अजब MP की गज़ब सियासत क्या CM डॉ मोहन यादव की कुर्सी खतरे में है, जानिए सियासी चमक के भीतर चल रहा ताना-बाना.
अजब MP की गज़ब सियासत क्या CM डॉ मोहन यादव की कुर्सी खतरे में है, जानिए सियासी चमक के भीतर चल रहा ताना-बाना।
मध्यप्रदेश की राजनीति में विगत दो दशकों से भाजपा की सियासत एक तरफा देखने को मिलती है हालांकि इसके पीछे का मूल कारण दिग्विजय सिंह के शासनकाल में कांग्रेस की सरकार रहते सरकार की विफलताओं को बताया जाता है और भाजपा भी वर्तमान समय में बंटाधार के नाम से सभी चुनाव में कांग्रेस के कार्यकाल को याद दिलाती है लेकिन हम यहां आज सत्ता और विपक्ष की बात नहीं कर रहे हैं यहां बात सत्ता की गलियारे में चल रही सियासत को लेकर करने जा रहे हैं मध्य प्रदेश में जब से डॉक्टर मोहन यादव की सरकार बनी है तब से भाजपा का ही एक तबका और विपक्षी दलों के नेता यह मानते हैं कि डॉ मोहन यादव की कुर्सी ख़तरे में है तर्क यह दिया जाता है कि उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान सजातीय वोटरों को लुभाने के लिए मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई थी तो वहीं कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में छात्रप बने हुए थे उनका कद और प्रभाव भाजपा के शीर्ष कुछ नेताओं को खटक रहा था इसलिए उन्हें दरकिनार करके डॉक्टर मोहन यादव को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था जानकार यह भी कहते हैं कि डॉ मोहन यादव पार्टी के मापदंडों पर फिट नहीं बैठ रहे हैं और शिवराज सिंह चौहान की तरह उनके पास जनता को जोड़ने का राजनीतिक कौशल दिखाई नहीं देता या यूं कहीं की शिवराज सिंह चौहान जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का नहीं है हालांकि डॉक्टर मोहन यादव को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी उनके साथ है मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पसंद डॉक्टर मोहन यादव हैं इसलिए डॉक्टर मोहन यादव कुर्सी खतरे में नहीं है और प्रचंड बहुमत वाली भाजपा की सरकार डॉ मोहन यादव पूरा करेंगे।
जीत का चेहरा शिवराज और सेहरा बंधा डा मोहन यादव के सर।
मध्य प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव 2023 हुआ तो शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा, सिवाय नरेंद्र मोदी और अमित शाह के, खुद मोहन यादव ने भी नहीं सोचा होगा कि अगर भाजपा की सरकार आती है तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। पर हुआ बिल्कुल यही विधानसभा चुनाव 2023 हुआ, भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत के साथ जीत दर्ज की और शिवराज सिंह को किनारे करते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव को बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रचंड बहुमत से बनी, इस चुनाव में बीजेपी को 163 सीटें मिली हैं तो कांग्रेस सिर्फ़ 66 सीटें हासिल कर सकी है, लाडली बहनों के भैया शिवराज सिंह चौहान को एकदम से किनारे कर दिया गया, बल्कि यूं कहे तो शायद ज्यादा सही होगा कि चाय में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर सीधे केंद्र की राजनीति का झुनझुना पकड़ा दिया गया जहा अब वो सीधे मोदी के सामने हैं, हलाकी, जब विधानसभा चुनाव हुआ था तो शिवराज सिंह चौहान जबरदस्त एक्टिव मोड में थे वह हर रोज दर्जन भर चुनावी सभाएं लेते थे और चमकर प्रचार प्रसार कर रहे थे। राजनीतिक गलियारों में और जन चर्चा में तो यहां तक कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार शिवराज सिंह चौहान और उनकी नीतियों के दम पर बनी है, यहां पर मोदी फैक्टर जरा कम ही रहा। बावजूद इसके शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। न केवल मध्य प्रदेश के लोग बल्कि भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी लोग बेहद हैरान हुए की, भला यह कैसे हो गया। लेकिन यह राजनीति है जनाब और राजनीति में कब अर्श और फर्श की अदला बदली हो जाए, किसी को पता भी नही चलता। और फिर भारतीय जनता पार्टी तो चौंकाने वाले निर्णय के लिए जानी ही जाती है तो भाजपा ने डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौका दिया यह सब को पता है कि जीत के चेहरा शिवराज सिंह चौहान थी और सेहरा बांधा गया डॉक्टर मोहन यादव के सर पर।
