देश

यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नहीं बनते तो गांव के होते भैंस चांसलर।

यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नहीं बनते तो गांव के होते भैंस चांसलर।

कभी-कभी शिक्षित और सफल लोगों द्वारा ऐसी बातें कह दी जाती है जो लोगों के लिए काफी मोटिवेटिव होती है उनके शब्दों में साहस, विश्लेषण, पीड़ा है हास्य तथा व्यंग्य का समावेश होता है बीते माह मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सांसद जनार्दन मिश्रा द्वारा शिक्षा विभाग के एक कार्यक्रम उन्होंने कहा था कि अगर संसद नहीं होते तो कहीं और चाकू चला रहे होते सांसद जनार्दन मिश्रा का यह कहने का अभिप्राय था कि शिक्षा और संस्कार एक ऐसी सफलता की सीढ़ी है कि अगर पूरे मनोयोग से ग्रहण कर लिया तो सफलता मुट्ठी में होगी जिससे खुद को परिवार को और समाज को बेहतर बनाने के लिए काम आ सकते हैं। इसी तरह का एक और वाक्या सामने आया है जहां एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की कहानी सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है इस कहानी का शीर्षक यह है कि भैंस पर बैठ जाते तो भैंस चांसलर बन जाते।

डायरी ने खोला कुलपति के दिल का राज।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षाविद डॉ. लक्ष्मण यादव आजमगढ़ जिले के पिछड़े वर्ग किसान परिवार से आते हैं उन्होंने इलाहाबाद और दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की है इसके बाद वे उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े और दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में अध्यापन का कार्य करने लगे डॉ लक्ष्मण यादव की एक विशेषता थी कि वह अपनी रोजाना की खास घटनाओं को एक डायरी में लिखा करते थे।

शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती है डायरी

डायरी का शीर्षक प्रोफेसर की डायरी के नाम से फेमस हो चुकी है जो अनबाउंड स्क्रिप्ट से प्रकाशित होने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के सिस्टम की पोल खोल रही है डॉ. लक्ष्मण यादव की ‘प्रोफेसर की डायरी’ में साहस, विश्लेषण, पीड़ा है और हास्य तथा व्यंग्य है कहा जा रहा है कि यह सबसे कम समय में सबसे ज़्यादा बिकने वाली बेस्टसेलर किताब बन चुकी है जो शिक्षा-व्यवस्था की अनकही सच्चाईयों को आइना दिखाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button