मध्य प्रदेशरीवा
Rewa news, CEO जिला पंचायत रीवा की मेहरबानी से सेदहा GRS और इंजीनियर को स्थगन मिलने का आरोप।

CEO जिला पंचायत रीवा की मेहरबानी से सेदहा GRS और इंजीनियर को स्थगन मिलने का आरोप।
ग्राम पंचायत सेदहा जनपद पंचायत गंगेव के तत्कालीन सचिव दिलीप कुमार गुप्ता एवं इंजीनियर डोमिनीक कुजूर को हाई कोर्ट से मिला स्थगन।
जिला पंचायत में कार्यवाही में देरी कर स्थगन दिलवाने नोटिस नोटिस का चल रहा घटिया खेल,
7 दिन में जुर्माने की राशि भरने के स्थान पर कई महीने व्यतीत होने पर आरोपी आसानी से ला रहे स्थगन,
न्यायालयीन प्रकरणों पर जिला पंचायत रीवा में चल रही हीलाहवाली, न्यायालयीन प्रकरणों में समय सीमा पर प्रस्तुत नहीं किया जा रहे जवाब।
रीवा। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा पंचायती राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 की धारा 89 और 40/92 की कार्यवाही में हीलाहवाली करने से पंचायत सचिव सरपंच और इंजीनियरों को हाई कोर्ट जबलपुर से आसानी से स्थगन का लाभ प्राप्त हो रहा है, जिसके कारण एक बार पुनः सेदहा पंचायत का मामला सुर्खियों में आया है जहां सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा हाई कोर्ट जबलपुर में सेदहा पंचायत के पूर्व प्रभारी सचिव दिलीप कुमार गुप्ता एवं पूर्व सरपंच पवन कुमार पटेल की पांच रिट याचिकाओं को एक साथ खारिज करवाए जाने के बाद लिखित तौर पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा सौरभ संजय सोनवड़े को कार्रवाई करने के लिए लेख किया गया था लेकिन जो कार्यवाही तत्काल नोटिस में उल्लेखित 07 दिवस की समयसीमा पूर्ण होने के बाद कर दी जानी चाहिए थी उसे जानबूझकर 07 सप्ताह से भी अधिक समय तक डिले किया गया जिसका नतीजा यह हुआ की एक बार पुनः सेदहा ग्राम पंचायत के पूर्व प्रभारी सचिव एवं वर्तमान रोजगार सहायक दिलीप कुमार गुप्ता एवं पूर्व सरपंच पवन कुमार पटेल को धारा 89 की सुनवाई के बाद पारित आदेश जिसमें 27 लाख से अधिक की वसूली भरे जाने के लिए आवेशित किया गया था उस पर एक बार पुनः रिट याचिका क्रमांक 4695/2024 एवं 959/2024 के माध्यम से स्थगन प्राप्त हो गया है।
नोटिस नोटिस खेलकर कार्यवाही के नाम चलती रहती है खानापूर्ति।
जाहिर है यदि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा सौरभ संजय सोनवड़े के द्वारा नोटिस के 07 दिवस के बाद समयसीमा पूर्ण होने के बाद एक या 2 और नोटिस देकर गबन भ्रष्टाचार के लिए तत्काल एफआईआर दर्ज करवा दी जाती तो शायद हाईकोर्ट से आसानी इस तरह स्थगन का लाभ नहीं मिलता लेकिन बड़ा सवाल यह है की जिला पंचायत में बैठे हुए वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी किसी भी पंचायती भ्रष्टाचार पर कार्यवाही के तनिक मात्र भी इच्छुक नहीं है। पंचायतीराज अधिनियम की धारा 89 की सुनवाई कई महीने चलती है इसके बाद आदेश पारित होता है और आदेश पारित होने के बाद भी कई महीने का समय आरोपी पक्ष को दे दिया जाता है जिसका नतीजा यह होता है कि आरोपी पक्ष आसानी से हाई कोर्ट में जाकर स्थगन प्राप्त कर लेते हैं और मामला फिर महीनों और वर्षों चलता रहता है।