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संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के गलत आचरण से संविधान की मूल भावना पर चोट : अजय खरे।

संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के गलत आचरण से संविधान की मूल भावना पर चोट : अजय खरे।

 

रीवा। समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक अजय खरे ने कहा है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना को बहुत स्पष्ट ढंग से लिखा गया है लेकिन इसके बावजूद धर्म और राजनीति को लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपने गलत आचरण से संविधान की मूल भावना को आहत कर रहे हैं। ऐसी बातें गंभीर चिंता का विषय है। देश के लोगों को इस बारे में आवाज उठानी चाहिए।

श्री खरे ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इसके निर्माताओं की आकांक्षाओं और उद्देश्यों का सारगर्भित उल्लेख किया गया है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर बल दिया गया है, तथा व्यक्तियों की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित की गई है। अजय खरे ने कहा कि धर्म नितांत निजी उपासना का विषय है। किसी दूसरे धर्म के प्रति दुराग्रह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। एक दूसरे को सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का आचरण ऐसा ना हो, जिससे यह लगे कि वह अपने धर्म को विशेष महत्व दे रहे हैं। उन्हें घर में होने वाली पूजा को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। संवैधानिक पदों पर बैठे लोग यदि ऐसा करेंगे तो इसका गलत संदेश जाएगा। श्री खरे ने कहा कि भारतीय राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण का गंदा खेल शुरू है। जाति और धर्म के आधार पर वोटो का ध्रुवीकरण हो रहा है। मूल्यों की राजनीति का संकट गहराता जा रहा है। चुनाव में जाति धर्म धन बल बाहुबल और शासकीय मशीनरी का दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है। अच्छे उम्मीदवारों का चुनाव में जितना बहुत मुश्किल हो गया है। राजनीतिक दलों में ठेकेदारों का वर्चस्व हो गया है। ऐसे लोगों के चंगुल से राजनीति को बचाना होगा।

श्री खरे ने कहा कि देश का संविधान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लंबे संघर्ष से मिली आजादी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। संविधान हमें सिर ऊंचा करके जीने का अधिकार देता है। संविधान की मूल भावना को लंबे समय से अनदेखा किया जा रहा है। यह भारी विडंबना है कि संविधान की शपथ ली जाती है लेकिन संविधान की प्रस्तावना के बारे में जानकारी नहीं होने से संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी गैर जिम्मेदाराना बातें किया करते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ महाभियोग लाया जाना चाहिए। संविधान की प्रस्तावना के बारे में बच्चों से लेकर सभी नागरिकों को उसका पाठ अनिवार्य रूप से अवगत कराया जाना चाहिए। श्री खरे ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना के बारे में जागरूकता लाने के लिए राजनीतिक सामाजिक संगठनों को भी सक्रिय पहला करना चाहिए। श्री खरे ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना को जीवन में उतरने की जरूरत है। संविधान की प्रस्तावना निम्नलिखित है।

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति ,विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवंत 2006 विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनिमित और आत्मार्पित करते हैं।

श्री खरे ने कहा कि हम भारत के लोगों की एकता और भाईचारा भारत को समतामूलक और समृद्ध बना सकता है। इसी दिशा में देश को आगे बढ़ना चाहिए।

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