Rewa news, लाखों वृक्षों की कटाई, कंक्रीट और उत्खनन से बिगड़ा प्रकृति का वातावरण, अभी 45 डिग्री तापमान है आने वाले वर्षों में 55 भी होगा।

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Rewa news, लाखों वृक्षों की कटाई, कंक्रीट और उत्खनन से बिगड़ा प्रकृति का वातावरण, अभी 45 डिग्री तापमान है आने वाले वर्षों में 55 भी होगा।

 

विराट वसुंधरा/ संजय पाण्डेय, गढ़ 
रीवा। जिले में अगर बीते 15 वर्षों को याद किया जाए तो प्रकृति का स्वरूप कुछ और था अच्छी बरसात होती थी गर्मी होने के बावजूद भी ऐसी तपन नहीं होती थी जो अब इस समय जीव जंतु और जनमानस को भोगना पड़ रहा है 15 वर्षों के अंदर लाखों वृक्ष काट दिए गए नदी तालाबों को संरक्षित नहीं किया गया जिसके कारण पर्यावरण में बदलाव हुआ जो अब बड़ी मुसीबत के रूप में सामने आ रही है देखा जाए तो पर्यावरण की रक्षा हेतु वृक्षों की अति आवश्यकता सनातन धर्म में आदिकाल से थी जब से धर्म का विधान बना तो वृक्षों को विशेष धार्मिक महत्व दिया गया जैसे तुलसी का वृक्ष नीम पीपल बरगद आम गूलर पलाश महुआ इन वृक्षों की धर्म के अनुसार समय-समय पर पूजा पाठ या अपने पूर्वजों की शांति और ग्रहों की शांति हेतु इन वृक्षों की पूजा का विधान है जहां तुलसी का तो विशेष धार्मिक महत्व है वहीं पर पीपल का भी विशेष महत्व बरगद आम का तो इतना महत्व है की सनातन धर्म में आम के वृक्ष लगाने के बाद जब तक आम के वृक्ष का व्रतबंध नहीं हो जाता था तब तक आम के फल नहीं खाते थे वर्तमान समय पर औषधि और धार्मिक औषधि में नीम महुआ आदि का भी विधान है आज जंगल वीरान हो रहे हैं एक समय ऐसा भी था कि नेशनल हाईवे सड़क के किनारे लाइन से अनगिनत बड़े वृक्ष खासकर आम के लगे रहते थे जिनसे फल तो मिलते ही थे राहगीरों को छाया भी मिलती थी पर्यावरण भी बढ़िया होता था इसके साथ ही लोगों के घरों के आस- पास वृक्ष लगाए जाते थे गांव के बगीचों में विशाल वृक्ष हुआ करते थे इन्हीं वर्षों के चलते शीतलता का वातावरण होता था किंतु आज गगन चुंबी कंक्रीट इमारत सड़कें पर्यावरण को लील गई जितना विकास हुआ उससे कई गुना हरे वृक्षों को छति पहुंचाई गई।

काटे गए लाखों वृक्षों की नहीं हुई भरपाई

अनुमानित आंकड़े के अनुसार केवल एक रीवा जिले के जो आंकड़े प्राप्त हुए हैं उसने सर्वाधिक हनुमाना तहसील मऊगंज तहसील नईगढ़ी तहसील त्योंथर, सिरमौर मनगवां गुढ़ तहसील क्षेत्रों के शासकीय जंगलों में सर्वाधिक महुआ और आम के पेड़ों की छति हुई है जहां इन तहसीलों में मिलकर 15 लाख पुराने आम महुआ जामुन पीपल बरगद के पेड़ काटे जा चुके हैं वही शमी के वृक्षों पुराने वृक्ष जिनकी संख्या हजारों में थी विलुप्त हो चुके हैं ऐसे वृक्षों में आम या अन्य प्रजाति के वृक्ष लाखों में थे किंतु वर्तमान समय में सड़क किनारे वृक्ष देखने को नहीं मिल रहे हैं सड़के फोरलेन सिक्स लेन बनाई गई लेकिन वृक्षारोपण नहीं किया गया जबकि सरकार द्वारा प्रतिवर्ष रीवा जिले के विभिन्न कार्यालयों में वृक्षारोपण होता है लेकिन वृक्षारोपण के बाद उन वृक्षों का रखरखाव नहीं किया जाता काटे गए लाखों वृक्षों की भरपाई किसी भी रूप में नहीं की गई।

