Rewa News: BSP का टिकट घोषित होने के बाद रीवा लोकसभा की राजनीति में जानिए कैसे बनेंगे समीकरण।
Rewa News: BSP का टिकट घोषित होते रीवा लोकसभा की राजनीति में जानिए कैसे बनेंगे समीकरण।
रीवा। लोकसभा चुनाव प्रचार धीरे धीरे गति पकड़ने लगा है हालांकि बीते विधानसभा चुनाव के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए भी प्रचार मोड पर रही है और भाजपा रीवा में काफी मजबूत स्थिति में है लेकिन बीते चार दिनों से कांग्रेस की लोकसभा प्रत्याशी नीलम मिश्रा को टिकट मिलने के बाद राजनीतिक समीकरण तेजी से कांग्रेस के पक्ष में बनते दिखाई दिए हैं तो वहीं रीवा की चुनावी रणभूमि में एक और योद्धा उतर पड़े हैं जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था रीवा में तीसरी जनाधार वाली पार्टी बहुजन समाज पार्टी है हालांकि बसपा लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पराजित हो रही है बावजूद इसके उसका वोट प्रतिशत चुनाव परिणाम बदलने के लिए काफी है।
बसपा का पटेल वर्ग पर भरोसा।
बीते 28 मार्च से रीवा संसदीय क्षेत्र में नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है। भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने थे अब आज से तीसरी ताकत भी सामने आ चुकी है और बहुजन समाज पार्टी ने पटेल वर्ग पर एक बार फिर भरोसा जताते हुए अभिषेक पटेल को रीवा लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पटेल वर्ग से हटकर क्षत्रिय य किसी अन्य वर्ग को टिकट दे सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ देखा जाए तो लोकसभा टिकट की दौड़ में पटेल वर्ग से बुद्धसेन पटेल और यज्ञ सेन पटेल का नाम चल रहा था लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने नया चेहरा रीवा लोकसभा में देकर सबको चौका दिया है बता दें कि रीवा लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी से प्रत्याशी बनाए गए अभिषेक पटेल मास्टर बुद्ध सेन पटेल के पुत्र हैं।
ऐसी है अभिषेक पटेल की राजनीतिक पृष्ठभूमि।
रीवा जिले के चर्चित समाजसेवी मास्टर बुद्धसेन पटेल के पुत्र अभिषेक पटेल वर्ष 2018 में अपना दल के प्रत्यासी के रूप में विधानसभा चुनाव देवतालाब विधानसभा क्षेत्र से लड़ चुके हैं इसके साथ ही अभिषेक पटेल पिछले कुछ सालों से संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े हैं और दिल्ली व स्थानीय स्तर के किसान आंदोलनों में सक्रियता के साथ भाग ले रहे थे अभिषेक पटेल के पास किसानों की एक अच्छी टीम है बसपा ने जातिगत जनसंख्या को देखते हुए एक बार फिर पटेल प्रत्याशी को मैदान पर उतारा है रीवा में ब्राह्मण वर्ग के बाद पटेल वर्ग से सर्वाधिक मतदाता है इससे पहले वर्ष 1991में भीम सिंह पटेल इसके बाद बुद्धसेन पटेल और फिर देवराज सिंह पटेल के रूप तीन बार बसपा ने रीवा लोकसभा जीता है लेकिन पिछड़ा वर्ग में भाजपा की सेंधमारी के चलते बसपा बैक फुट पर चली गई और लगातार लोकसभा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अधिकांश विधानसभा क्षेत्र में तीसरे पायदान पर खिसक गई है।
भाजपा कांग्रेस के मुकाबले बसपा की स्थिति।
बीते कुछ वर्षों में बहुजन समाज पार्टी में विधायक और सांसद रहे नेताओं द्वारा पार्टी को छोड़कर दूसरे दलों में जाना और फिर ओबीसी वर्ग में भाजपा की गहरी पैठ के चलते बहुजन समाज पार्टी इस लोकसभा चुनाव में क्या कमाल कर पाएगी इसमें कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा लेकिन यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच हो रहे चुनावी दंगल को त्रिकोणी लड़ाई में बदलने की बहुजन समाज पार्टी भरसक प्रयास करेगी और लोकसभा चुनाव को किस मुकाम तक बसपा पहुंचाएगी यह आने वाले कुछ दिनों में समझ आने लगेगा।
ऐसे बनेंगे राजनीतिक समीकरण।
देखा जाए तो बहुजन समाज पार्टी का जनाधार ओबीसी वर्ग को टिकट देने से बढ़ जाता था लेकिन यहां अब राजनीति कुछ दूसरे तरीके की हो चली है बीते लोकसभा विधानसभा चुनाव में अगर नजर डालें तो आदिवासी वर्ग भाजपा की तरफ बहुतायत में गया था तो वहीं वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी नीलम मिश्रा के पति अभय मिश्रा भी आदिवासी वर्ग और कुशवाहा समाज में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं इसके साथ ही भाजपा के जीत का ओबीसी वर्ग सबसे मजबूत कड़ी रही है ऐसे में ओबीसी वर्ग से लोकसभा प्रत्याशी बनाया जाना कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए कमजोर कड़ी साबित हो सकती है हालांकि रीवा लोकसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला देखा जा रहा है और भाजपा के मुकाबले कांग्रेस बीते कुछ दिनों से मुकाबले में देखी जा रही है रीवा लोकसभा के राजनीतिक महाभारत में एक तरफ जहां भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के सारथी मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल हैं तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की प्रत्याशी नीलम मिश्रा के सारथी उनके जीवनसाथी सेमरिया विधायक अभय मिश्रा है कांग्रेस और भाजपा के बीच फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा के लोग जनार्दन मिश्रा के लिए वोट मांगेंगे और अभय मिश्रा स्वयं अपने लिए वोट मांग रहे हैं इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की हारी हुई बाजी जीतने वाले बाजीगरों में अभय मिश्रा का कोई सानी नहीं है। अगले कुछ दिनों में ही रीवा की राजनीति किस ओर जा रही है स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेगा।