Rewa news, मरे हुए व्यक्तियों को सम्मन तामील करा देता है राजस्व विभाग, रिश्वत लेने के लिए यहां निजी मंडली कर रही काम।
Rewa news, मरे हुए व्यक्तियों को सम्मन तामील करा देता है राजस्व विभाग, रिश्वत लेने के लिए यहां निजी मंडली कर रही काम।
राजस्व प्रकरणों को विवादित बनाकर शुरू होता है रिश्वत का खेल, अन्याय के बीच कैसे करें न्याय की उम्मीद।
विराट वसुंधरा
रीवा। जिले का राजस्व विभाग इन दिनों उन सूरमाओं के हवाले है जो खुद को जिला सत्र न्यायालय और हाईकोर्ट के आदेश पर भारी पड़ रहे हैं जिले के सिरमौर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व न्यायालय और सिरमौर तहसील न्यायालय में हजारों मामले न्याय की बांह जोट रहे हैं राजस्व न्यायालय में किसानों की लगने वाली भीड़ और उनके द्वारा खुलेआम लगाए जाने वाले आरोपों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुर्सी पर बैठे अधिकारियों की मंशा क्या है लोगों ने बताया कि जिन फरियादियों के पास रिश्वत देने की कूबत है वो राजस्व न्यायालय से अपने पक्ष में फैसला करवा लेते हैं और जिनके पास रिश्वत देने के लिए नहीं है वह न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं देखा जाए तो जमीन नामांतरण यानी सरकारी दस्तावेज में जमीन के मालिक का नाम दर्ज होना है। इसके लिए सरल और सीधी प्रक्रिया है लेकिन इसे सरकारी मशीनरी ने ही इतना जटिल बना दिया है कि बिना रिश्वत दिए नामांतरण अब नामुमकिन सा हो गया है।
किसानों ने लगाया रिश्वतखोरी का आरोप।
बीते दिन सिरमौर अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय पहुंचे फरियादी महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा खुलेआम एसडीएम राजेश सिन्हा और नायब तहसीलदार लाल गांव रमाकांत तिवारी पर रिश्वतखोरी करने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दिए हैं उनका कहना था कि एक फर्जी वसीयत के आधार पर जमीन का एक पक्षीय तौर पर भारी भरकम रिश्वत लेकर लालगांव नायब तहसीलदार द्वारा जमीन का नामांतरण कर दिया गया है फरियादियों ने कहा कि यहां जमीन को गलत तरीके से वसीयत कर दिया जाता है और फिर उसकी अपील की जाती है राजस्व विभाग द्वारा की गई गलती का खामियाजा गरीब किसान भुगतता है और अपनी संपत्ति पाने के लिए डर-डर की ठोकरें खाता रहता है लेकिन उसे न्याय तब तक नहीं मिलता जब तक रिश्वत की चढ़ोत्तरी नहीं चढ़ जाती फरियादियों ने यह भी आरोप लगाया कि इसके लिए अधिकारियों ने निजी व्यक्तियों को रिश्वत लेने के काम में लगा रखा है और कुछ वकील भी हैं जो राजस्व न्यायालय में अपनी धाक जमा रखे हैं उन्हीं वकीलों द्वारा मनमानी ढंग से नियम कानून को दरकिनार कर राजस्व मामलों का फैसला लिख लेते हैं उसमें सिर्फ दस्तखत संबंधित अधिकारी बनाते हैं ऐसे में जहां अन्याय के खुलेआम आरोप लग रहे हैं तो न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
वसीयतनामा में नामांतरण करने नहीं है अधिकार।
फरियादियों ने यह भी आरोप लगाया कि वसीयत के मामलों में नामांतरण करने का अधिकार तहसील राजस्व न्यायालय को नहीं है बावजूद इसके तहसील न्यायालय में नियम विरुद्ध तरीके से वसीयतनामा में नामांतरण किया जा रहा है क्योंकि अधिकारियों का मकसद होता है कि किसी तरह से मामले को विवादित बना दिया जाए जिससे कि रिश्वतखोरी की जा सके, और ऐसा है भी क्योंकि आए दिन राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथों लोकायुक्त के हाथों धरे जा रहे हैं अभी बीते दिन ही मऊगंज कलेक्ट्रेट में पदस्थ अपर कलेक्टर द्वारा एक न्यायालयीन प्रकरण में रिश्वत ली जा रही थी जिसे लोकायुक्त टीम ने रंगे हाथों पकड़ा है।
रिश्वत लेने के लिए लगे हैं निजी लोग।
बताया गया है कि तहसील न्यायालय से लेकर एसडीएम कोर्ट तक संबंधित अधिकारियों के निजी लोग काम कर रहे हैं जाहिर सी बात है कि जब शासन का कर्मचारी नहीं है तो फिर संबंधित अधिकारी का काम कैसे देख रहा है न्यायालय से दस्तावेज चोरी हो जाते हैं ऐसे भी मामले सामने आए हैं फरियादियों ने बताया कि तहसील न्यायालय में संदीप सिंह नामक व्यक्ति काम कर रहे हैं और एसडीएम कार्यालय में अभय द्विवेदी नामक व्यक्ति सर्वे सर्वा है जबकि ये शासन के कर्मचारी नहीं है, रिश्वत के लेनदेन की कहानी इन्हीं प्राइवेट लोगों द्वारा बनाई जाती है और रिश्वत भी ली जाती है बताया जाता है कि प्राइवेट व्यक्ति जिस प्रकरण में फरियादियों से रिश्वत ले लेते हैं उनका काम हो जाता है फिर चाहे गलत हो या सही चाहिए तो सिर्फ और सिर्फ रिश्वत।
पत्रकारों पर भड़के सिरमौर एसडीएम।
तहसील न्यायालय लाल गांव में वसीयतनामा के आधार पर हुए एकपक्षीय नामांतरण और मुर्दा लोगों को सम्मन तामील कराने की शिकायत पर एसडीएम सिरमौर के पास उनकी व्हाइट लेने गए पत्रकारों को उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में एसडीएम कोर्ट में संबंधित व्यक्ति अपील कर सकता है पत्रकारों ने यह भी सवाल किया कि राजस्व विभाग की गलती के कारण जो मामले लंबित हैं और चल रहे हैं उनके निर्णय क्यों काफी लंबे समय तक लंबित रहती हैं जबकि इसमें राजस्व विभाग के लोगों की गलती से होता है यहां तक तो एसडीएम साहब ठीक थे लेकिन जैसे ही पत्रकारों ने सवाल किया कि तहसील न्यायालय और एसडीम कार्यालय में निजी लोग काम कर रहे हैं इस प्रश्न को सुनते ही एसडीएम सिरमौर भड़क उठे और उन्होंने माइक आईडी अपने टेबल से हटाते हुए मीडिया का न सिर्फ अपमान किया बल्कि पत्रकारों के उन सवालों का जबाब नहीं दिया जो कार्यालय के सामने पीड़ित किसानों ने आरोप निजी लोगों के खिलाफ लगाया था जबकि इस सवाल का जवाब किसी भी रूप में एसडीएम मीडिया को दे सकते थे।
इनका कहना है।
तहसील न्यायालय में हुए आदेश को एसडीएम कोर्ट में अपील की जा सकती है रिश्वतखोरी के लगाए गए आरोप निराधार हैं।
राजेश सिन्हा
एसडीएम सिरमौर