कृष्णा और राज कपूर का रीवा से मुंबई तक का सफर

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कृष्णा और राज कपूर का रीवा से मुंबई तक का सफर

 

 

 

 

 

 

 

 

आज राज कपूर जीवित होते तो 91 वर्ष के होते। आज मध्यप्रदेश सरकार ने कृष्णा कपूर और राज कपूर की शादी 12 मई 1946 को जिस घर में हुई थी, वहां ऑडिटोरियम और संस्कृति भवन बनाने के लिए एक आयोजन किया है, जिसमें राज कपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर पहुंच रहे हैं। रीवा में इस तरह के संस्कृति भवन एवं ऑडिटोरियम की आवश्यकता भी थी। उम्मीद है सरकार भारत की उदात्त संस्कृति को संकुचितता से बचाने का प्रयास करेगी।

 

 

 

 

 

 

 

कृष्णा कपूर के पिता करतारनाथ मल्होत्रा रीवा स्टेट पुलिस के आईजी थे और कौशल्या उनकी पहली पत्नी थीं, जिन्होंने प्रेमनाथ, राजेंद्रनाथ और कृष्णा कपूर को जन्म दिया। कौशल्या की मृत्यु के बाद दूसरे विवाह से उन्हें सात बच्चे हुए, जिनमें से एक नरेंद्रनाथ ने फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं कीं। उनकी बहन का विवाह प्रेम चोपड़ा से हुआ। प्रेमनाथ फौज की नौकरी त्याग देना चाहते थे और करतारनाथ ने अपने निकट के रिश्तेदार पृथ्वीराज कपूर से उन्हें समझाने को कहा। इसी सिलसिले में पृथ्वीराज ने कृष्णाजी को देखा और वे उन्हें बहू बनाने का विचार किया। राज कपूर बिना सूचना के रीवा पहुंचे और उन्होंने कृष्णाजी को सफेद साड़ी पहने सितार बजाते देखा तो मंत्रमुग्ध हो गए और बाईस वर्षीय राज कपूर का विवाह सोलह वर्षीय कृष्णाजी से रीवा में हो गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

उसी दौरान राज कपूर ने प्रेमनाथ को अपनी पहली फिल्म ‘आग’ में उन्हें समानांतर नायक की भूमिका का प्रस्ताव दिया। विवाह पश्चात ‘बारात के साथ पेशावर से आए कृष्णाजी के रिश्ते के भाई विश्वा मेहरा भी साथ हो लिए और 1946 से आज तक वे परिवार और स्टूडियो से जुड़े हैं। उन्हें सभी लोग मामाजी कहकर पुकारते हैं। आरके की फिल्मों के वे प्रोडक्शन कंट्रोलर हैं तथा उन्होंने कई फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं भी की हैं। ‘राम तेरी गंगा मैली’ में नायिका के शिशु जन्म के बाद बर्फीली घाटी में जो व्यक्ति थाली पीटता नज्जर आता है, वे मामाजी हैं। शादी के समय राज कपूर ने कृष्णाजी से कहा था कि वे सितार बजाना जारी रख सकती हैं। वे तबले पर संगत भी दे सकते हैं। कृष्णाजी अनन्य सुंदर महिला हैं और आज 85 वर्ष की आयु में भी उनके चेहरे पर दिव्य रोशनी है। चरित्र भूमिका करने वाले जगदीश सेठी भविष्यवक्ता भी थे। उन्होंने कहा था कि कृष्णाजी के प्रकाश और तपमय जीवन से कपूर परिवार आलोकित रहेगा और ‘जोकर’ के निर्माण के समय जगदीश सेठी ने कृष्णाजी से कहा था कि यह फिल्म असफल होगी परंतु, राज कपूर शीघ्र ही सफलतम फिल्म बनाएगा। यह बॉबी के बारे में भविष्यकथन था।

 

 

 

 

 

 

 

 

कृष्णाजी बॉबी के प्रदर्शन पूर्व शिडीं गई थीं और अपने से वादा किया कि वे ताउम्र हर माह कम से कम सौ रुपए शिडीं भेजने का जतन करेंगी। विगत माह जब मैं अजमेर जा रहा था तब उन्होंने मेरे हाथ दरगाह पर एक भेंट भिजवाई थीं। चेम्बुर स्थित धनवंतरि के मंदिर के हवन में मैं भी उनके साथ गया था और पंचधातु की धनवंतरि की मूर्ति उन्होंने मुझे भी दी है। राज कपूर की भव्य दावतों की सारी व्यवस्था कृष्णाजी करती रहीं और हर मेहमान का ध्यान वे ही रखती थीं। उनके बंगले में काम करने वालों के परिवारों के विवाह भी उन्होंने अपने बंगले में ही कराएं। अगर आप फिल्म उद्योग में लोगों से राज कपूर पर राय लें तो कुछ लोग आपको उनके खिलाफ भी मिलेंगे परंतु कृष्णाजी का सभी आदर करते हैं। उनके जीवन मूल्य ऐसे हैं कि राज कपूर की मृत्यु के बाद अपनी बेटी रीमा के विवाह अवसर पर अभिनेता राजकुमार की भेंट में किसी रजवाड़े का वहुमूल्य चांदी का डिनर सेट था, जिसे विवाह के बाद कृष्णाजी ने राजकुमार को यह कहकर लौटाया कि उनके परिवार के विवाह में शायद वे ऐसी कीमती भेंट नहीं दे पाएं।

 

 

 

 

 

 

 

अतः वे इसे वापस लेकर मात्र सौ रुपए दे दें। राज कपूर का पहला प्रेम तो फिल्म बनाना था- और इस प्रक्रिया में उन्हें कुछ नायिकाओं से प्रेम भी हुआ है गोयाकि वे उस हिरण की तरह थे, जो अपने भीतर से आती सुगंध को कहां-कहां खोजता रहता है। जीवन की आखिरी पड़ाव पर उन्हें समझ में आया कि यह सुगंध तो स्वयं उनकी कृष्णा थीं। बहरहाल, कृष्णाजी ने सभी तूफानों में अपनी गरिमा कायम रखी और अपने बच्चों को हथियार की तरह नहीं पाला कि वे पिता के खिलाफ हो जाएं वरन् उन्हें बेहतर इंसांन बनाने की चेष्टा की। रीवा की करतार- कौशल्या पुत्री ने मुंबई के फिल्म उद्योग में महारानी-सा आदर प्राप्त किया।

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