यादगार पल जब डॉक्टर मोहन यादव ने दिया था बयान।
याद कीजिए वो दिन जब नई दिल्ली में मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था, कि, ‘मैंने शिवराज सिंह चौहान से सीएम की कुर्सी नहीं ली, उन्होंने मुझे दी है।’ पिछले साल 11 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने नाम की घोषणा के पल को डॉक्टर मोहन यादव ने याद करते हुए कहा था कि‘मैं विधायक दल नेता चुने जाने के लिए बुलाई गई बैठक में अपने विधायक मित्रों के साथ आखिरी पंक्ति में बैठा था और चर्चा कर रहा था कि सामने बैठे वरिष्ठ नेताओं में से किसे (सीएम के तौर पर) घोषित किया जा सकता है लेकिन जब मेरा नाम सामने आया तब मुझे विश्वास हुआ कि भाजपा किसी भी कार्यकर्ता को कोई भी महत्वपूर्ण पद दे सकती है।
राजनीतिक गलियारे में यह हो रही चर्चा।
मध्यप्रदेश में वर्तमान राजनीतिक हालात ऊपर से तो सब कुछ ठीक दिखाई दे रहा है लेकिन अंदर खाने में कुछ और तरह की भी चर्चाएं व्याप्त हैं सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है उसको अगर आधार माने तो, मध्य प्रदेश सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है और ऐसे में कहीं ना कहीं यह सवाल जरूर उठता है कि, क्या डॉक्टर मोहन यादव की मुख्यमंत्री की कुर्सी स्थिर है! कहीं कुर्सी के डावाडोल की नौबत तो नहीं होने वाली, जाहिर है इसका माकूल जवाब तो भारतीय जनता पार्टी के आलम ही दे सकते हैं, यानी पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह, परंतु अगर मुख्यमंत्री मोहन यादव की कुर्सी अस्थिर होने की बात मीडिया में, राजनीतिक गलियारों में और जनचर्चाओं में चल रही है, तो इसकी क्या कुछ वजहाते हो सकती है। उन माकूल वजहातो की बात ही हम, आज के इस कार्यक्रम में आपसे एक एक कर करने वाले हैं…।
इस वजह से डॉक्टर मोहन यादव बनाए गए मुख्यमंत्री।
मोहन यादव को सीएम बनाने के पीछे बहुत सी वजहों में
माना जाता है कि एक वजह यह भी थी कि मध्य प्रदेश चुनाव के बाद जल्द ही लोकसभा चुनाव 2024 होने वाला था। ऐसे में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर, कहीं ना कहीं जातिगत कार्ड खेला गया था और निशाने पर था, उत्तर प्रदेश और बिहार, जहां पर यादव वोटो में सेंध लगाने के इरादे से भी कहा जाता है कि मोहन यादव की ताजपोशी मध्य प्रदेश में की गई थी, काबिलेगौर बात है कि, लोकसभा चुनाव के समय मोहन यादव ने उत्तर प्रदेश में जमकर चुनावी सभाएं की थी और खुल्लम-खुल्ला यादव वोटर्स को लुभाने वाले खूब भाषण भी दिए थे। सेंध लगाने की जमकर कोशिश की थी। परंतु लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को आशातीत सफलता नहीं मिली, तो जाहिर है कि मोहन यादव, पार्टी द्वारा दिए गए इस मिशन में खरे नहीं उतरे सफल नहीं हो पाए।
शिवराज के मुकाबले डॉ मोहन यादव।
अगर राजनीतिक कौशल और चेहरे की बात की जाए तो शिवराज सिंह चौहान की तरह मोहन यादव में लोगो से सीधा कनेक्ट होने का करिश्मा यानी लोगो से संवाद करके उनसे जुड़ जाने की भी कला उतनी परिपक्व अब तक नही देखी जा सकी है। लाख कोशिशों के बावजूद सीएम मोहन यादव लोगो से सीधा संवाद, सीधा कनेक्शन स्थापित करने की कला में उतने माहिर नही दिख रहे है, हालाकि वो कोशिश खूब कर रहे है, परंतु इस मामले में फिलहाल दूर दूर तक शिवराज सिंह के आस पास भी नही पहुंच सके य यूं कहें कि बनी बनाई भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं जबकि ठीक इसके पहले अगर नजर दौड़ आते हैं तो उमा भारती के मुख्यमंत्री रहते उनकी लोकप्रियता चरम पर थी उमा भारती को आगे करके भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ कर दिया था 9 महीने बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और उनकी जगह कुछ मन के लिए स्वर्गीय बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने थे लेकिन भाजपा ने मध्यप्रदेश में भविष्य की राजनीति की खोज शिवराज सिंह चौहान के रूप में की थी जिसमें वह सफल रहे और उनका राजनीतिक कौशल अभी तक प्रदेश में बरकरार है वर्तमान समय में भी शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले व्यक्तिगत रूप से कोई भी भाजपा या विपक्ष का नेता लोकप्रियता में नहीं टिक पा रहा है।
