सिंगरौली

नगर निगम परिषद की बैठक में उपयंत्री को सस्पेंड कर एसडीओ और ईई पर,एमआईसी भ्रष्ट अधिकारियों पर लेगा फैसला,

सिंगरौली : नगर निगम परिषद की बैठक में नवजीवन बिहार स्थित शिवाजी कांप्लेक्स में पाइप निर्माण घोटाले में नगर निगम कमिश्नर घिर गए। खुद पर सवाल खड़ा होते थे नगर निगम कमिश्नर ने उपयंत्री अनुज पर सारा ठीकरा फोड़ते हुए सस्पेंड कर दिया जबकि एसडीओ पीके सिंह से महज वित्तीय प्रभार छीनकर कार्यवाही में खानापूर्ति की वहीं ईई व्हीपी उपाध्याय पर दरियादिली दिखाई और उन्हें अपनी तरफ से क्लीन चिट दे दिया। हालांकि अब घोटाले की फाइल पर एमआईसी को निर्णय लेना है।
गौरतलब है कि नगर निगम की परिषद की बैठक में मंगलवार को पार्षदों ने निर्माण कार्यों में हो रहे भ्रष्टाचार और घोटाला को मुद्दा बनाते हुए जमकर हंगामा किया। परिषद की बैठक शुरू हुई लेकिन पार्षदों ने शिवाजी कांप्लेक्स पाइपलाइन निर्माण कार्य में घोटाला करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने पर हंगामा शुरू कर दिया और जिम्मेदार अधिकारियों कि निलंबन की मांग करने लगे। पार्षदों के तेवर देख निगम के अध्यक्ष परिषद एक घंटे के लिए स्थगित कर दिया। पार्षद और अध्यक्ष के तेवर देख नगर निगम कमिश्नर बैक फुट पर नजर आए। परिषद में शिवाजी कांप्लेक्स पाइपलाइन, नल जल योजना निर्माण कार्य, आउटसोर्सिंग कंपनी के लेबर सप्लाई, सड़क में गड्ढे, सीवरेज लाइन जैसे मुद्दे छाए रहे। बता दें कि परिषद की बैठक की शुरुआत प्रश्नोत्तरी से शुरू होता है लेकिन परिषद की शुरुआत के पहले ही पाइपलाइन घोटाले में जिम्मेदार उपयंत्री एसडीओ सहित ईई पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के पार्षद उग्र हो गए। परिषद करीब एक घंटे बाद शुरू हुई तो पार्षदों ने पाइपलाइन घोटाले पर अब तक क्या कार्रवाई हुई उसकी जानकारी दें। जहां अध्यक्ष ने कमिश्नर डीके सिंह से पाइपलाइन घोटाले में हुई कार्रवाई के विषय में जवाब मांगा। कमिश्नर ने बताया कि शिवाजी कांप्लेक्स में जितने का भुगतान हुआ उतना कम नहीं हुआ है। आठ अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया है। जिनमें दो अधिकारियों का जवाब दिया गया लेकिन संतोषप्रद नहीं है। जैन अधिकारों ने जवाब नहीं दिया उन्हें आरो जारी किया जाएगा। जिसे एमआईसी में भेजा जाएगा और एमआईसी निर्णय लेंगी।

 

कमिश्नर की एकपक्षी कार्रवाई से तरह-तरह की चर्चा

सूत्रों का दावा है कि शिवाजी कांप्लेक्स पाइपलाइन पेमेंट की फाइल को देखकर पहले ही नजर में कमिश्नर डीके शर्मा ने फर्जी बताया था लिहाजा 3 महीने तक उन्होंने फाइल को अपने पास रखा। फिर अचानक उन्हें शिवाजी कांप्लेक्स पाइपलाइन निर्माण में सब कुछ ठीक लगने लगा और उन्होंने 38 लाख का भुगतान कर दिया। अब जब सवाल खड़े हुए तो उप यंत्री और एसडीओ को बलि का बकरा बनाकर उन पर कार्यवाही कर दी। जबकि ईई ने अपनी नोट सीट में स्पष्ट लिखा है कि मेरे द्वारा काम का भौतिक सत्यापन कराया गया जहां काम पूराहो ना पाया गया। बावजूद इसके उन्होंने ईई पर कोई कार्रवाई नहीं करना कई सवाल खड़े कर रहा है।

सब इंजीनियर को किया निलंबित , एसडीओ का छिना प्रभार

परिषद बैठक स्थगित के बाद नगर निगम आयुक्त कुछ पल के लिए भौच्चके रह गए। उन्हें लग रहा था कि अब क्या करें। इसके बाद परिषद हाल से निकले और अपने कमरे में चले गए। अब उन्हें अपने आप को बचाना था इसलिए आयुक्त ने बिना कुछ सही निर्णय लिए ही तत्काल सब इंजीनियर अनुज सिंह को तत्काल निलंबित कर दिया और एसडीओ पीके सिंह का सभी प्रभार छीन लिया गया। परिषद की बैठक फिर से शुरू हुई तो आयुक्त ने अपनी वाहवाही लूटने के लिए यह फरमान सुना दिया।

3 महीने तक आयुक्त क्यों दबाए रहे फाइल

बताया जाता है कि यह निर्माण कार्य नवजीवन विहार का तत्कालीन आयुक्त शिवेंद्र सिंह धाकरे के कार्यकाल का था। लेकिन उसी समय तत्कालीन आयुक्त का स्थानांतरण हो गया था और उनकी जगह पर आयुक्त डीके शर्मा आ गए थे जिसके चलते भुगतान की फाइल पेंडिंग पड़ी हुई थी। जब फाइल साइन करने के लिए आयुक्त डीके शर्मा के पास पहुंची तो 38 लाख का मामला देखकर आयुक्त भी फाइल साइन करने के मूड में नहीं थे। लेकिन जब सब कुछ समझ गए की लेखा-जोखा कैसे होता है तो फाइल में साइन कर दिए। इधर अध्यक्ष देवेश पांडे ने नवजीवन विहार पाइपलाइन निर्माण कार्य को लेकर जांच की मांग की तब आयुक्त की नींद खुली और जांच कराने लगे। 3 महीने का समय बीत गया आखिर आयुक्त जांच के नाम पर क्या कर रहे थे। लोगों की बातों पर गौर करें तो पूरे मामले में सब इंजीनियर, एसडीओ, कार्यपालन यंत्री भर दोषी नहीं है इस खेल में आयुक्त की भी बराबर की सहभागिता मानी जा रही है।

निलंबन और प्रभार छीनने को लेकर तरह-तरह की चर्चा

नवजीवन विहार पाइपलाइन निर्माण कर घोटाले को लेकर नगर निगम के अधिकारी पहले कहते थे कि सभी कार्य सही हुए हैं बिल ठीक बनी है लेकिन जब मामले में पेंच फंसा तो इनके सुर ही बदल गए। बताया जाता है कि 38 लाख 33 हजार 722 रुपए का भुगतान किया गया था। जांच में पाया गया कि लगभग 7 लाख 14 हजार का काम हुआ है। सूत्र तो यह दावा करते हैं कि नगर निगम कमिश्नर अपने आप को बचाने के लिए सब इंजीनियर और एसडीओ को बलि का बकरा बनाएं। लेकिन आयुक्त की इस कार्यवाही से तरह-तरह की चर्चा होने लगी है।

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