भारत देश आज भी सोने की चिड़िया है,, लेकिन पिंजरे में कैद: एड प्रवीण कुमार पाण्डेय, उच्च न्यायालय जबलपुर।

भारत देश आज भी सोने की चिड़िया है,, लेकिन चंद लोगों के पिंजरे में कैद, एड प्रवीण कुमार पाण्डेय, उच्च न्यायालय जबलपुर।
भारत देश आज भी सोने की चिड़िया है किंतु भारत देश की स्वतंत्रता के बाद व्यवस्थाएं देख रहे लोगों ने अंग्रेजों, विदेशियों आक्रमणकारियों से बद्तर स्थित कर दी है हम बात कर रहे हैं भारतवर्ष की जिसे पूर्व में कई नाम से भी जाना गया और अब भी पहचाना जाता है भारत एक विशाल देश हैं एक समय ऐसा था जब ईमानदारी और सत्यता में देश अपनी पहचान बनाकर रखता था आपसी भाईचारा ईमान धर्म धरोहर के रूप में अपनाई जाती थी अपनी संस्कृति के प्रति लोगों में ईमानदारी निष्ठा कूट कूट कर भरी थी और भारत देश सोने की चिड़िया कहलाता था आक्रमणकारियों और राजतंत्र से देश मुक्त हुआ अंग्रेजी हुकूमत भी चली गई स्वतंत्रता के लिए हमारे देश के कई जुनूनी देशभक्तों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया है अब स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री दो ही पद प्रमुख रूप से इस देश को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं राजनीतिक दलों द्वारा वोटबैंक और सत्ता लोलुपता को आगे रखकर राजनीति की जा रही हैं यह छिपा नहीं है वर्तमान राजनीति का स्वरूप ऐसा लगता है कि चुनावी घोषणाएं बोली लगाकर वोट की खरीदी कर रही है।
भारत देश में गरीबों की संख्या काफी अधिक है उनके उत्थान के लिए चलाई जा रही योजनाओं का सच यह है कि गरीबों से ज्यादा गरीबी हटाने वाले अमीर हो गये पद पर बैठे लोग अपनी तिजोरी की भूख मिटा रहे हैं राजनीति में जातिगत और धार्मिक समीकरण बैठाने के चक्कर में सामाजिक व्यवस्था में विघटन हो रहा है शासन प्रशासन की व्यवस्था में रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार इतना बढ़ चुका है कि पुलिस के सिपाही और पटवारी जैसे कनिष्ठ पदों पर बैठे लोगों के यहां जब छापा पड़ता है तब संपत्तियों का खुलासा होने के बाद लोगों की आंखें फट जाती है।
यह नहीं कहा जा सकता कि भारतवर्ष के लोग अमीर नहीं हैं जबकि देश के आंकड़े में गरीबी ज्यादा है इन दोनों पहलुओं की वास्तविकता कुछ और ही है देश में कुछ खास लोगों ने अपनी सामर्थ्य अनुसार सोना सहित बहुमूल्य द्रव्य पदार्थ भूमि संपत्तियां काफी मात्रा में संग्रहित कर लिया हैं और भारत का पैसा विदेशों में जा रहा है। एक ऐसा भी दौर आया जब राजनीतिक गलियारे से यह आवाज उठी कि भारत देश के बाहर जो काला धन है उसे देश में लाया जाएगा और देश की गरीबी मिट जाएगी भ्रष्टाचारियों का नाम भी सामने आएगा किंतु काला धन तो नहीं आया पर इस 10 वर्ष में बहुत सारा भारत का काला धन विदेशों में चला गया देश की सरकार काला धन लाना तो दूर की बात है भारत देश से विदेश जा रहे रूपयों को नहीं रोक पाई।
महंगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे राष्ट्रहित के मुद्दे सरकार की लोक लुभावनी जनकल्याणकारी योजनाओं के आगे नहीं टिकी जानकार होते हुए भी जानता उन मुद्दों से भटक गई जिन मुद्दों को लेकर सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी देखा जाए तो सरकार बनाने के लिए जिन राजनीतिक दलों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में रेवाड़ी बांटी जाती है और कर्ज लेकर उस योजनाओं का संचालन किया जाता है हालत यह है कि देश भले ही कर्जदार हो जाए केंद्र और राज्य की सरकारें अपने राजनीतिक भविष्य को साधते हुए जनता की भावनाओं और जरूरतों को देखकर काम कर रही हैं जनता जस की तस है लेकिन राजनीतिक दलों के बैंक बैलेंस और नेताओं की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
