Rewa news:जेल में आत्मनिर्भर हुए कैदी, परिवार का बने सहारा!
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Rewa news:जेल में आत्मनिर्भर हुए कैदी, परिवार का बने सहारा!
रीवा. केन्द्रीय जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहे कैदियों के लिए यहां चल रहे उद्योग वरदान बन रहे हैं। कैदी जेल के अंदर उद्योगों में काम कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि अपने परिवारजन की मदद भी कर रहे हैं। एक कैदी ने जेल में रहकर ही पारिश्रमिक से बाहर अपनी मां का इलाज कराया और दूसरे ने भतीजी की शादी के लिए पैसे दिए।
केंद्रीय जेल रीवा में इस समय सात उद्योग चल रहे हैं, जहां कैदियों को 8-8 घंटे की शिट में काम पर लगाया जाता है। इस काम के बदले उन्हें पारिश्रमिक दिया जाता है, जो सीधे उनके बैंक खाते में जमा होता है। जेल अधीक्षक एसके उपाध्याय के अनुसार, इन उद्योगों से मिलने वाली आमदनी से कैदी अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं और कई बार वे अपनी मेहनत की कमाई से परिजनों के इलाज, शादियों और अन्य आवश्यकताओं के लिए पैसे भेजते हैं। उन्होंने बताया कि जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे रामबहादुर गोड़ ने अपनी मां के इलाज के लिए उद्योगों में किए गए काम से प्राप्त 16,000 रुपए खर्च किए। उनके लिए यह राशि जीवनदायिनी साबित हुई। वहीं, दशरथ साकेत ने अपने पिता महादेव के इलाज के लिए 8,000 रुपए भेजे।
इन्होंने की परिवार की मदद
1जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे राजकेश्वर उर्फ लल्लू पिता रामा कोल के बेटे की शादी थी। राजकेश्वर ने बेटे की शादी के लिए 10 हजार रुपए अपनी मजदूरी से दिए थे।
2 सतेन्द्र सिंह के भाई की तबियत खराब हुई तो उन्होंने इलाज के लिए 5 हजार रुपए दिए।
3 भतीजी की शादी में कैदी शंखलाल कोल पिता सुखदेव ने दस हजार रुपए भिजवाए थे।
जेल में 667 कैदी उद्योगों में कर रहे काम
जेल में संचालित 7 उद्योगों में 667 कैदी वर्तमान में काम कर रहे हैं। कुशल श्रमिकों को 152 और अकुशल को 95 रुपए की दर से मजदूरी मिलती है।
जेल में चल रहे उद्योगों से कैदियों को रोजगार मिलता है और वे अपनी मेहनत से अपने परिवार का सहारा बनते हैं। कई कैदियों ने इलाज और अन्य जरूरतों के लिए पैसे भेजे हैं।
एसके उपाध्याय, जेल अधीक्षक