियान कांग्रेस मुक्त भारत है या कांग्रेस युक्त भाजपा। एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस से भाजपा में जाने बाद यह फैशन बढ़ गया है। देश में स्वर्गीय राम विलास पासवान को लेकर एक समय कहा जाता था की वह भाप जाते थै, अगली सत्ता किसकी बनने वाली और उस दल से गठबंधन कर लेते थै। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम तो विपक्षी नेताओं ने पलटुराम ही रख दिया है। ऐसे समय दलबदल को लेकर देश में खूब बहस जारी है। कांग्रेस मुक्त भारत का होना तो हाल फिलहाल मुमकिन हो ऐसा नहीं दिख रहा है, किंतु काग्रेस युक्त भाजपा साफ–साफ दिखाई देने लगी है। राजनीति में विचार अब गौण हो गए है। सत्ता और पावर महत्वपूर्ण दिखने लगे हैं शायद इस दल बदल का प्रमुख कारण भी यही है।
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नरेंद्र तिवारी पत्रकार
7; शंकरगली सेंधवा जिला बड़वानी मप्र
मोबा –9425089251

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