शराब ने उजाड़ा सुहाग,अब बेटे को तो बचा लो सरकार शराब से तबाह हुई मां ने सुनाई दास्तां।
शराब ने उजाड़ा सुहाग,अब बेटे को तो बचा लो सरकार
शराब से तबाह हुई मां ने सुनाई दास्तां।
सुभाष तिवारी ब्यूरो सीधी:-
अगर शराब की बिक्री बंद हो जाए तो सरकार को मुझ जैसी अभागी हजारों या कहे लाखो पत्नियों और मांओ की दुआएं लगेगी।जो खोया तो खोया अब भावी पीढ़ी तो दलदल मे नहीं फंसेगी।परिवारों का सुख चैन नहीं छिनेगा।खाली पेट सो जाना अच्छा पर परिवार मे कोई शराब का लती न हो जाए।यह दर्द है सीधी के कोटहा मोहाल्ला की रजमतिया (परिवर्तित नाम) का।जो शराब की लत के चलते पति को पहले ही खो चुकी हैं और अब बड़ा बेटा भी उसी रास्ते पर चल पड़ा है।न पति के रहते आराम मिला और न ही बेटे की हरकतों की वजह से सुकुन मिल रहा है।सरकार शराबबंदी लागू कर उनके बेटे को तो बचा ही सकती हैं।
रजमतिया (परिवर्तित नाम) के द्वारा कुरेदें जाने पर वे फफक पड़ी।बताया कि शादी के कुछ महीनों बाद ही पति रामभरोसे (परिवर्तित नाम)शराब के नशे मे घर आने लगे।जितना समझाया उतना नशे की मात्रा बढ़ती ही गई।इसी बीच परिवार के लालन पालन के लिए अपने ही मोहल्ले मे चाय की दुकान खोल ली।लेकिन जो आमदनी होती पति शाम को शराब पर उड़ा देता।कर्ई बार तो घर पर खाने के लाले पड़ जाते फिर भी पति नशे पर ही घर लौटते।फिर थोड़ी सी ढिठाई कर दुकान से बचत के लिए कुछ पैसे वे निकालने लगी।सोचा बुरे वक्त पर काम आएगा।पर उनका तो जैसा नसीब ही रुठा हुआ था।शराब का विरोध करने पर नौबत मारपीट की आ जाती थी।पति गालियां देते हुए पूरे मोहल्ले को सिर पर उठा लेते थे।
आखों के सामने तबाह हो गई जिंदगी:-
रजमतिया (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि शराब की लत ऐसी चीज है जिससे परिवार के दुखों का कभी अंत नहीं होता हैं।ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।शराब की लत और अत्यधिक मात्रा मे सेवन करने के कारण वे अक्सर बीमार रहने लगे।ऐसा भी वक्त आया जब मले की आवाज ही चली गई।खाना पीना भी मुश्किल से हो पाता था।लेकिन शराब है कि छूट नहीं रही थी।सुबह उठते से ही ठेके पर जो भी बची जमा पूंजी थी उससे इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि शराब छोड़ने को तैयार नहीं हुए।दो छोटे बच्चों को छोड़कर वे बीमारी हालत मे ही चल बसे।आंखों के सामने जिंदगी जैसे लुट गई।किसी तरह बेटो को बड़ा किया और सोचा कि हाथ बटाएंगे। तो आगे की जिंदगी आसान होगी।पर लिखा तो कुछ और ही है।
पिता की राह पर बेटा:-
रजमतिया (परिवर्तित नाम)के दो बेटे है।बड़ा बेटा शिव शरीर से निशक्त है।वह भी शराब का आदी हो चुका है।जब मन करता है तो दुकान खोल लेता है और जब मर्जी तो कर्ई दिनों घर मे ही पड़ा रहता है।कर्ई बार तो खाने के लाले तक पड़ जाते है।शिव के तीन बेटे है जो ज्यादातर उसके छोटे भाई राकेश के पास ही खेलते हैं।राकेश ने अपने पिता की दुकान संभाली थी।वह मां का सहारा बना और किसी तरह परिवार की देखरेख कर रहा है।राकेश के भी दो बेटे है जो चचेरे भाईयों के साथ निजी स्कूल मे पढ़ते हैं।वकौल राकेश शराब ने उसके परिवार पर गहरा असर किया है।पहले पिता चले गए और अब भाई उसी राह पर है।पिता की आदत से दोनो भाई ठीक से पढ़ भी नहीं सके,ऐसे मे राकेश ने फैसला लिया है कि वह अपने बच्चों के साथ भाई के बच्चों को बेहतर तालीम देने की कोशिश करेगा।