भारत देश में भिक्षावृत्ति सामाजिक कलंक इसका उन्मूलन क्यों जरूरी,,,✍️

भारत देश में भिक्षावृत्ति सामाजिक कलंक इसका उन्मूलन क्यों जरूरी,,,✍️

भारत जहां शासन की जनकल्याण योजनाएं इतनी है कि गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की तमाम जरूरतों की पूर्ति आसानी से की जा सकती है। यह कल्याणकरी योजनाएं केंद्र सरकार और तमाम राज्य सरकारों द्वारा संचालित की जाती है। जब संपूर्ण भारत में गरीब वर्ग के लिए मुफ्त अनाज, आवास, वृद्धावस्था पेंशन, दिव्यागों के सामाजिक कल्याण के लिए योजनाएं चलती हो, फिर हमारे आसपास भीख मांगते लोग जो अपनी मजबूरी, शारीरिक लाचारी, गरीबी का प्रदर्शन कर भिक्षावृत्ति कर रहे है। हमारे समाज एवं सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते दिखाई देतें है। भिक्षावृत्ति एक सामाजिक कलंक है। जिसका उन्मूलन सरकारी प्रयासों के साथ सामाजिक कोशिशों से ही संभव हैं। भिक्षावृत्ति का होना एक और तो शासन की योजनाओं के उचित क्रियान्वयन पर प्रश्न खड़े करता है। क्या भीख मांगकर गुजारा कर रहे व्यक्तियों और परिवारों तक सरकार की पहुंच नहीं बन पाई। क्या इन्हें सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएं प्राप्त नहीं हो रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने हिस्से की सरकारी सुविधाओं को प्राप्त करने के बाद भी भीख मांगने का बेगैरत कार्य किया जा रहा है।

भारतीय समाज में भिक्षावृत्ति एक सामाजिक बुराई है, जो समाज में बहुतायत में दिखाई देती है। आमतौर पर देखा जाता है कि सड़कों, चौराहों, मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों के समीप भिक्षा मांगने वाले लोग जिन्हें लगता है कि उनका गुजारा भिक्षावृत्ति बगैर संभव नहीं है, जिन्होंने भिक्षावृत्ति को अपने एवं परिवार के भरण पोषण का साधन मान लिया है। यह जानते हुए भी कि भिक्षावृत्ति एक समाजिक बुराई है, यह एक अपराध भी है। इस सामाजिक बुराई में संलग्न है। भिक्षावृत्ति नामक सामाजिक बुराई को दूर करना हमारे समाज की महती आवश्यकता है। इसे लेकर महानगरों में तो सख्ती बरती जा रही है। प्रशासनिक सख्ती के बावजूद यह बुराई समाज में व्याप्त है। हाल ही में एमपी के इंदौर और भोपाल में भिक्षा मांगने पर अपराध दर्ज किया गया। इंदौर भोपाल के कलेक्टरों द्वारा भी भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 के तहत आदेश जारी किए है। भोपाल कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 3 फरवरी को जारी अपने आदेश में उल्लेखित किया कि ट्रैफिक सिग्नलों, चौराहों, धार्मिक स्थलों, पर्यटन स्थलों एवं सामाजिक स्थलों में भिक्षावृत्ति में लिप्त व्यक्तियों द्वारा स्वयं या अपने परिवारों के साथ भिक्षावृत्ति की जा रही है। आदेश के मुताबिक ये लोग भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाए जाने संबंधी शासन के आदेशों का अहवेलना कर रहे है, वहीं दूसरी ओर यातायात में भी बाधक बन रहे है। इनमें से अनेकों लोगों का आपराधिक इतिहास भी रहता है। उक्त आदेश के माध्यम भिक्षावृत्ति को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है।

एमपी की आर्थिक राजधानी इंदौर में  भी प्रशासनिक सख्ती का उदाहरण देते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग के भिक्षावृत्ति उन्मूलन दल ने  भिक्षा देने के मामले में लसुड़िया थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाया है। एक बात हमें ध्यान रखना चाहिए महज सरकारी सख्ती से इस कलंक को समाज से मिटाना संभव नहीं है, इसके लिए सामाजिक  जागरण की आवश्यकता है। समाज में कार्यरत सामाजिक संगठनों को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु विशेष उपाएं अपनाने होगें। यह हर नागरिक का परम दायित्व है कि वह भिक्षावृत्ति उन्मूलन में अपना सहयोग देते हुए भीख देने की प्रवृति बंद करें, भीख मांगते दिखने पर पुलिस और महिला बाल विकास विभाग को सूचित करें, समाज के सहयोग से भिक्षावृत्ति करने वाले व्यक्ति को जो सही में मजबूर है, उसे शासन की योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास करें, उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़कर उनका सामाजिक सहयोग करें।

