Rewa MP: मृतक के नाम पर हो गया बंटवारा न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान।
राजस्व न्यायालय की आड़ में छल और दस्तावेज़ी धोखाधड़ी की हुई शिकायत।
विराट वसुंधरा
रीवा। जिले की सिरमौर तहसील अंतर्गत राजस्व न्यायालय बैकुंठपुर में न्याय की मर्यादा को तार-तार करने वाला एक प्रकरण प्रकाश में आया है फरियादी अनिकेत दुबे द्वारा बताया गया कि, राजस्व बंटवारा प्रकरण क्रमांक आ 45/2024/25 में मृत व्यक्ति के नाम से न केवल फर्जी आवेदन प्रस्तुत किया गया, बल्कि पीठासीन अधिकारी, रीडर, पटवारी, चौकीदार और अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से आदेश भी पारित कर दिया गया यह घटना न केवल प्रशासनिक नैतिकता का पतन है, बल्कि ग्राम्य न्याय व्यवस्था की अस्थि-मज्जा को भी भीतर से झकझोर देती है। यह मामला ग्राम डेल्ही निवासी रावेंद्र प्रसाद के नाम से जुड़ा है, जिनका निधन 7 अगस्त 2023 को हो चुका था। किंतु आश्चर्य की पराकाष्ठा देखिए कि उनकी मृत्यु के छह माह बाद, दिनांक 5 फरवरी 2024 को उनके ही नाम से हस्ताक्षरयुक्त बंटवारा आवेदन प्रस्तुत कर दिया गया और उस पर नायब तहसीलदार न्यायालय से आदेश भी पारित हो गए।
छल, षड्यंत्र और पद का दुरुपयोग।
फरियादी ने बताया कि इस षड्यंत्र के सूत्रधार राजस्व विभाग रीवा के कर्मचारी उमाशंकर दुबे और विनोद प्रसाद दुबे। इन दोनों ने मृतक के फर्जी हस्ताक्षरों का सहारा लेकर न केवल बंटवारा प्रकरण को आगे बढ़ाया, बल्कि हल्का पटवारी, रीडर और चौकीदार तक को प्रभाव में लेकर पीठासीन अधिकारी से आदेश पारित करवा लिया। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बैकुंठपुर न्यायालय की सीमा में होने के बावजूद, गोविंदगढ़ तहसील की ऑर्डर शीट का उपयोग किया गया
इससे स्पष्ट होता है कि यह महज एक प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही नहीं, बल्कि गहरे स्तर पर सुनियोजित दस्तावेज़ी धोखाधड़ी है।
प्रशासनिक असंगतियों की परत-दर-परत पोल।
फरियादी ने दस्वावेज दिखाते हुए मीडिया को बताया कि पुल्ली और हस्ताक्षर की जालसाजी की गई है पटवारी को पुल्ली बनाने का आदेश 19 मार्च 2024 को मिला था किंतु पुल्ली पर मृतक के हस्ताक्षर 28 मार्च को पाए गए इसके साथ ही सहमति पत्र का भी फर्जीवाड़ा किया गया है जिस सहमतिपत्र का उपयोग किया गया, उसमें न नोटरी के स्पष्ट हस्ताक्षर हैं, न सील मोहर स्पष्ट हैं नोटरी में जिनके हस्ताक्षर गवाह के रूप में दर्शाए गए हैं, वे स्वयं पक्षकार हैं जो विधिक प्रक्रिया की उपेक्षा है इस प्रकरण न कोई अधिवक्ता नियुक्त हुआ न कोई बहस या सुनवाई की गई एकपक्षीय आदेश पारित किया जाना असंवैधानिकता को उजागर करता है।
उन्होंने कहा कि धारा 178 का दुरुपयोग किया गया बिना सहखाते के और बिना भूमिस्वामियों को सुने, ज़मीन का विभाजन कर दिया गया यह अधिकारों और उत्तराधिकार की भावना का सीधा उल्लंघन है इसके साथ ही आदेश पहले पारित किया गया और पंजीकरण बाद में कराया गया, जिससे न्याय की प्रमाणिकता संदिग्ध हो जाती है।
प्रशासन से मांग न्याय हो, न्याय जैसा।
पीड़ित पक्ष ने संपूर्ण प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने जिला प्रशासन रीवा से यह स्पष्ट अपेक्षा जताई है कि मृतक के नाम से पारित फर्जी आदेश को अविलंब निरस्त किया जाए और इस मामले में न्याय व्यवस्था को तार-तार करने वाले पीठासीन अधिकारी, पटवारी, रीडर, चौकीदार और आवेदकों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए समस्त प्रकरण की निष्पक्ष विभागीय जांच हो और दोषियों को तत्काल निलंबित कर न्याय की गरिमा बहाल की जाए।
न्याय और संवैधानिक मर्यादा हुई तार-तार।
यह घटना केवल एक फर्जी बंटवारा नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था का आईना है जो प्रभाव और पद के आगे नैतिकता और संवैधानिक मर्यादा को गिरवी रख चुकी है। जब मृतकों की चुप्पी को भी हस्ताक्षर मान लिया जाए, तो यह संकेत है कि न्याय जीवित नहीं, केवल दिखावा है। इसलिए यह आवश्यक है कि शासन न केवल इस प्रकरण में दोषियों को दंडित करे, बल्कि उन मृतकों के मौन को भी न्याय दिलाए जिनके नाम पर जालसाजी की गई न्याय और संवैधानिक मर्यादा को तारतार करने वाले न्याय यदि जीवित है, तो यह उसकी अग्नि परीक्षा है।