Rewa news, खाद की संकट से जूझ रहे रीवा और मऊगंज जिले के किसान
Rewa news, खाद की संकट से जूझ रहे रीवा और मऊगंज जिले के किसान।
रीवा और मऊगंज जिले में वर्तमान समय पर अधिकांश पैक्स सोसाइटी में डीएपी का डी उपलब्ध नहीं है बाजार से लोन लेने के लिए लोग बिवस हो रहे हैं देखा जाता है कि बाजार में खाद गुणवत्ता विहीन खुलेआम वितरित हो रही है नाम न छापने की शर्त पर लोगों और सूत्रों ने बताया कि रखड़ दानेदार जीवो कंपनी की खाद और इसके साथ सुपर फास्फेट खाद को बोरी में पलट कर 1846 डीएपी नाम से बिक्री की जा रही है जबकि राठौर सुपर फास्फेट का रेट₹1000 कुटल₹500 बोरी है डीएपी खाद का रेट शासन द्वारा 1350 बिक्री का है डीएपी खाद में शासन सर्वाधिक अनुदान देती है अगस्त माह से डीएपी खाद का अभाव है नकली डीएपी लेने के लिए अन्नदाता बिवस है वर्तमान समय पर रीवा जिले में मैग्मा दो स्थान गढ़ में दो स्थान चाकघाट सिरमौर रीवा में खाद तैयार कर डीएपी की खाली नई बोरी में भर कर सिलाई कर देते हैं सिलाई करने के बाद आसपास के छोटी दुकानों में भेज देते हैं ।
इसी तरह से मऊगंज जिले में भी कई जगह नकली डीएपी खाद तैयार कर बिक्री की जा रही है पैसे की लालसा में उन किसानों के साथ जिन्हें अन्नदाता की उपाधि मिली है देखा जाए तो भारी बरसात में फसल ताकते हैं कड़ाके की ठंड में खेत पर आवारा पशुओं और फसल की सुरक्षा करते हैं गर्मी में गहाई करते हैं और यदि इन्हें खाद बीज ना मिले तो उत्पादन कैसे बढ़ेगा आज यही कारण है कि किसानों को भोजन सुचार रूप से नहीं मिल पा रहा है क्योंकि जितनी लागत लगती है उतना लागत अनुसार लाभ प्राप्त नहीं होता है, तरवाड़ी सिंचाई का साधन का अधिकांश जगह अभाव है खाद का वितरण चाहे सरकारी सहकारी संस्थाएं हों और चाहे प्राइवेट लाइसेंस धारी विक्रेता हों सभी को पी ओ एस मशीन से वितरण करना पड़ता है किंतु प्राइवेट दुकानों में आधार कार्ड लेकर किसानों के नाम काल्पनिक चढ़ा दिए जाते हैं दुकानों में रेट सूची नहीं होती है जिससे कीमत की वास्तविक स्थिति स्पष्ट नहीं होती है और महंगें दाम पर खाद बेचीं जाती है।
बताया जाता है कि किसानों के साथ हो रही अन्याय में अकेले मुनाफाखोर व्यापारी और बिचौलिए ही नहीं बल्कि संबंधित विभाग के अधिकारी भी शामिल होते हैं जो अपनी निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए शासन के नियम निर्देशों के विपरीत कार्य करते हैं सत्ता पक्ष के लोग दो सरकार की वाह-वाही के लिए पार्टी के एजेंडा अनुसार काम करते हैं लेकिन विपक्ष भी यहां सुस्त है जिससे किसानों के साथ हो रहे अन्याय थम नहीं रहे हैं।
बताया जाता है कि अगस्त महीने से डीएपी की भारी कमी हो गई है और किसान नकली खाद खरीदने के लिए मजबूर हो रहे हैं। जिले के मनगवा, गगेव, गढ़, चाकघाट, सिरमौर और रीवा समेत मऊगंज क्षेत्र में खाद की असली बोरी में नकली डीएपी भरकर दुकानों पर भेजी जा रही है। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर यूरिया की कीमत भी ₹320 से ₹350 तक पहुंच गई है। इससे किसानों के लिए खाद की उपलब्धता और भी कठिन हो गई है, खासकर छोटे किसान इस खाद संकट से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। वे बारिश में अपनी फसल की देखभाल करते हैं और सर्दी में आवारा पशुओं से अपनी फसल की रक्षा करते हैं। लेकिन खाद और बीज की कमी के कारण उनका कृषि कार्य प्रभावित हो रहा है। बिना खाद के उत्पादन में वृद्धि संभव नहीं है, और किसानों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है।
इस बीच, निजी दुकानों में आधार कार्ड के जरिए काल्पनिक नामों पर खाद का वितरण हो रहा है। कई दुकानदार बिना रेट सूची चस्पा किए किसानों को खाद बेच रहे हैं, जिससे असली स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है। खाद की कालाबाजारी, मिलावटखोरी और घटिया उत्पादों की बिक्री से किसानों का शोषण हो रहा है, और प्रशासन के लोग इस पर चुप्पी साधे हुए है बताया जाता है कि रीवा जिले में प्रयागराज से अनधिकृत रूप से खाद लाने की भी खबरें सामने आ रही हैं, और छोटे वाहनों द्वारा इनकी आपूर्ति की जा रही है। इन वाहनों की जांच की आवश्यकता है, ताकि इस अवैध कारोबार पर रोक लगाई जा सके।
अक्टूबर से दिसंबर तक खाद की कालाबाजारी और मिलावटखोरी का सिलसिला व्यापक पैमाने पर जारी रहता है। कृषि विभाग को इस मामले में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और खाद की गुणवत्ता की जांच करवानी चाहिए। जिला और ब्लॉक स्तर पर कृषि विभाग के कर्मचारियों को इन समस्याओं को हल करने के लिए सख्ती से कदम उठाने चाहिए, किसान खाद और बीज की गुणवत्ता की जांच करवाने के लिए स्वतंत्र एजेंसियों से मदद ले सकते हैं। यदि खाद की सही आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, तो रीवा के किसान बेहतर उत्पादन कर सकेंगे। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां सिंचाई के साधन नहीं हैं, खाद की आपूर्ति और भी अधिक आवश्यक है। चना, मसूर, सरसों, मटर जैसे दलहनों के लिए खाद की कमी पूरी करना किसानों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, जिसे गंभीरता से हल करने की आवश्यकता है, यह समय प्रशासन, नेताओं और अधिकारियों के लिए इस संकट पर ध्यान देने का है, ताकि किसानों को उनका हक मिल सके और कृषि क्षेत्र में सुधार हो सके।