सिंगरौली

Singrauli Ncl News: एनसीएल के विस्थापन नीति के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सैकड़ो की संख्या में एनसीएल मुख्यालय पहुंची महिलाएं

एनसीएल के विस्थापन नीति के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सैकड़ो की संख्या में एनसीएल मुख्यालय पहुंची महिलाएं

सिंगरौली-एनसीएल के जयंत एवं दुधीचुआ परियोजना के विस्तार हेतु चल रहे भूमि अर्जन की प्रक्रिया में बीते दिन एनसीएल द्वारा जारी बुकलेट में शासकीय भूमि पर बसे लोगों को उपेक्षित करने पर एनसीएल की भेदभाव नीति के विरोध में शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सैकड़ो महिलाएं एवं पुरुषों ने एनसीएल मुख्यालय पहुंचकर प्रदर्शन किया। इससे पूर्व बीते बुधवार को महिलाओं के द्वारा एनसीएल मुख्यालय पर किए गए प्रदर्शन व सौंपे गए ज्ञापन को लेकर एनसीएल प्रबंधन के द्वारा शनिवार 8 मार्च को पांच व्यक्तियों को वार्ता करने के लिए बुलाया गया था। एनसीएल पहुँची करुणा विश्वकर्मा, रोशनी, रंजीत, सुसीला सिंह एवं ऊषा की पांच सदस्यीय महिलाओं को लगा कि सीएमडी बी साईराम से मुलाकात होगी, लेकिन वहां जाने के बाद आर एंड आर के जीएम निरंजन कुमार से उनकी मुलाकात की। उन्होंने महिलाओं को आस्वस्त किया कि आपकी मांगों को ध्यान में रखते हुए अगली बुकलेट जारी की जाएगी। इस दौरान मुख्यालय गेट के बाहर सैकड़ो की संख्या में महिला व पुरुष एकत्रित हो गए। वार्ता कर वापस आई पांच सदस्यीय टीम ने बताया कि आर एंड आर के जीएम निरंजन कुमार के द्वारा मांगो को लेकर आश्वासन दिया गया है। इस दौरान महिलाओं ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अभी तक हम महिलाएं केवल घर संभालती थी पर अब बात हमारे घर पर है। यदि हमारी मांगे पूरी नहीं हुई तो उग्र आंदोलन करने के लिए मोरवा की महिलाएं बाध्य हो जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक हमारी मांगों को लेकर बुकलेट जारी नहीं किया जाएगा तब तक हम लगातार एनसीएल मुख्यालय पहुंच अपने मांग पत्र को सौंपते रहेंगे। गौरतलब है कि महिलाओं द्वारा एनसीएल सीएमडी के नाम सौंपे गये ज्ञापन में बताया गया कि शासकीय भूमि/वन भूमि/ एग्रीमेंट की भूमि पर घर बनाकर निवसरत परियोजना प्रभावित परिवारो को भी उचित प्रतिकर विस्थापन पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन लाभ दिलाए जाने व प्रमाणित बुकलेट के माध्य से इसकी जानकारी साझा की जानी चाहिए। वर्तमान में जारी बुकलेट में शासकीय भूमि, वन भूमि, अनुबंध की भूमि पर बिना किसी धारणाधिकार के घर बनाकर निवासरत परियोजना प्रभावित परिवारो को समावेशित नही गया है। मोरवा में बड़ी आबादी पिछले कई वर्षो से शासकीय जमीनों पर मकान बनाकर, मेहनत मजदूरी व नौकरी य छोटे मोटे काम कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। यहां लोगों ने अपने पूरे जीवन भर की कमाई अपना आशियाना बनाने में लगा दी। अब खुद को विस्थापन और पुनर्वास में उपेक्षत होता देख लोगों का आक्रोश बढ़ रहा है।

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