बुलडोजर आतंक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देर आए , दुरुस्त आए कहावत जैसा

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बुलडोजर आतंक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देर आए , दुरुस्त आए कहावत जैसा

लंबे समय तक किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति बेहद आपत्तिजनक
घोंसला तो चिड़िया का भी नहीं गिराया जाता : अजय खरे।

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बुलडोजर आतंक पर दिए गए फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने उसे देर से आया राहत भरा फैसला कहा है। बुलडोजर आतंक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देर आए , दुरुस्त आए कहावत जैसा है। श्री खरे ने कहा कि एक तरफ सर्वोच्च अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई को अराजकता कहा है लेकिन वहीं उसे रोकने में काफी विलंब भी हुआ। यह भारी विडंबना है कि लंबे समय तक बुलडोजर की अराजकता चलती रही और समय रहते संज्ञान नहीं लिया गया। कानून व्यवस्था के नाम पर बुलडोजर कार्रवाई को बड़ा तमाशा बना दिया गया।

श्री खरे ने कहा कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो अपने आप को बुलडोजर बाबा कहलवाने में गौरवान्वित महसूस करने लगे। ऐसी मनमानी कार्रवाई होने से अन्य राज्यों में भी इसका गलत संदेश जाने लगा। इस दौरान बुलडोजर का भारी दुरुपयोग किया गया। बुलडोजर के माध्यम से आतंक फैलाकर संवैधानिक व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गई। शासन प्रशासन की मनमानी पर न्यायालय की “किंकर्तव्यविमूढ़” स्थिति बनी रही।

श्री खरे ने बुलडोजर कार्रवाई को सामंती कहा। उन्होंने बताया कि पुराने जमाने में कुछ राजा महाराजाओं के द्वारा किसी दोषी या अपने विरोधी को हाथी से कुचलवाने जैसा अत्यंत क्रूर बर्बर कृत्य करवाया जाता था। आधुनिक दौर में उसकी जगह बुलडोजर ने ले ली। श्री खरे ने कहा कि दंड स्वरूप किसी भी व्यक्ति का घर नहीं गिराया जा सकता भले उसे फांसी की सजा क्यों ना हुई हो। वैसे तो घोंसला चिड़िया का भी नहीं गिराया जाता। एक सभ्य समाज में इसे अंतिम विकल्प के रूप में भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

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