Rewa news, बिना पक्षकार को सुने नैसर्गिक न्याय और सिद्धांत के विपरीत हो रही धारा 89 की सुनवाई: शिवानंद द्विवेदी।
Rewa news, बिना पक्षकार को सुने नैसर्गिक न्याय और सिद्धांत के विपरीत हो रही धारा 89 की सुनवाई: शिवानंद द्विवेदी।
रीवा । यह जानकर हैरानी होनी चाहिए कि मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993-94 की धारा 89, 40 और 92 की कार्यवाही का जो अधिकार अब मुख्य कार्यपालन अधिकारी समस्त जिला पंचायत मध्य प्रदेश को दिया गया है उसमें यदि रीवा जिले की बात की जाए तो यहां बिना पक्षकारों को सुने ही धारा 89 के आदेश पारित किया जा रहे हैं धारा 89 की सुनवाई सरकार ने कलेक्टर से हटाकर सीईओ जिला पंचायत को सौंपी है अब नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर बिना पक्षकार को सुने पारित हो रहे हैं धारा 89 के आदेश? जिसको लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने प्रश्न खड़ा करते हुए आवाज उठाई है।
गौरतलब है की धारा 89 की सुनवाई का अधिकार कलेक्टर समस्त मध्य प्रदेश से हटाकर पिछली शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत समस्त को दे दिया था। धारा 89 की सुनवाई एक अर्ध न्यायिक व्यवस्था है जहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी को सिविल प्रक्रिया संहिता में सन्निहित एक सिविल जज की कुछ शक्तियां दी गई है। इस सुनवाई के दौरान यदि वह चाहे तो जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है और दस्तावेज दबाने वालों अथवा गबन की राशि न जमा करने वालों पर सिविल जेल की कार्यवाही भी करवा सकता है। लेकिन इसके बावजूद भी धारा 89 की सुनवाई एक औपचारिकता ही सिद्ध हो रही है। इसका बड़ा कारण यह है की मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एक कार्यपालक मजिस्ट्रेट की भूमिका निभाता है जिससे उसके सिविल जज के रूप में प्रस्तुत होने पर विभागीय अधिकारी और कर्मचारी उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं जिसका नतीजा यह हो रहा है की धारा 89 की सुनवाई के दौरान जिन पंचायतों में गबन दुर्वियोजन प्रभक्षण अनियमितता और भ्रष्टाचार पाया जाने के बाद धारा 89 की सुनवाईयां की जा रही है वहां नोटिस पर नोटिस के बावजूद भी न तो सरपंच सचिव न ही इंजीनियर सहायक यंत्री अथवा न ही कार्यपालन यंत्री सुनवाई में उपस्थित हो पा रहे हैं क्योंकि रीवा जिले में धारा 89 की सुनवाई के प्रकरण की ऑफिसर इंचार्ज सहायक परियोजना अधिकारी स्मिता खरे को बनाया गया है जो उनके द्वारा हर बार यही जानकारी दी जाती है कि नोटिस तामील नहीं हो रही है।
बड़ा सवाल: क्या बिना दोनों पक्षों को नोटिस तामील किए बिना सुनवाई किया जाना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के पक्ष में है?
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नोटिस तामील किए जाने का जिम्मा किसके सर पर है? धारा 40/92 सेक्शन के मौजूद बाबू नरेंद्र तिवारी एवं ब्रह्मानंद शर्मा द्वारा बताया जाता है कि सीईओ जनपद पंचायत को हर बार नोटिस दी जाती है लेकिन वह तामील ही नहीं करवाते हैं। हर बार यही समस्या आ रही है कि न तो सरपंच सचिव को नोटिस तामील हो पा रही है और शिकायतकर्ता पक्ष को तो कभी भी सुनवाई की जानकारी होती ही नहीं है तो फिर धारा 89 की सुनवाई होकर अंतिम आदेश किस आधार पर पारित हो रहे हैं यह स्वय सवाल के घेरे में है? जाहिर है धारा 89 की सुनवाई के दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों को पर्याप्त सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर ही अंतिम निर्णय पारित किया जाना चाहिए लेकिन जहां दूसरे पक्ष सरपंच सचिव इंजीनियर का तो पक्ष भरपूर ढंग से सुना जाता है और अधिक वसूली आने पर उन्हें कई बार जांच करवाया जाकर वसूली को कम कर दिया जाता है अथवा पूर्णतया विलुप्त कर दिया जाता है वहीं दूसरी तरफ शिकायतकर्ता को सुनवाई के दौरान न तो बुलाया जाता है और न ही उसे सुना जाता है जिससे पूरी धारा 89 की सुनवाई की प्रक्रिया ही प्रश्न के दायरे में खड़ी हो गई है।
आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने धारा 89 की सुनवाई पर उठाए सवाल?
इसी बात को लेकर जब तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने धारा 89 की सुनवाई की शक्ति कलेक्टर से हटकर जिला पंचायत सीईओ को दी थी तो सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने उसी समय प्रश्न खड़ा किया था कि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत होगा क्योंकि एक कार्यपालिक अधिकारी सीईओ जिला पंचायत जो इस विभाग से संबंधित है न्यायपालिका की भूमिका नहीं निभा पाएगा और उसमें कई प्रकार की बाधाएं आएगी और इसमें पक्षपात होने की पूरी संभावना बनी रहेगी जिसका नतीजा अभी भी देखने को मिल रहा है और संदेह काफी हद तक सही साबित हो रहे हैं और मात्र सरपंच सचिव एवं पंचायत प्रतिनिधियों को ही सुनवाई के दौरान सुना जा रहा है और उनके मुताबिक वसूली को या कि विलुप्त किया जा रहा है या कि बिल्कुल कम कर दिया जाता है एवं शिकायतकर्ता को कभी भी ढंग से नहीं सुना जा रहा है न ही उसे नोटिस तामील कर मौके पर बुलाया जा रहा है जिसकी वजह से न तो मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा और न ही शासन का पक्ष सही ढंग से रख पा रहे हैं और मात्र एक पक्षीय सुनवाई होकर मामलों का निराकरण किया जा रहा है जो की काफी चिंताजनक है।
सामाजिक कार्यकर्ता की मांग- सुनवाई में दोनों पक्षों को सुना जाए।
सूचना के अधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने मामले पर एक बार पुनः आवाज उठाई है और मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा को इसमें संज्ञान लेने के लिए लिखा है और कहा है कि अनिवार्य तौर पर शिकायतकर्ताओं को सुनवाई के दौरान सुना जाए एवं जहां संदेह की स्थिति हो स्वयं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा मामले पर संज्ञान लेकर मौके पर पहुंचे और जांच करें कि आखिर जिन कामों की वसूली विलुप्त की जा रही अथवा कम की जा रही है उसमें कितनी सच्चाई है।