Singrauli news: मरीजों के इलाज और बच्चों की देखभाल के साथ बेटे-बहू की भी निभा रहे जिमेदारी
मरीजों से उनकी भाषा में बात करते हैं जिला अस्पताल के डॉक्टर
सिंगरौली . आव बेटा, का तकलीफ बा। कौने कक्षा में पढ़ ल। खूब पढ़, अउर हमरे जइसे डॉक्टर बन। सोमवार को आंख की समस्या दिखाने अस्पताल पहुंचे एक किशोर से जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. विजय प्रताप सिंह कुछ ऐसी ही अंदाज में बात करते नजर आए। बात करने का यह अंदाज क्यों, जब डॉ. विजय से यह पूछा गया तो उन्होंने कहा, डॉक्टर की जिमेदारी केवल तकलीफ का इलाज करने तक ही सीमित नहीं है। डॉक्टर की यह भी जिमेदारी बनती है कि मरीज को इस बात का इत्मिनान दिलाए कि वह इलाज से ठीक हो जाएगा। साथ ही डॉक्टर की यह जिमेदारी भी है कि वह मरीज को मानसिक रूप से भी चिंतामुक्त करे। क्योंकि जब तक मरीज मानसिक रूप से तैयार नहीं होगा, उसके स्वस्थ होने की गति धीमी होगी। डॉ. विजय ने कहा, यही वजह है कि मरीज से वह इस अंदाज में बात करते हैं, जो उन्हें पसंद हो। उन्होंने अक्सर देखा है कि जब कि मरीजों से उसकी भाषा में बात करते हैं तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है और वह अपनी सारी तकलीफ हंसकर बताता है। कहा कि होना तो यह चाहिए कि मरीज की आधी तकलीफ डॉक्टर की बातचीत से ही दूर हो जाए। कहने में भले ही भरोसा न हो, लेकिन हकीकत यही है कि डॉक्टर मरीजों से उनसे दिली तौर पर जुड़ते हुए इलाज शुरू करें तो मरीजों की आधी तकलीफ वैसे ही दूर हो जाती है।
सिंगरौली. दिनभर के कामकाम का उचित तरीके से प्रबंधन किया जाए तो एक साथ कई जिमेदारियां निभाई जा सकती हैं। दांपत्य जीवन को सफलतापूर्वक जीने के साथ डॉक्टर की जिमेदारी निभा रहे डॉ. आशीष पाण्डेय और डॉ. दीक्षा पाण्डेय इसकी जीती-जागती मिसाल हैं।
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष जिला अस्पताल में पदस्थ हैं, तो स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. दीक्षा पाण्डेय खुद का क्लीनिक चलाती हैं। मरीजों के इलाज और बच्चों की देखभाल के साथ दोनों बेटे और बहू की जिमेदारी भी बखूबी निभा रहे हैं। डॉ. दीक्षा बताती है कि उन्होंने पूरे दिन का एक
शेड्यूल तय कर रखा है। उस शेड्यूल को हर हाल में फॉलो करती हैं। घर के साथ क्लीनिक को संभालने में उनकी सबसे बड़ी मददगार सास हैं। मरीज की इमरजेंसी आने पर सास मित्रविंद पाण्डेय ही घर की बाकी जिमेदारी को निभाती हैं। उनका कहना है कि रात में चाहे जितने बजे सोने जाएं, लेकिन सुबह 5:30 बजे उठना तय होता है। सप्ताह में कई दिन रात के वक्त भी मरीज को देखने के लिए जाना पड़ता है। मरीजों के इलाज के साथ बच्चों की देखभाल बड़ी जिमेदारी है।
डॉ. दीक्षा करीब दो वर्ष पहले तक जिला अस्पताल में ही पदस्थ रहीं लेकिन बच्चों की जिमेदारी के चलते उन्होंने जिला अस्पताल की ड्यूटी छोड़ दी। विंध्यनगर में स्थित आवास के नीचे ही क्लीनिक चला रही हैं। इससे उनके लिए तीन वर्ष के जुड़वा बच्चे आदि और युग को संभालना आसान रहता है। बड़ी बेटी दिशा चौथी क्लास में है। उसे डॉक्टर दंपति के साथ उसके दादा-दादी यानी डॉ. दीक्षा के ससुर शत्रुघ्न प्रसाद पाण्डेय और सास मित्रविंद पाण्डेय संभालती हैं।
संयुक्त परिवार के फायदे बताए
डॉ. आशीष पाण्डेय का कहना है कि मौजूदा समय में न्यूक्लियर फैमिली का ट्रेंड बढ़ रहा है। संयुक्त परिवार के महत्व को कम लोग ही समझ पाते हैं। उनका मानना है कि बिना माता-पिता के सहयोग के उन दोनों पति-पत्नी के लिए ड्यूटी करने के साथ बच्चों की देखभाल कर पाना बड़ी चुनौती है। संयुक्त परिवार में यह आसान नहीं तो बहुत मुश्किल भी नहीं है।
सभी डॉक्टरों से नरमी बरतने का आह्वान
डॉ. विजय ने कहा कि वैसे तो जिला अस्पताल के ज्यादातर चिकित्सकों का व्यवहार मरीजों के प्रति अच्छा है, फिर भी वह व्यस्त स्थिति में होने के बाद भी मरीजों के साथ नरमी से पेश आएं। कहा कि डॉक्टरों पर मरीजों की बीमारी और उनके इलाज को लेकर चिंता होती है। कई बार डॉक्टर व्यस्त होने के चलते भी परेशान रहते हैं, लेकिन इस स्थिति में भी डॉक्टर को धैर्य से काम लेना चाहिए।