शहीदों की शहादत पर सियासत : ऑपरेशन सिंदूर से सीजफायर और वोट के लिए घर-घर सिंदूर की राजनीति..

शहीदों की शहादत पर सियासत : ऑपरेशन सिंदूर से सीजफायर और वोट के लिए घर-घर सिंदूर की राजनीति.
कश्मीर घाटी एक बार फिर लहूलुहान हुई,पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले ने पूरे देश को भीतर तक हिला दिया ! देश के नागरिकों और वीर जवानों की शहादत पर देश की आत्मा रो पड़ी ! जहाँ देश का पूरा विपक्ष और जनता सत्ता के साथ आतंकवाद से मुकाबले के लिए डटकर खड़ी थी, वही सत्ता के गलियारों में, इस पीड़ा को भी राजनीति के प्रचार में ढालने की तैयारी चल रही थी !आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का ऐलान तो किया, पर वह ऑपरेशन बिना किसी ठोस परिणाम के कुछ दिनों में ‘सीजफायर’ के खोखले ऐलान में बदल गया ! और उसके बाद शुरू हुआ सरकार का राजनैतिक एजेंडा ‘घर-घर सिंदूर’ पहुँचाने का अभियान — एक ऐसा कार्यक्रम जिसने जनमानस के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया !
पहलगाम हमला : एक बार फिर सुरक्षा तंत्र की पोल खुली !
बार-बार आतंकी हमलों से यह साफ हो गया है कि घाटी में न तो स्थिति सामान्य है, न ही सरकार के पास आतंकवाद से निपटने की कोई स्पष्ट रणनीति ! पहलगाम हमला न केवल खुफिया तंत्र की विफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि केंद्र सरकार सिर्फ़ प्रतिक्रियात्मक राजनीति कर रही है ! हर बार की तरह इस बार भी हमले के बाद ट्विटर पर शोक, टीवी चैनलों पर बयानबाज़ी और थोड़े दिनों बाद मौन !आतंकवादी पहलगाम तक कैसे पहुंचे और घटना को अंजाम देने के बाद कहाँ गए ? यह सबाल हर भारतवासी के जेहन में मौजूद है !
ऑपरेशन सिंदूर: एक अधूरी लड़ाई या प्रचार का औज़ार?
सरकार ने इस बार ऑपरेशन ‘सिंदूर’ का ऐलान करके राष्ट्र को यह संदेश देने की कोशिश की कि अब कठोर कार्रवाई होगी ! परंतु कुछ ही दिनों में, बिना किसी ठोस नतीजे के, सरकार ने अचानक सीजफायर की घोषणा कर दी !सवाल उठता है — क्यों? क्या आतंकवाद के खिलाफ हमारी नीति इतनी कमजोर है कि वह दो दिन के सैन्य अभियान में ही थक जाती है ? क्या विदेश नीति के मामले में जो बताया जा रहा है वह असत्य है,वास्तव में यहाँ भी सरकार फेल हो गई ?
सत्य यह है कि यह सीजफायर का निर्णय अमेरिका के दबाव में लिया गया,प्रधानमंत्री काअमेरिका के सामने नतमस्तक होना सबालिया है ! शायद सरकार को यह उचित लगा कि शांति का दिखावा बेहतर रहेगा,लेकिन यह शांति नहीं, कायरता का प्रतीक बन गई ! एक ओर हमारे जवान शहीद हो रहे थे, दूसरी ओर सरकार अंतरराष्ट्रीय मंच पर छवि बचाने और देश की जनता के सामने मीडिया के माध्यम से झूठ परोसने में व्यस्त थी !
प्रधानमंत्री की चुप्पी और विदेश नीति की विफलता :
प्रधानमंत्री जो सामान्यतः हर घटना पर मुखर होते हैं,इस पूरे घटनाक्रम पर असहज रूप से शांत दिखे ! क्या यह चुप्पी अमेरिका के दबाव में थी? क्या यह अंतरराष्ट्रीय छवि के मोह में राष्ट्रहित को गिरवी रख देने का संकेत थी ?
देश को यह जानने का हक है कि जिन सैनिकों की शहादत को लेकर भावनात्मक नारों का उपयोग कर सरकार सत्ता में आई, उन्हीं सैनिकों की शहादत पर अब ‘कूटनीतिक मजबूरी’ क्यों दिखाई जा रही है ?
‘घर-घर सिंदूर’ अभियान: श्रद्धांजलि या शर्मनाक राजनीति ?
जब देश सवाल पूछ रहा था, तब भाजपा ने ‘घर-घर सिंदूर’ पहुँचाने का अभियान शुरू किया — यह कहकर कि यह शहीदों को श्रद्धांजलि है। लेकिन जनता जानती है कि यह श्रद्धांजलि नहीं, एक भावनात्मक चाल है जो खुले तौर पर वोट साधने की नाकाम कोशिश है ! सिंदूर, जो भारतीय नारी के सौभाग्य का प्रतीक होता है, उसे शहादत से जोड़कर सियासी जुलूस बनाना न केवल असंवेदनशीलता है, बल्कि यह शहीदों की स्मृति का राजनीतिक दुरुपयोग है !
जनता का आक्रोश इस बात से है कि सरकार असली मुद्दों से ध्यान हटाकर प्रतीकों और भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है ! “घर-घर सिंदूर” कार्यक्रम ने लोगों को यह एहसास दिला दिया कि देश की सुरक्षा अब सरकार की प्राथमिकता नहीं, प्रचार की विषयवस्तु बन गई है ! भारत के लोग अब भावनाओं से नहीं,तथ्यों से बात करना चाहते हैं !
क्यों हर आतंकी हमले के बाद ठोस नीति नहीं बनती?
क्यों हर ऑपरेशन अधूरा छोड़ दिया जाता है?
क्यों नागरिकों और जवानों की शहादत के बाद,सरकार जवाब देने के बजाय प्रतीकों की राजनीति करने लगती है ?
और सबसे अहम — क्या हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका के सामने इतने विवश और लाचार हैं कि अपने ही देश के जवानों की शहादत को भी दबा देना बेहतर समझते हैं !
देश अब जाग चुका है,यह स्पष्ट हो चुका है कि सरकार आतंकवाद से अधिक प्रचार के प्रति चिंतित है ! कश्मीर की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और दिल्ली में बैठे नीति-निर्माताओं को इससे अधिक चिंता आगामी चुनावों की है !शहीदों की शहादत पर श्रद्धांजलि की जगह चुनावी रैली,रथ और सोशल मीडिया अभियान शुरू हो जाते हैं !
ऑपरेशन सिंदूर,सीजफायर, और घर-घर सिंदूर — तीनों इस बात के प्रतीक हैं कि सरकार न तो स्पष्ट रणनीति बना पा रही है, न ही जनता को भरोसा दे पा रही है !
अब जनता सरकार से पूछ रही है कि………..
“कब तक शहादत को नारों में बदलकर वोट माँगोगे? कब तक हमारी संवेदनाओं से खेलोगे?”
लेकिन मौजूदा असंवेदनशील सरकार निरुतर है वह अगले चुनावों की जीत का दम भर रही है !
लेखक -गिरिजेश कुमार पाण्डेय
”अगस्त्याश्रम”,भिटौहा
विधानसभा क्षेत्र-सिरमौर
व्हाट्सएप-9753141518