Loksabha election, रीवा लोकसभा सीट में नेहरू जी के रसोइया से लेकर कट्टर सनातनी तक ऐसा रहा सभी सांसदों का इतिहास।

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Loksabha election, रीवा लोकसभा क्षेत्र सीट में नेहरू जी के रसोइया से लेकर कट्टर सनातनी तक ऐसा रहा सभी सांसदों का इतिहास।

मध्य प्रदेश की रीवा लोकसभा सीट देश की राजनीति में काफी अहमियत रखती हैं एक जमाना था जब रीवा के महाराजा स्व मार्तण्ड सिंह जूदेव यहां से सांसद सदस्य चुने गये थे फिर नेत्रहीन सांसद चुने गए इसके बाद बसपा के प्रत्याशी को रीवा की जनता ने लोकसभा सांसद चुनकर विंध्य क्षेत्र की राजनीति में नया कीर्तिमान गढ़ दिया लेकिन वक्त बदलता गया और यहां के राजनीतिक समीकरण भी वक्त के साथ बदलते गए रीवा जिला विंध्य क्षेत्र की राजधानी कहा जाता है और यहां की राजनीति ही विंध्य क्षेत्र में नए समीकरण का संदेश देती है रीवा लोकसभा क्षेत्र से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें हम इस खबर के माध्यम से साझा करने जा रहे हैं रीवा की जनता ने अब तक कई ऐसे सांसद दिल्ली भेजें हैं जिनकी चर्चा पूरे देश में किसी न किसी रूप में जरूर हुई है।

नेहरू जी के रसोइया बने रीवा सांसद।

रीवा लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व जवाहरलाल नेहरू के निजी स्टाफ को यहां के मतदाताओं ने सांसद चुनकर दिल्ली भेजा, यह समय था देश की दूसरी और तीसरी लोकसभा चुनाव का जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी स्टाफ में रसोइया रहे शिवदत्त उपाध्याय को रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया था वर्ष 1957 और फिर वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में शिवदत्त उपाध्याय सांसद चुने गए हालांकि इसके पहले देश की पहली लोकसभा चुनाव 1952 में राजभान सिंह कांग्रेस पार्टी के सांसद चुने जा चुके थे उस जमाने में कांग्रेस का ऐसा दौर था कि कोई भी कांग्रेस की टिकट लेकर आए और जनता उसे सांसद बना देती थी, 1967 के लोकसभा चुनाव में शंभू नाथ शुक्ला कांग्रेस पार्टी से सांसद चुने गए इसके बाद 1971 में रीवा महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और सांसद चुने गए।

राजा और रंक की यादगार लड़ाई।

रीवा महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव जब निर्दलीय सांसद चुने गए तो रीवा की राजनीति में एक नया समीकरण तैयार हो गया और वर्ष 1977 में जनता पार्टी की लहर चली इस लहर में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी से लोकसभा प्रत्याशी हुए और महाराजा रीवा स्वर्गीय मार्तण्ड सिंह जूदेव को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा जनता ने यमुना प्रसाद शास्त्री को अपना सांसद चुनकर दिल्ली भेज दिया आपको बता दें की राजा और रंक की इस लड़ाई की चर्चा उन दिनों हर जगह राजनीतिक गलियारों में हुआ करती थी तो वहीं जमुना प्रसाद शास्त्री एक क्रांतिकारी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुआ करते थे गोवा की आजादी में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उस दौरान आंदोलन में उनकी आंख चली गई थी रीवा की जनता उन्हें अपार स्नेह देती थी यमुना प्रसाद शास्त्री के नेत्रहीन होने के बावजूद भी जनता ने उन्हें सांसद चुनकर दिल्ली भेजा था इसके बाद वर्ष 1980 में एक बार फिर महाराजा रीवा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सांसद चुने गए फिर वर्ष 1984 में पुनः मार्तण्ड सिंह कांग्रेस पार्टी के उमीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और चुनाव जीते 1989 में एक बार फिर यमुना प्रसाद शास्त्री सांसद चुने गए 1977 से लेकर 1989 तक रीवा की राजनीति में राजा और रंक थी लड़ाई दिखी गई इसके साथ ही नेत्रहीन सांसद का चुना जाना काफी सुर्खियों में रहा है।