मध्यप्रदेश में परिवहन विभाग के सिपाही के पास मिली संपत्ति कोई आखिरी घटना नहीं है लगभग सरकार के सभी विभागों में कुछ ऐसे अधिकारी कर्मचारी हैं जो अपनी आय से कई गुना अधिक संपत्ति अर्जित कर चुके हैं और अपने रिश्तेदारों के नाम प्रॉपर्टी बनाकर जनता के टैक्स का पैसा लूट रहे हैं शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह व्यावसायिक हो चुकी है यह किसी से छिपा नहीं है एक जमाना था कि वैद निशुल्क उपचार करते थे और शिक्षक गुरुकुल की परंपरा निभाते हुए अपनी सीमित आय पर अपना जीविकोपार्जन करते थे पंच परमेश्वर बिना लोभ भय और मोह निष्पक्ष फैसला करते थे लेकिन बदलते युग के साथ अब शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था सुविधा संपन्न लोगों के हाथ की कठपुतली बन चुकी है हमारी सरकारें चाह कर भी इन दोनों विभागों पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है निजी व्यवसाय से जुड़ चुके शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग की कमाई असीमित है।
शासन के राजस्व, पुलिस,आबकारी विभाग, खनिज विभाग, खाद्य विभाग, भूमि विक्रय पंजीयन (रजिस्ट्री ) पंचायत विभाग सहित अनेकों ऐसे विभाग हैं जहां रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है शासन की योजनाएं बनाई जाती हैं और चलाई भी जाती हैं लेकिन धरातल पर इन योजनाओं का दोहन इस तरह किया जाता है कि जनता तक पहुंचते पहुंचते योजनाएं दम तोड़ देती हैं इन्हीं जनकल्याणकारी योजनाओं से जुड़े विभाग के अधिकारी कर्मचारी मालामाल होते हैं दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करते हैं लेकिन शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं से जनता का कितना कल्याण हुआ है केवल कागजी आंकड़ों तक सीमित होता है। इन विभागों के जिम्मेदारों की काली कमाई विभिन्न व्यावसायिक कार्यों में पर्दे के पीछे से लगाई जा रही हैं और नंबर दो के पैसे को नंबर एक बनाया जा रहा है।
यदि इसी तरह से सरकारों और व्यवस्था का रवैया रहा तो मानिए देश गुलामी से भी बद्तर स्थित की ओर तेजी से बढ़ रहा है कुछ चंद लोगों के पास अपार धन संपत्ति आ रही है कि कमाई को रखने के लिए जगह नहीं है लोग अवैध कमाई गई संपत्ति को अपने विश्वासपात्र लोगों के नाम पर शराब कारोबार और भूमि प्रापर्टी खनिज में लगाकर अंधाधुंध कमाई कर रहे हैं दूसरी तरफ राजनीति न तो अब समाजसेवा रही और न ही जनता जनार्दन रही धन दौलत वाले व्यवसायिक पृष्ठभूमि वाले राजनेता जिस तरह से चुनाव में धनबल का उपयोग कर रहे हैं ऐसे में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए राजनीति करने के लिए नहीं बची है।
राजनीति के दूसरे पहलू की तरफ देखें तो लोभ लालच और चुनावी घोषणाओं के चक्रव्यूह में फंसकर जनता जनार्दन की मति भ्रमित हो रही है हालत यह है कि पंचायत स्तर के चुनाव में लाखों लाख रुपए खर्च होने लगे हैं रुपए खर्च करके हासिल की गई सत्ता से इमानदारी की उम्मीद करना कितना हद तक सही है बताने की जरूरत नहीं है ऐसी स्थिति में जो गरीब है दिनों दिन गरीब होता जा रहा है और धनवान वर्ग समाज सेवा के नाम पर राज कर रहा है, कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत देश अब भी सोने की चिड़िया है लेकिन यह सोने की चिड़िया सिस्टम के कुछ खास लोगों के पिंजरे में कैद है, दुर्भाग्य यह है कि जितना देश के आक्रमणकारियों, अंग्रेजों, और राजतंत्र में लूट अत्याचार नहीं हुआ अब उससे भी अधिक प्रजातंत्र में जनता के भाग्य विधाता कहे जाने वाले सरकार में बैठे जिम्मेदारों के जमाने में लूट, अत्याचार, भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
लेखक, चिंतक, विचारक, वरिष्ठ अधिवक्ता – प्रवीण कुमार पाण्डेय उच्च न्यायालय जबलपुर, संपर्क सूत्र +91 88393 84679