दिल तो दिल घर भी जले ‘घर के चिराग’ से नशे के चलते जवान बेटों को खोने व उनके अपराध की राह पर चले जाने वाले परिवारो की जानिए व्यथा।
दिल तो दिल घर भी जले ‘घर के चिराग’ से नशे के चलते जवान बेटों को खोने व उनके अपराध की राह पर चले जाने वाले परिवारो की जानिए व्यथा।
सुभाष तिवारी ब्यूरो सीधी:-
सूरेवाला का मंगल हो या फेफाना के चक चार केएनएन का किशोर हो,सबके परिवारों का दर्द एक जैसा ही है।बस फर्क इतना है कि कही घर के चिराग ने दिल जलाया तो कही पूरा घर ही जलाकर खाक कर दिया।आंसू व सदमा लिए मां-बाप और परिजन इस दर्द के साथ जिंदगी काट रहे है कि आखिर बच्चों को कहां,कब यह रोग लगा,क्या उनकी परवरिश मे कोई कमी रह गई, सरकार-पुलिस नशे के सौदागरों पर लगाम क्यों नहीं लगा पाती हैं।
जिले मे जवानी की दहलीज पर कदम रखते लड़के चिट्टे मेडिकेटेड नशे के आदी के दलदल मे फंसकर बर्बाद हो रहे है।इन नशों का खतरा जिस दरवाजे पर दस्तक दे चुका है, वहां दिल और घर दोनों ही जल रहे है।पुलिस कार्यवाही की संख्या व नशे की बरामदगी का ग्राफ हर साल बढ़ता जा रहा है।यह इस बात का इशारा भी है कि मांग और आपूर्ति निरंतर बढ़ती जा रही हैं।ऐसे मे सवाल उठता है कि आखिर क्यों बाहर से आ रहे चिट्टे मेडिकेटेड नशे आदि पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही हैं।
चिट्टे ने बुझाया चिराग तो छिपाया नहीं:-
सूरेवाला के पचास वर्षीय प्रेम सिंह व उनकी पत्नी लालो बाई उन मां-बाप मे शामिल है जो बेटे की गलतियों व नशे की लत को छिपाने मे यकीन नहीं रखते।ऐसा इसलिए करते हैं ताकि किसी और का बच्चा नशे के दलदल मे नहीं फंसे।23फरवरी2020 को प्रेम सिंह के बीस वर्षीय पुत्र मंगल सिंह की चिट्टे की ओवरडोज से मौत हो गई थी।इसे छिपाने की बजाय प्रेम सिंह ग्रामीणों के साथ मिलकर नशे की समस्या को उठाते हुए उन्होंने सब को बताया था कि उनका बच्चा नशे की लत का शिकार हो गया।मगर पुलिस व प्रशासन की नाकामी की वजह से गांव-ढाणियों तक मे चिट्टे जैसा महंगा नशा आसानी से उपलब्ध हो रहा है।नशे की बिक्री व सप्लाई पर पुलिस ने आंखें मूंद रखी है, तभी किशोर व युवा इसकी चपेट मे आकर बर्बाद हो रहे है।
घर उजड़ा, मकान पर ताला:-
फेकाना ने बताया कि घर के बड़े बेटे की नशे की लत ने सब कुछ उजाड़ दिया।बीते बर्ष 15 दिसबंर की रात तक भरा-पूरा परिवार निवास कर रहा था जो अगली सुबह तक खत्म हो गया।अब मकान पर ताले लगे हुए हैं।पहले जहां दिन-भर रोजमर्रा के कामकाज के चलते चहल-पहल सी रहती थी, अब वहां वीरानगी छाई हुई है।मां-बाप ख्वाब बुन रहे थे कि जल्दी ही बेटो का ब्याह करेगें फिर पोते-पोतियों के साथ खेलकर एक बार फिर अपना बचपन जिएंगे।मगर बुढ़ापा आने से पहले प्रौढ़ अवस्था मे ही 17 साल के बेटे ने मां-बाप की ख्वाब देखती आंखों को बंद कर दिया।परिवार के मुखिया की करीब दस बीघा जमीन और घर एक तरह से बिना मालिक के से हो गए।गौरतलब है कि नशे के आदी किशोर ने माता-पिता व भाई की नशे की लत पूरी करने मे रुकावट बनने व नशा मुक्ति केंद्र भेजने से नाराजगी के चलते अत्यधिक नशा का डोज लेकर जिंदगी को मौत के गले लगा दिया।
ना जाने कितने लाल चढ़ेंगे नशे की भेंट:-
नशे जैसी बुराई पर रोक बहुत जरुरी है।ऐसा नहीं किया गया तो ना जाने कितनी माताओं के लाल इसकी गिरफ्त में आकर खत्म हो जाएंगे।सरकार व पुलिस को नशे के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए और समाज भी नशे के सौदागरों के खिलाफ मुखर हो।