देश की जनसंख्या बढ़े या घटे-चिंतन करें” विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई पर विशेष “आलेख।

देश की जनसंख्या बढ़े या घटे-चिंतन करें” विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई पर विशेष “आलेख।

पृथ्वी पर विश्व के सभी देशों के लिए 11 जुलाई एक महत्वपूर्ण दिवस है जब हम इस दिवस को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिवस की शुरुआत 11 जुलाई 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व में बढ़ती जनसंख्या जैसे ज्वलंत विषय पर चिंतन करने हेतु जनक विश्व बैंक के जनसांख्यिकीविद डॉक्टर के सी जकरिया के सुझाव पर प्रतिवर्ष मनाने का निर्णय लिया गया। किसी देश की समग्र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक प्रगति वहां की जनसंख्या पर निर्भर करती है ।यह दिवस विकास ,प्रकृति और समाज पर अत्यधिक जनसंख्या के प्रभाव पर जागरूकता हेतु जाना जाता है। इस दिवस पर अधिकांश देशों द्वारा जिन विषयों पर चिंतन किया जाना चाहिए वह है _पर्याप्त भोजन, पानी, उर्जा ,भूमि, लैंगिक समानता, वित्त ,शिक्षा ,आवास, गरीबी, मानवाधिकार, बेरोजगारी, मातृ स्वास्थ्य ,परिवार नियोजन, विवाह और प्रजनन जैसे संसाधनों की उपलब्धता लंबे समय तक कैसे जनमानस को मुहैया होगा। इस महत्वपूर्ण दिवस की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2024 की थीम है__” स्थायी भविष्य के लिए सतत जनसंख्या वृद्धि “। तात्पर्य यह है कि इसी एजेंडा पर दुनिया के देशों को जनसंख्या नियंत्रण पर कार्य योजना बनाना चाहिए । निष्कर्ष यह है कि_ “बढ़ती जनसंख्या एक विपत्ति है, यह विनाश की उत्पत्ति है”।

विश्व जनसंख्या दिवस के उद्देश्य-

हमें 11 जुलाई से आगामी 1 वर्ष में जिन विषयों में कार्य करना चाहिए वह है_ युवक व युवतियों को सशक्त व संरक्षित बनाना, प्रजनन, अवांछित गर्भ, गर्भावस्था व जटिलताएं, समय से पूर्व प्रसव, गर्भपात, बाल विवाह से बचना, अपने पैरों पर खड़े होना, यौन जनित रोगों से रोकथाम, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, हर दंपति को प्रजनन स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराना। नारा -“जनसंख्या कम करें_ महिलाओं को सशक्त बनाएं”।

जनसंख्या नियंत्रण जागरूकता।

“जनसंख्या पर रोक लगाए ,देश को प्रगति पथ पर लाए” विषय की सफलता हेतु जागरूकता अभियान आम जन तक पहुंचना चाहिए। इस हेतु विद्यालय ,महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं में विभिन्न गतिविधियों_ रैली, नारा लेखन, भाषण, पोस्टर प्रतियोगिता, सोशल मीडिया द्वारा जन आंदोलन बनाना होगा । साथ ही जनप्रतिनिधियों व समाज सेवी संगठन द्वारा भी विभिन्न बैठकों में जनसंख्या वृद्धि के खतरों पर चर्चा करना चाहिए । लोगों को यह समझना होगा_ “जनसंख्या बढ़ेगी_ भुखमरी बढ़ेगी”।

विश्व व जनसंख्या ।

वर्तमान में विश्व की जनसंख्या 8.1 अरब है। यह 1959 में तीन अरब थी जो 4 दशक में जनसंख्या दो गुनी यानी 6 अरब हुई। प्रतिवर्ष 0.9% जनसंख्या वृद्धि होती है। जहां एक ओर प्रति सेकंड 4.3 बच्चों का जन्म वहीं दो बच्चों की मृत्यु होती है। सर्वाधिक जनसंख्या के पांच देश हैं_ भारत, चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया, व पाकिस्तान। विकासशील देशों में विकसित देशों की तुलना में समस्त स्वास्थ्य सूचकांक जैसे जन्म दर, मृत्यु दर, मातृ मृत्यु व सकल प्रजनन दर ज्यादा हैं जो वैश्विक जनसंख्या बुद्धि का कारण बनते है।

भारत व जनसंख्या ।

कई दशकों से भारत जनसंख्या की दृष्टि से चीन से पीछे रहा था किंतु अब भारत विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या 1.44 अरब के साथ चीन को पछाड़कर पहले स्थान में हो गया है। भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 17% है व भूक्षेत्र 2.4 प्रतिशत है। भारत में मुस्लिम आबादी वर्तमान में 20 करोड़ है जबकि स्वतंत्रता के समय यह 3.5 करोड़ थी। देश की जनसंख्या के संदर्भ में हमें यह जानना चाहिए की आजादी के समय देश की जनसंख्या 35 करोड़ थी ,80% आबादी की आयु 50 वर्ष से कम है (यही कारण है कि भारत को युवा देश कहा जाता है), घनत्व की दृष्टि से प्रति एक किलोमीटर में बांग्लादेश में 1265 लोग रहते हैं जबकि भारत में 464, व चीन में 153 , देश की जनसंख्या वार्षिक वृद्धि दर 1.19% ,मृत्यु दर 7.3 प्रति 1000, जीवन प्रत्याशा 69 वर्ष (पुरुष 67.5 व महिला 72.5 वर्ष) , प्रजनन दर 2.3, शिशु मृत्यु दर 40 , प्रति दिवस बच्चों का जन्म 68500 (विश्व का 1/ 5) , प्रति मिनट एक नवजात शिशु की मौत है। देश की स्वतंत्रता के समय मातृ मृत्यु दर 1000 प्रत्येक लाख जन्म थी जबकि वर्तमान में 97 है जो इस बात का द्योतक है कि देश की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुई हैं लेकिन अभी सुधार की संभावनाए है।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम।

