रीवा

Rewa MP: पत्रकारों के खिलाफ फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में रीवा न्यायालय में सुनाया ऐतिहासिक फैसला।

Rewa MP: पत्रकारों के खिलाफ फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में रीवा न्यायालय में सुनाया ऐतिहासिक फैसला।

न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से षड्यंत्र, झूठा आरोप झूठे गवाह, पुलिसिया मनमानी हुई बेनकाब।

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विराट वसुंधरा
रीवा। जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में बीते 21 मार्च 2022 को मारपीट की घटना की खबर रीवा के कुछ पत्रकारों द्वारा समाचार पत्र में प्रकाशित की गई थी उन्ही पत्रकारों द्वारा पुलिस की नाकामियों की खबरें भी आए दिन प्रकाशित की जाती थी पत्रकार अमर मिश्रा पत्रकार उमेश सिंह और प्रद्युमन शुक्ला न सिर्फ पुलिस के लिए किरकिरी बने हुए थे बल्कि उन कथित पत्रकारों के लिए भी मुसीबत बनकर खड़े थे जो पत्रकारिता का चोला ओढ़कर अवैध उगाही करते हैं और पुलिस का खास बनकर पत्रकारिता करते हैं ऐसे पत्रकारों ने उस महिला को खोज निकाला जो उनके षड्यंत्र का हिस्सा बन सके और ऐसा हुआ भी पुलिस के कुछ लोग भी ऐसे अवसर की तलाश में घात लगाए बैठे थे पत्रकारों के खिलाफ महिला को शिकायत करने के लिए तैयार किया गया महिला ने तीन पत्रकारों के खिलाफ गैंगरेप की शिकायत सिविल लाइन थाना में दर्ज कराई और पुलिस ने उस झूठी शिकायत पर तीनों पत्रकारों के खिलाफ गैंगरेप और पास्को एक्ट के तहत मामला दर्ज कर एक पत्रकार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

न्यायालय ने किया तीनों पत्रकारों को दोष मुक्त।

इस हाई प्रोफाइल मामले में उच्च न्यायालय ने दो पत्रकारों को अग्रिम जमानत दे दी थी लेकिन एक पत्रकार तीन महीने तक रीवा केन्द्रीय जेल में निर्दोष होते हुए भी बंद रहा आरोपी पक्ष की ओर से अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी और उसके सहयोगियों ने पैरवी की और 12 जुलाई 2025 को रीवा न्यायालय ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीनों पत्रकारों को दोषमुक्त कर दिया रीवा न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल झूठे केस में फंसाए गए पत्रकारों के लिए बड़ी राहत है, बल्कि पुलिस-प्रशासन की मनमानी और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई पर भी एक तरह से करारा तमाचा है। तो वहीं देश में चौथे स्तंभ मीडिया का बड़ा सम्मान है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी पत्रकारिता का नकाब ओढ़कर गंदगी कर रहे हैं जो न सिर्फ पत्रकारिता को कलंकित कर रहे हैं बल्कि अपनी प्रायोजित खबरों से किसी को भी अपराधी घोषित कर देते हैं उनकी मीडिया ट्रायल देख कर लगता है कि अब इस केस में उनके बताए अनुसार आरोपी को सीधे सूली फांसी पर लटका देना चाहिए और ऐसा उस समय कई यूट्यूबरों और चैनल के पत्रकारों ने भी किया था जिससे कि पुलिस पर दबाव बनाकर झूठा मामला दर्ज कराया जा सके और ऐसा पुलिस ने किया भी।

पुलिस की भूमिका पर सवाल।

पत्रकारों के खिलाफ सुनियोजित तरीके से की गई झूठी शिकायत का मामला मीडिया ट्रायल में चल रहा था जो प्रदेश भर में चर्चा का विषय बन गया रीवा जिले के तत्कालीन पुलिस कप्तान नवनीत भसीन और सिविल लाइन थाने के थाना प्रभारी हितेंद्र नाथ शर्मा के कार्यकाल में बिना कुछ सोचे समझे जांच पड़ताल किए सिर्फ आरोप के आधार पर अपराध क्र. 258/22 , धारा 376 (2) 450,506 भा . दा. वी. का फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया था जबकि पत्रकारों के लिए गृह मंत्रालय का आदेश है कि किसी भी पत्रकार के खिलाफ यदि मामला दर्ज होता है तो उसकी जांच विवेचना पुलिस अधीक्षक और डीआईजी रेंज के अधिकारी स्वयं करेंगे क्योंकि पत्रकारों के खिलाफ अक्सर षडयंत्र पूर्वक शिकायतें होती हैं हालांकि बाद में पुलिस ने जांच किया और अपनी जांच में तीनों पत्रकारों को निर्दोष पाया लेकिन मामला न्यायालय में विचाराधीन था और न्यायालय में इस झूठे प्रकरण ने दम तोड़ दिया तीनों पत्रकार दोष मुक्त हो गए। इस केस में पुलिस प्रशासन द्वारा पॉक्सो जैसे संवेदनशील कानून का दुरुपयोग कर, पत्रकारों को फंसाने का यह प्रयास पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

झूठे प्रकरण से पत्रकारों की गई इज्जत।

पत्रकार अमर मिश्रा उमेश सिंह और प्रदुमन शुक्ला के खिलाफ जब पुलिस ने झूठी शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया तीनों पत्रकारों से विरोध रखने वाले कुछ कथित पत्रकारों ने ऐसी खबर चलाई की आरोपी पत्रकार कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं बचे उनका मकसद सिर्फ यह था कि किसी तरह से इन्हें सजा दिलवाया जाए विरोधियों ने इसके लिए एक महिला को मोहरा बनाया झूठे गवाह तैयार किए और अपने गंदे मंसूबों को कामयाब करने की हर कोशिश की लेकिन कहते हैं देर जरूर है लेकिन अंधेर नहीं है इस मामले में रीवा न्यायालय से हुए ऐतिहासिक फैसले ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। लेकिन सवाल यह उठता है कि अब पत्रकारों की खोई हुई इज्जत कैसे वापस होगी इस मामले में जो भी षड्यंत्रकारी थे उनका चेहरा कैसे सामने आएगा हालांकि मध्य प्रदेश मीडिया संघ द्वारा प्रेस काउंसिल आफ इंडिया और मुख्य न्यायाधीश से मांग की जाएगी की फरियादिया का नार्को टेस्ट कराकर षड्यंत्र कारियों का चेहरा सामने लाया जाए जिससे कि आने वाले भविष्य में ऐसे अपराध करने वाले मीडिया में छुपे लोगों को न्यायालय से दंड दिलाया जा सके और मीडिया से बहिष्कृत कराया जा सके।

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