मध्य प्रदेशलाइफ स्टाइल

विन्ध्य की डायरी: कहीं ऐसा तो नहीं चित्रकूट में वनवासी राम को खोजना पड़े

कहीं ऐसा तो नहीं चित्रकूट में वनवासी राम को खोजना पड़े

डॉ रवि तिवारी

वर्षों से उपेक्षित भगवान राम की तपोभूमि में अब विकास की बयार चलना शुरू हो गई है. जंगल,पहाड़ और नदियों के बीच नैसर्गिक सौंदर्य की अनुपम छटा समेटे इस क्षेत्र में कंक्रीट के जंगल स्थापित करने की जो होड़ प्रारंभ हुई है उससे चित्रकूट के तपोभूमि रह पाने पर संदेह गहराने लगा है. भगवान राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने वाले इस पवित्र भूमि में कभी कहा जाता था कि यहां के कण-कण में भगवान के चरण पड़े हैं,इसलिए इसके स्वरूप में उतना ही परिवर्तन किया जाया जितना लोगों की आस्था पर विपरीत प्रभाव न पैदा करें.

अब इस सोच को मुखरित होकर कहने वालों की फेहरिस्त न सिर्फ छोटी हो गई है, बल्कि यह कहा जाय कि लुप्त हो गई है तो गलत नही होगा.भारतरत्न राष्ट्रऋषि स्वर्गीय नानाजी देशमुख ने अपने जीवनकाल में कभी न यह चाहा और न कभी किया कि चित्रकूट के विकास के खाके में उसकी पौराणिक परिस्थितियों से समझौता किया जाय.उनके जीवनकाल में ग्रामोदय विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम, और उद्धमिता जैसे बड़े प्रकल्पों को आकार दिया गया लेकिन चित्रकूट की नैसर्गिक छटा को प्रभावित किए बिना बनाए गए इन प्रकल्पों को उसी भौगोलिक परिस्थितियों में स्वरूप दिया गया जैसे वे स्थान थे.

विकास और व्यवसायिकता की आँख मिचौली रही दौड़ में तपोभूमि को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की कल्पना सरकारी और निजी हाथ तेजी से मूर्त रूप दे रहे हैं. हर दिन किसी पुराने भवन को ढ़हा के उसे बहुमंजिला बनाने की होड़ मची हुई है. जंगल-पहाड़ो के बीच वन्य प्राणियों का विचरण शून्य हो गया है. पहले परम् पवित्र सलिला मंदाकिनी के किनारे हिरणों के झुंड अनायास ही दिखाई दे देते थे.अब वो वन्य प्राणी कहाँ चले गए पता ही नही चलता.वाल्मीकि रामायण और रामचरित्र मानस में चित्रकूट की जिस महिमा और छटा का वर्णन किया गया है धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. कभी अध्यात्म और कर्मकांड का प्रमुख केंद्र रहे चित्रकूट में अब उसे महसूस करना आसान नही रहा. अब वक्त आ गया है कि जिम्मेदार लोग इस पर भी गौर करे.

विकास बनाम राजनीति

सतना हवाई पट्टी का मसला विकास के वजाय राजनीति का केंद्र बनता जा रहा है. अतिक्रमण की चपेट में आने के बाद वोट की राजनीति के प्रभाव में सब कुछ जानने के बाद प्रशासन ने चुप्पी साध गेंद को राजनीति के पाले में डाल दिया है.वषों तक उपेक्षित रही हवाई पट्टी के नाम दर्ज सैकड़ो एकड़ जमीन ने शहर के सफेदपोश भूमाफियों का जितना पोषण किया उसमें राजस्व अमले को खुरचन न मिली हो ऐसा हो नही सकता.फौती नामांतरण के नाम पर जो खेल खेला गया उसने पुराने नक्शे और 58-59 को खतौनी के पन्नो को ऐसा बंद किया कि शायद ही कभी खुल पाए. खैर कांग्रेस ने अब सतना के सम्मान की इस लड़ाई को अंजाम तक पहुचाने का बीड़ा उठाया है देखते हैं वो इसे कहाँ तक ले जाते हैं.

जनता नेता आमने-सामने

चित्रकूट क्षेत्र में इन दिनों अभ्यारण बनाने की लड़ाई में जनता और नेता आमने-सामने नजर आने लगे हैं. हमेशा विकास की दुहाई देने वाले नेताओं ने इस विषय पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है. धीरे-धीरे समाप्त हो रहे जगलो को नया जीवन देने का यह प्रयास चित्रकूट को नया जीवन दे सकता है. रोजी-रोजगार के अवसरों से विहीन इस क्षेत्र की आर्थिक उन्नति के लिए किसी बड़े प्रयास की जरूरत है. वर्षों तक दस्यु प्रभावित रहे इस क्षेत्र में फिर कोई ऐसी ताकत न उभरे इसके लिए क्षेत्र में लोगो की आमद को बढ़ाना होगा,जिसके लिए ऐसे प्रयास ही कारगर हों सकते हैं

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button