“जनसंख्या पर रोक लगाए_ देश को प्रगति पथ पर लायें” की रणनीति से ही भारत सहित संपूर्ण दुनिया का सर्वांगीण विकास संभव है। बढ़ती जनसंख्या के कारण वनों की कटाई, बेरोजगारी, अप्रावसन, संसाधनों का छरण, गरीबी, महामारी, जलवायु परिवर्तन, लैंगिक असमानता, मानवाधिकार उल्लंघन, मानव तस्करी व बाल श्रम जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।

गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी व जनसंख्या।

“हम शिक्षित होंगे ,जनसंख्या रोकेंगे” यह सूत्र जनसंख्या नियंत्रण में बहुत प्रभावशाली है जिसका परिणाम होगा _समाज का सर्वांगीण विकास । विभिन्न शोधों में पाया गया है कि विकासशील देशों व समाज जहां गरीबी ,निरक्षरता, अज्ञानता व बेरोजगारी पाई जाती है वहां सकल प्रजनन दर अधिक होता है जिसका परिणाम होता है _ज्यादा जनसंख्या । हमें यह जानना होगा कि आर्थिक विकास सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है, इससे जनसंख्या व प्रजनन दर दोनों नियंत्रित होंगे । दुखद पहलू यह है कि कई बार बेटा की चाह में बढ़ती बेटियां भी जनसंख्या वृद्धि का कारण बनती हैं जिससे ” बेटा बेटी एक समान “लाइन को ठेस पहुंचती है।

धर्म, जाति व जनसंख्या।

” जनसंख्या वृद्धि रोकें , समाज को सशक्त बनाएं” । यह संदेश सभी धर्म_ जाति के लोगों के लिए है किंतु सभी धर्म के लोग अपनी शिक्षा, संस्कार व धार्मिक भावनाओं के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण पर चिंतन करते हैं। यदि हम सकल प्रजनन दर की बात करें तो हिंदुओं में 2.3, मुस्लिम में 2.61(सर्वाधिक), ईसाइयों में 1.99 व सिख में 1.89 है। हर समाज में पिछड़ी जातियों में सकल प्रजनन दर अधिक होता है।

“हिंदू मुस्लिम सिख इसाई,
छोटे परिवार में सब की भलाई”

से ही सभी समाज का सर्वांगीण विकास संभव है।
परिवार कल्याण कार्यक्रम व जनसंख्या-
“छोटा परिवार ,खुशहाल परिवार” परिकल्पना की सफलता हेतु भारत में जनसंख्या नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1952 से हुई थी तब से लगातार हर पंचवर्षीय योजना में क्रमशः स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया गया। वर्ष 1976 में कांग्रेस सरकार के “कष्टदायक जबरन नसबंदी” से हताहत देश की जनता ने “जनता पार्टी” की सरकार बनाया, जिसके तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री राज नारायण ने वर्ष 1977 में परिवार नियोजन का नाम बदलकर “परिवार कल्याण कार्यक्रम” किया जिसके अंतर्गत नसबंदी कार्यक्रम (पुरुष एवं महिला), विभिन्न अस्थाई नसबंदी साधन (निरोध, इंजेक्शन अंतरा, गोली- छाया, सहेली, माला एन, कॉपर टी आदि) के अतिरिक्त स्त्री शिक्षा बढ़ाना, स्वास्थ्य व पोषण में महिला सशक्तिकरण, शिशु स्वास्थ्य, किशोरावस्था ,स्वास्थ्य शिक्षा, कठिन आबादी में स्वास्थ्य सेवाएं (शहरी स्लम ,ट्राइबल, पहाड़ी व विस्थापित जनसंख्या), 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा, मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर में कमी लाना, हर बच्चे तक अनिवार्य टीका की पहुंच, विवाह की उम्र बालिका में 18 वर्ष व बालकों में 21 वर्ष से अधिक करना। सत प्रतिशत संस्थागत प्रसव ,100% पंजीयन (जन्म, मृत्यु, गर्भ व विवाह), यौन जनित रोगों व एचआईवी की रोकथाम, जांच व इलाज, संक्रामक रोगों (टीवी ,मलेरिया, कुष्ठ आदि) प्रबंधन ,सुरक्षित गर्भपात, कैंसर (ब्रेस्ट ,सर्वाइकल) प्रबंधन आदि सेवाएं वर्तमान में एनएचएम अंतर्गत संचालित हैं जिन्हें और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से हम स्वतंत्र देश के नागरिक हैं , प्रजनन हमारा मौलिक अधिकार है। हम सब का दायित्व है कि विश्व के कल्याण हेतु, देश हित में व अपनी अगली पीढ़ी के सुखमय जीवन हेतु ईश्वर द्वारा प्रदत्त सीमित संसाधनों को दृष्टिगत रखते हुए धर्म _जाति से ऊपर उठकर “जनसंख्या होगी कम तो सुख से रहेंगे हम ” को साकार करने हेतु उन्हें जमीन ,जल ,ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य ,रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु “हम दो_ हमारे दो ” नारा को साकार करें।

लेखक चिंतक विचारक, डॉ. बी.एल.मिश्रा
एम.डी.(मेडिसिन)
से.नि.क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवायें रीवा संभाग रीवा।

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