कर्ज के मर्ज से परेशान राज्य सरकार।
मध्य प्रदेश की सरकार लगातार कर्ज के बोझ में दबती चली जा रही है अगर बात करें सरकार पर बढ़ रहे कर्ज की तो सरकार जमकर कर्ज पर कर्ज ले रही है। जब से मोहन यादव मुख्यमंत्री बने हैं तब से सरकार ने अब तक 5 बार कर्ज लिया है। पहले से ही राज्य सरकार पर 4 लाख 18 हजार 56 करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है। ऐसे में कर्ज पर कर्ज लेने से मोहन सरकार की जहा एक तरफ छवि खराब हो रही है तो दूसरी तरफ कर्ज की वजह से महगाई भी बढ़ रही है, इस वजह से विपक्ष भी लगातार मोहन सरकार पर हमलावर है। विपक्ष कांग्रेस का कहना है कि, सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन की वजह से प्रदेश कर्ज के दलदल में समाता जा रहा है. सरकार सिर्फ कर्ज लेकर प्रदेश चला रही है, आर्थिक स्थितियां कैसे बेहतर हों. इस पर सरकार का ध्यान नहीं है. जाहिर है विपक्ष द्वारा इस तरह के तीखे हमले से मोहन सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
इन मुद्दों पर घिर रही सरकार।
मध्यप्रदेश की डा मोहन यादव सरकार महगाई, बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर घिर रही है प्रदेश में जनता की
मूलभूत जरुरते बढ़ती ही जा रही है, और संसाधन भी कम हो रहे है। इन सब बातो का भी असर सरकार और उसके मुखिया पड़ता ही है, उद्योग के क्षेत्र में भी मध्य प्रदेश में अब तक कुछ खास देखने को नही मिला है, जिससे की बेरोजगारी पर कुछ लगाम लग सके, हालाकि कुछ बड़े उद्योगपतियों ने हाल ही में प्रदेश में निवेश की बात कही जरूर है पर अभी धरातल में ये सब आने में समय है। इसके अलावा और भी कई समस्याएं हैं जो मध्य प्रदेश में विद्यमान है। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस करिश्में की उम्मीद की जा रही थी, वैसा कुछ अब तक तो कम से कम होता नहीं दिखा है, तो ऐसे में कहा जा सकता है कि कहीं ना कहीं डॉक्टर मोहन यादव बतौर मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री उतने सफल तो अब तक नहीं हुए है, जितनी की उनसे उम्मीदें लगाई जा रही थी, जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।
सिर्फ अटकलों का बाजार।
मध्यप्रदेश में डॉ मोहन यादव की सरकार बढ़िया चल रही है यह बात अलग है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से तुलनात्मक लोग डॉक्टर मोहन यादव को उतना करिश्माई नहीं मानते लेकिन यहां भाजपा में पार्टी प्रधान राजनीति होती है नेता प्रधान राजनीति होने का प्रचलन नहीं है बीते चुनाव में शिवराज सिंह चौहान भाजपा के चेहरा नहीं थे यह अलग बात है कि शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और उनकी लाडली बहना योजना भाजपा को पूर्ण बहुमत से अधिक सीटें दिलाने में मील का पत्थर साबित हुई अब शिवराज सिंह चौहान केंद्र में कृषि मंत्री हैं और सदन में उनकी धाक भी देखने को मिल रही है भविष्य में भाजपा की राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान जैसे करिश्माई नेता की भाजपा को जरूरत है और वही हो भी रहा है सोशल मीडिया और मीडिया में डाक्टर मोहन यादव सरकार को लेकर चल रही भ्रामक खबरों को बीजेपी तबज्जो नहीं देती है, डॉ मोहन यादव सीएम के पद से हटाए जा सकते है ऐसी खबरें अभी कसौटी में कतई खरी नही उतर रही है यानी ऐसे खबरे कपोल कल्पना ही कही जा सकती है फिलहाल बाकी यह राजनीति है जनाब, पल पल समीकरण बदलते और बिगड़ते रहते है।