दरअसल भीख मांगने की इस वृत्ति को जीवन यापन का साधन बनाने वाले लोग क्या सचमुच गरीब है? क्या उन तक शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है? क्या भिक्षावृत्ति में लगे लोग सचमुच शारीरिक रूप से लाचार है। इन प्रश्नों पर विचार करने पर हम पाते है कि कोई भी ज़मीरदार व्यक्ति इस वृत्ति को नहीं चुनता, इसके पीछे या तो मजबूरी है या फिर लालच काम कर रही है जो व्यक्ति, परिवार या समुदाय को भीख मांगने के लिए प्रेरित कर रही है। इसे ऐच्छिक और अनैच्छिक दो भागो में बांटा जा सकता है। भारत में अनेकों समाज में भिक्षावृत्ति को बरसो से चली आ रही सामाजिक प्रक्रिया का हिस्सा मानने वाले सामाजिक समुदाय भी है, जो भिक्षा मांगकर ही अपने परिवार का गुजारा करते है, इसे परंपरा का अंग मानकर चलना इस आधुनिक दौर में उचित नहीं कहा जा सकता है। दूसरे शारीरिक रूप लाचार लोग उन्हें ऐच्छिक भिक्षावृत्ति माना जा सकता है। दूसरा अनैच्छिक भिक्षावृत्ति जिसका स्वरूप अधिकांशत: महानगरों में देखा जा सकता है। जहां आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने भिक्षावृत्ति को कमाई का साधन मान लिया है। यहां भिक्षावृत्ति एक व्यवसाय है। जिसमें पूंजी लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां मनुष्य की परोपकार, दया, करुणा जैसी पवित्र भावनाओं का भयादोहन  किया जाता है। मुंबई जैसे महानगरों में तो आपराधिक प्रवृति के गिरोहों ने भिक्षावृत्ति को कमाई का धंधा बना लिया है। मुंबई में करोड़पति भिखारियों के चर्चे तो बहुत होते है। जिन्होंने भिक्षावृत्ति से करोड़ों का कारोबार बनाया है। ऐसी ही जानकारी के अनुसार मुंबई के करोड़पति भिखारियों की जानकारी देश के प्रमुख समाचार–पत्रों में प्रकाशित हुई थी। मुंबई में करोड़पति भिखारियों में भरत जैन को भारत ही नहीं दुनियां का सबसे अमीर भिखारी बताया गया था। जिसके पास 8 करोड़ रु की संपत्ति है। मुंबई में फ्लैट और दुकानें हैं। इसकी मासिक कमाई 80 हजार रु हैं। भरत के फ्लैट की कीमत 2 करोड़ रु है। यह शिवाजी टर्मिनल और आजाद मैदान में भीख मांगते है। इसके अलावा भी भिखारी है जिनकी संपत्ति लाखों में है। इस रिपोर्ट में सरवतिया दैवी यह भीख से महीने में 50 हजार रु महीना कमाती है। इन्होंने जीवन बीमा भी कराया है जिसकी साल भर की किस्त 36 हजार देती हैं। इस सूची में लक्ष्मी दास, संभाजी काले, कृष्णा कुमार गीटे का नाम भी शामिल है।

  भारतीय फिल्म जगत में ऐसी अनेकों फिल्में बनी है जिसकी कहानी में लावारिस बच्चों को अंधा, लुला, लंगड़ा कर भीख मंगवाने का आपराधिक कार्य करवाया जाता है। यह गैंग महानगरों में कार्य करती है। इन फिल्मों की कहानी आधी भी सच मान ली जाए तो यह कृत्य एक बहुत बड़ा अपराध है। हमारे समाज में भूखे को रोटी देना पुण्य का कार्य समझा जाता है। आए दिनों हमने अनेकों साधु–संतों फकीरों को भिक्षा मांगते देखा है, जो भीख मांगने के लिए धार्मिक चोला पहनते है। दरअसल यह लोग आम आदमी की भावनाओं का भयादोहन कर रहे होते है। भिक्षावृत्ति पर समाज और शासन स्तर पर अनेकों बार बहसें चली हैं। हाल में भी यह विषय चर्चा में है। भिक्षावृत्ति उन्मूलन में नागरिक समाज को महती भूमिका निभानी होगी। भारत की जनता ने समय–समय पर अनेकों सामाजिक बुराइयों को नागरिक प्रयासों से खत्म किया है। भिक्षावृत्ति के विरुद्ध शासन के साथ नागरिक समाज को भी जागरूक होने की आवश्यकता है। अपने शहर और धार्मिक स्थलों के बाहर भीख मांगकर गुजारा कर व्यक्ति को 10 रु देकर हमने परोपकार का कार्य नहीं किया यह हमने भिक्षावृत्ति की सामाजिक बुराई को बढ़ाने का कार्य किया। इस अपराध में हमारी भी सहभागिता हो गई है। इस प्रवृति का समूल उन्मूलन भारतीय समाज के लिए बेहद जरूरी है। इस सामाजिक कलंक को मिटाने के लिए नागरिकों के साथ सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को भिक्षावृत्ति उन्मूलन में शासन के साथ सहभागिता करने की आवश्यकता है।

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नरेंद्र तिवारी स्वतंत्र लेखक
7, शंकरगली मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी मप्र।
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