रीवा की जनता ने चुना बसपा का सांसद।

विंध्य क्षेत्र का रीवा जिला लोकसभा चुनाव में अलग-अलग तरह से अप्रत्याशित परिणाम देता रहा है नेहरु जी के निजी कर्मचारी का सांसद बनना हो या फिर महाराजा रीवा का सांसद चुना जाना और फिर नेत्रहीन सांसद चुना जाना पुरानी बात हो चुकी थी वर्ष 1991 में नई तरह की राजनीति का उदय हुआ और कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले विंध्य क्षेत्र में आगडा़ और पिछड़ा वर्ग को लेकर भी जनता के बीच भावनाएं उफान मारने लगी थी लिहाजा जनता की इस सोच का नतीजा लोकसभा चुनाव में देखने को मिला जब 1991 की लोकसभा चुनाव में बसपा से प्रदेश का पहला सांसद भीम सिंह पटेल के रूप में रीवा की जनता ने चुनकर नया राजनीतिक समीकरण गढ़ दिया बता दें कि वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व श्रीनिवास तिवारी कांग्रेस पार्टी से और भाजपा से वरिष्ठ अधिवक्ता स्व कौशल प्रसाद मिश्रा तथा बहुजन समाज पार्टी ने भीम सिंह पटेल प्रत्याशी बनाए गए थे श्रीनिवास तिवारी कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार थे तो वही भाजपा के कौशल प्रसाद मिश्रा भी भाजपा से एकमात्र ऐसे नेता रहे हैं जिनकी बड़ी पहचान रही है त्रिकोणीय संघर्ष में लगभग 10 हजार से मतों से बहुजन समाज पार्टी के भीम सिंह पटेल ने जीत हासिल की थी।

कांग्रेस भाजपा और बसपा में होता रहा टक्कर।

1991 के लोकसभा चुनाव के बाद से रीवा की राजनीति में समीकरण कुछ अलग हो चुके थे यहां जातिगत भावनाएं पनप चुकी थी अगड़ा-पिछड़ा में बात होने लगी थी और इसका असर लोकसभा चुनाव में सामने आने लगा था 1991 में भीम सिंह पटेल सांसद चुने गए इसके बाद 1996 में बुद्धसेन पटेल बसपा, सांसद चुने गए इस दौर में भारतीय जनता पार्टी भी अपना जनाधार बनाने में कामयाब हुई और 1998 के लोकसभा चुनाव में चंद्रमणि त्रिपाठी भाजपा, के सांसद चुने गए वर्ष 1999 सुंदरलाल तिवारी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी रहे और चुनाव जीते, तो वहीं वर्ष 2004 में एक बार फिर भाजपा के चंद्रमणि त्रिपाठी सांसद चुने गए, 2009 में एक बार फिर बसपा ने बाजी पलट दी और जीत हासिल की यहां देवराज पटेल बसपा के सांसद चुने गए, इसके बाद वर्ष 2014 ‌और 2019 की लोकसभा चुनाव में भाजपा के जनार्दन मिश्रा सांसद चुने गए।

रीवा लोकसभा सीट से इन सांसदों ने किया प्रतिनिधित्व।

देश की पहली लोकसभा 1952 में राजभान सिंह कांग्रेस, 1957 शिवदत्त उपाध्याय कांग्रेस, 1962 शिवदत्त उपाध्याय कांग्रेस, 1967 शंभूनाथ शुक्ल कांग्रेस, 1971 मार्तंड सिंह जूदेव निर्दलीय, 1977 यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी, 1980 मार्तंड सिंह जूदेव निर्दलीय, 1984 मार्तंड सिंह जूदेव कांग्रेस, 1989 यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी, 1991 भीम सिंह पटेल बसपा, 1996 बुद्धसेन पटेल बसपा, 1998 चंद्रमणि त्रिपाठी भाजपा, 1999 सुंदरलाल तिवारी कांग्रेस, 2004 चंद्रमणि त्रिपाठी भाजपा, 2009 देवराज पटेल बसपा, 2014 जनार्दन मिश्रा भाजपा, 2019 जनार्दन मिश्रा भाजपा

वर्तमान राजनीतिक स्थिति।

रीवा लोकसभा क्षेत्र में कुल 8 विधानसभा सीट हैं जिनमें,रीवा, गुढ़, सेमरिया, सिरमौर, मनगवां, त्योंथर, मऊगंज और देवतालाब आठ विधानसभा सीट शामिल हैं अब रीवा जिला से अलग होकर मऊगंज नया जिला बन गया है लेकिन लोकसभा क्षेत्र दोनों जिलों का एक ही है वर्तमान समय में सात विधानसभा सीट में भारतीय जनता पार्टी के विधायक है और एक सीट में कांग्रेस पार्टी के विधायक है रीवा लोकसभा छेत्र में वर्तमान राजनीति हालात को देखें तो भाजपा काफी सशक्त है बीते 2014 और 2019 की लोकसभा में सांसद चुने जाने वाले भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा कट्टर सनातनी माने जाते है इसके साथ ही स्वच्छता के अग्रदूत के रूप में जनार्दन मिश्रा भारत देश ही नहीं पूरे विश्व में चर्चित हो चुके जनार्दन मिश्रा सरल सहज स्वभाव के नेता हैं आम जनता के बीच रहते हैं और आम जनता की तरह ही उनका रहन-सहन और राजनीतिक स्वभाव है, भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहते बहुजन समाज पार्टी कमजोर हुई है इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कुछ खास कर पाएगी ऐसा दूर-दूर तक नजर नहीं आता लेकिन कांग्रेस पार्टी भाजपा के मुकाबले देखने को जरूर मिलेगी।

 

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