घरों की सुंदरता के लिए कांटे गए वृक्ष।

एक समय ऐसा था कि घरों में आसपास बड़े वृक्ष हुआ करते थे लेकिन तब कच्चे घरों और बाग बगीचे का युग था समय जैसे जैसे बदलता गया कंक्रीट के युग में घरों के आसपास वृक्षों को काट दिया गया गांव के बगीचों को संरक्षित नहीं किया गया रीवा और मऊगंज जिले में 15 वर्ष पहले जिस तरह से पर्यावरण की शुद्धता थी भारी भरकम विशालकाय वृक्ष सभी गांव में और सड़क के किनारे हुआ करते थे अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं हर जगह चमचमाती सड़क और पक्के मकान ही देखने को मिल रहे है पुराने बगीचे संरक्षित नहीं किए गए जो वीरान हो गए लोग गांव छोड़कर जिस तरह से शहर की ओर पलायन किये उसी तरह से गांव भी वृक्ष विहीन हो गए घरों के आसपास की सुंदरता के लिए बड़े वृक्षों को काटकर गमले में फूल पौधे लगाने का शौक बढ़ गया प्रकृति का दोहन ऐसे हुआ कि अब गर्मी के मौसम में वृक्ष के नीचे और आसपास की शीतलता को महसूस भी नहीं किया जा सकता।

नदी तालाब झील बावली कुआं हो रहे विलुप्त।

15 वर्ष पहले रीवा जिले में नदियों तालाबों झील बावली कुआं में काफी मात्रा में पानी हुआ करता था लोग इन्हीं जल स्रोतों से जल की पूर्ति करते थे खेती-बाड़ी भी करते थे लेकिन अब ऐसा समय आ गया है कि अगर बाणसागर नहर का पानी एक सीजन के लिए भी बंद कर दिया जाए तो रीवा और मऊगंज जिले में जलस्तर ढूंढने से नहीं मिलेगा प्राकृतिक संसाधनों की छति मनुष्य और पशु पक्षी जीव जंतु के लिए काफी घातक साबित हो रही है देखा जाए तो वृक्षों की जड़ों के माध्यम से ही जल संवर्धन का काम होता था साथ ही जल संवर्धन का कार्य तालाब नदी कूप का जल स्तर बढ़िया रहता था अब बोर के माध्यम से पृथ्वी का पानी खींचा जा सकता है किंतु पानी का जल बढ़ाया नहीं जा सकता उदाहरण के लिए रीवा जिले में निर्मित नदियों के बालू और पत्थर के खनन के कारण जलस्तर घटना जा रहा है डैम बनाने के बाद भी पानी का रुकाव उस तरह से नहीं है जितनी जरूरत है नदियों तालाबों के आसपास जो बगीचे हैं जलस्तर घटने के कारण सूख गए हैं नदी तालाब झील बावली कुआं का स्वरूप धीरे-धीरे सब विलुप्त होता जा रहे हैं।

55- और 60 डिग्री तक पहुंच जाएगा तापमान।

वृक्षारोपण करके सुंदर वृक्ष लगाकर मन मोहक वातावरण बनाया जा सकता है लेकिन प्राकृतिक वातावरण नहीं बनाया जा सकता वृक्षों को काटने और नदी तालाब के उत्खनन य नष्ट करने से हुई छति की पूर्ति करने पर्यावरण को संतुलित करने सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए नहीं तो अभी गर्मी के मौसम में तापमान 45 डिग्री तक चल रहा है आने वाले वर्षों में 55 और 60 डिग्री तक तापमान पहुंच जाएगा भीषण गर्मी और जल संकट से त्राहिमाम मचेगा और सिर्फ ऊंची इमारतें और कंक्रीट सड़कें रह जाएंगी उनका उपभोग करने वाले का क्या हाल होगा भगवान ही मालिक है।

 

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