1991 के लोकसभा चुनाव में रीवा की जनता ने दिग्गज नेताओं और दलों की लोकप्रियता को किया था चारों खाने चित।

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1991 के लोकसभा चुनाव में रीवा की जनता ने दिग्गज नेताओं और दलों की लोकप्रियता को किया था चारों खाने चित।

देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में जनता कभी नेहरू के नाम पर कभी इंदिरा के नाम पर कभी अटल के नाम पर और अब मोदी के नाम पर वोट कर रही है और राजनीतिक दलों के नेता अपने नेताओं के नाम पर वोट मांगते आए हैं इसी बीच कुछ लोकसभा चुनावों में जनता ने दूसरे दलों य फिर सत्ता और नेताओं की लोकप्रियता के विपरीत जाकर भी वोट किए हैं फिर चाहे उसे जातिगत समीकरण से जोड़ा जाए या फिर लोकसभा प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि को देखते हुए नकारे जाने की बात हो देखा जाए तो विंध्य क्षेत्र की राजधानी रीवा में 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता ने नेहरू इंदिरा और कांग्रेस की लोकप्रियता के खिलाफ जाकर बहुजन समाज पार्टी का सांसद चुन लिया था और लगभग दस हजार मतों से जीतकर बसपा के भीम सिंह पटेल सांसद चुने गए जबकि कांग्रेस पार्टी से विंध्य क्षेत्र के दिग्गज नेता स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी मैदान में थे तो वहीं भारतीय जनता पार्टी से उसे जमाने के भाजपा के सबसे लोकप्रिय नेता एडवोकेट कौशल प्रसाद मिश्रा प्रत्याशी थे उसे दौर में भाजपा मजबूत नहीं थी बावजूद इसके कौशल प्रसाद मिश्र को काफी वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे हैं कहा जाता है कि रीवा जिले में भाजपा के लिए 1991का लोकसभा चुनाव काफी मायने रखता है भाजपा ने पहली बार लोकसभा चुनाव में काफी वोट हासिल किए थे और लगभग 20, हजार मतों से भाजपा चुनाव हारी थी योग्य प्रत्याशी एड कौशल प्रसाद मिश्र ने भाजपा को जीत भले ही ना दिला पाए हो लेकिन लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को बड़ी पहचान दिलाने में कामयाब रहे थे।

1991 का लोकसभा चुनाव रीवा के राजनीतिक इतिहास में आज भी सबसे संघर्ष पूर्ण चुनाव माना जाता है जहां दलों और नेताओं की लोकप्रियता को दरकिनार कर बसपा के सांसद को जनता ने चुना था हालांकि इस चुनाव में जातिगत दुर्भावना भी जमकर पनप चुकी थी लोगों का कहना है कि सामान्य वर्ग के वोट दो दिग्गज नेताओं श्रीनिवास तिवारी और कौशल प्रसाद मिश्रा के बीच बंट गए थे और अधिकांश क्षत्रियों सहित पिछड़ा वर्ग और अन्य वर्ग के मतदाताओं ने एक मुस्त वोट बसपा को देकर कांग्रेस और भाजपा को नई चुनौती दे दी थी हालांकि इसके बाद के लोकसभा चुनाव में बुद्ध सेन पटेल, और फिर देवराज सिंह पटेल भी रीवा लोकसभा सीट से बसपा के सांसद चुने गए थे लेकिन बसपा का जादू अब खत्म हो गया है और भाजपा के चन्द्रमणि त्रिपाठी और इसके बाद कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी सांसद बने और फिर भाजपा के चन्द्रमणि त्रिपाठी सांसद बने तब से लगातार रीवा लोकसभा सीट पर भाजपा का दबदबा कायम है और जनार्दन मिश्रा तीसरी बार सांसद बनने की कतार पर खड़े हैं।

वर्तमान समय में तीसरी बार सांसद बनाने के लिए जनार्दन मिश्रा को भाजपा ने लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया है, इस चुनाव में भी भाजपा के नेता और कार्यकर्ता मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं यहां एक बात तो यह बतानी ही पड़ेगी की भाजपा विकास के नाम पर भी वोट मांगती है लेकिन वर्तमान भाजपा प्रत्याशी के नाम पर उनके 10 वर्षों के कार्यकाल में उनके द्वारा कराए गए विकास कार्यों के नाम पर नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के विकास कार्यों को गिनाकर वोट मांगा जा रहा है हालांकि जनार्दन मिश्रा के पास कोई ऐसा विकास कार्य है भी नहीं जिसे जनता को दिखाकर वोट मांगा जा सके माना जा रहा है कि वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा ने जनता के बीच अपनी बड़ी पहचान बनाई और अब ऐसे हालात बन गए हैं कि कांग्रेस और बसपा तथा अन्य दलों के पूर्व में विधायक सांसद रहे नेताओं तथा
कांग्रेस पार्टी और बसपा कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सपा जैसे राजनीतिक दलों की पहचान रीवा से समाप्त जैसी हो गई है।

हालांकि बीते विधानसभा चुनाव में सेमरिया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी अभय मिश्रा कड़े मुकाबले में चुनाव जीतने में सफल रहे इसके पीछे का सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता रहते अभय मिश्रा ने भाजपा में अपनी अच्छी पकड़ बनाई थी जो विधानसभा चुनाव में उन्हें मददगार साबित हुई कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते तो रीवा कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी बन गए हैं माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पार्टी अभय मिश्रा को लोकसभा प्रत्याशी बन सकती है ऐसे में भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा को अभय मिश्रा कड़ी चुनौती देंगे हो सकता है कि व्यक्तिगत जनार्दन मिश्रा की छवि को अगर लोकसभा चुनाव 2024 से अभय मिश्रा जोड़ने में कामयाब रहे तो 1991 जैसा चुनावी दंगल 2024 में भी देखने को मिल सकता है हालांकि यहां पर बसपा काफी कमजोर है ऐसे में कांग्रेस पार्टी ही भाजपा को कड़ी टक्कर देती दिखाई देगी।

लेखक
संजय पाण्डेय, पत्रकार, निवासी गढ़ जिला रीवा मध्यप्रदेश।

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