सिंगरौली

Singrauli news सिंगरौली के मोरवा में कोयला खनन के लिए ऐतिहासिक विस्थापन: एक लाख लोगों के पुनर्वास की चुनौती

Singrauli news सिंगरौली के मोरवा में कोयला खनन के लिए ऐतिहासिक विस्थापन: एक लाख लोगों के पुनर्वास की चुनौती

 

मोरवा में कोयला खनन से एक लाख लोगों का विस्थापन: सरकार के सामने बड़ी चुनौती

 

सिंगरौली जिले के मोरवा इलाके में भारत के इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन होने जा रहा है। नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) द्वारा कोयला खनन के लिए इस इलाके में करीब 1485 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिससे करीब एक लाख स्थानीय निवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा। इस विस्थापन के कारण लगभग 22,000 घर उजड़ जाएंगे, जिससे प्रभावित परिवारों के सामने आवास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है।

 

800 मिलियन टन कोयले के भंडार के लिए विस्थापन

 

सिंगरौली के मोरवा क्षेत्र के नीचे लगभग 800 मिलियन टन कोयले का विशाल भंडार है। इस भंडार के दोहन के लिए नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) ने कोल इंडिया के सहयोग से एक मास्टर प्लान तैयार किया है। इस योजना के तहत, मोरवा को पूरी तरह से खाली कराया जाएगा ताकि कोयला खनन कार्य बिना किसी बाधा के किया जा सके। सरकार ने इस खनन से देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसके लिए स्थानीय निवासियों को बड़ी कुर्बानी देनी होगी।

 

विस्थापन के कारण स्थानीय लोगों की आजीविका पर असर

 

मोरवा के लोग मुख्य रूप से खेती, छोटे व्यापार और श्रम पर निर्भर हैं। विस्थापन के कारण इनकी आजीविका पर गंभीर संकट आ सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकार ने उन्हें उचित मुआवजा और पुनर्वास की समुचित व्यवस्था नहीं दी, तो उनकी आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। स्थानीय व्यापारियों को भी इस विस्थापन से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि खाली होने के बाद स्थानीय बाजार और आर्थिक गतिविधियां ठप हो सकती हैं।

 

हरसूद के बाद सबसे बड़ा विस्थापन

 

मध्य प्रदेश के इतिहास में इससे पहले हरसूद में वर्ष 2004 में इंदिरा सागर बांध परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ था। हरसूद के बाद मोरवा का विस्थापन राज्य का सबसे बड़ा विस्थापन होगा। स्थानीय नेता और सामाजिक कार्यकर्ता इस स्थिति की तुलना हरसूद से कर रहे हैं और सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग कर रहे हैं कि विस्थापित परिवारों को उचित मुआवजा और पुनर्वास की सुविधा दी जाए।

 

स्थानीय लोगों की मांगें और NCL की योजना

 

मोरवा के निवासियों ने NCL और सरकार के सामने कई महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं:

 

प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए।

 

विस्थापितों को स्थायी रोजगार की गारंटी दी जाए।

 

पुनर्वास स्थल पर सभी आवश्यक सुविधाएं (जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आपूर्ति) सुनिश्चित की जाएं।

 

 

NCL ने विस्थापितों के लिए एक नई टाउनशिप बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें आधुनिक सुविधाओं के साथ नए घर, स्कूल, अस्पताल और बाजार शामिल होंगे। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस टाउनशिप का निर्माण कहां होगा और कितनी जल्दी इसे पूरा किया जाएगा।

 

स्थानीय विरोध और राजनीतिक हस्तक्षेप

 

मोरवा के लोगों ने इस बड़े विस्थापन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि विस्थापन की प्रक्रिया में उनकी सहमति नहीं ली गई है और सरकार ने उनके हितों की अनदेखी की है। सिंगरौली के पूर्व विधायक रामलल्लू वैश्य ने भी इस मामले को संसद में उठाया है। उन्होंने कोयला मंत्री से मुलाकात कर विस्थापित परिवारों के लिए स्थायी पुनर्वास और मुआवजे की मांग की है।

 

पुनर्वास की चुनौतियां और समाधान

 

पुनर्वास प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सरकार को कई स्तरों पर काम करना होगा:

 

1. पुनर्वास स्थलों का चयन: विस्थापितों के लिए ऐसी जगह का चयन किया जाए जहां वे अपनी आजीविका दोबारा स्थापित कर सकें।

 

 

2. आर्थिक सहायता: विस्थापित परिवारों को वित्तीय सहायता दी जाए ताकि वे नया व्यवसाय शुरू कर सकें।

 

 

3. रोजगार के अवसर: NCL को विस्थापितों के लिए स्थायी रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने होंगे।

 

 

4. सामाजिक और बुनियादी ढांचा: पुनर्वास स्थलों पर स्कूल, अस्पताल, बाजार और परिवहन व्यवस्था को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

 

 

सिंगरौली के मोरवा में कोयला खनन के लिए होने वाला यह विस्थापन भारत के इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन साबित हो सकता है। लगभग एक लाख लोगों का विस्थापन और 22,000 से अधिक घरों का उजड़ना न केवल सामाजिक और आर्थिक संतुलन को प्रभावित करेगा, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका और जीवनशैली पर भी गहरा असर डालेगा। सरकार और NCL के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रभावित परिवारों को सुरक्षित और सम्मानजनक पुनर्वास प्रदान करना है। यदि यह योजना उचित रूप से लागू की गई, तो यह भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button