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जानिए क्या है द्वापर युग से अब तक भारत देश में मनाए जा रहे हलछट व्रत कथा और त्योहार का महत्व।

जानिए क्या है द्वापर युग से अब तक भारत देश में मनाए जा रहे हलछट व्रत कथा और त्योहार का महत्व।

भारत देश में त्योहारों का बहुत बड़ा महत्व है देवी देवताओं के जमाने से त्योहार मनाने का चलन है और उसका अपना महत्व है उन्ही त्योहारों में से एक हलछट व्रत कथा त्यौहार है जिसमें संतान की दीर्घाऊ और उसके उत्तम स्वस्थ्य की कामना हेतु ब्रत रखा जाता है पूजन किया जाता है यह व्रत भादो कृष्ण पक्ष की छट तिथि को रखा जाता है इस व्रत का सनातन धर्म में विशेष महत्व है इस व्रत में महिलाएं व्रत रखकर अपनी संतान के स्वस्थ और समृद्धि की कामना करती हैं इस व्रत का बहुत पुराना इतिहास है इतिहासकारों ने द्वापर युग से इसकी शुरुआत मानते हैं इसकी वृतांत कथा का उल्लेख हल्काशी व्रत कथा में भी मिलता है। वही दूसरी ओर शिव पुराण में भी इसका महत्व है राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से प्रश्न किया की आप तीनों लोक में मनुष्य रूप पर जन्म लेकर लीला कर रहे हैं ऐसा क्या कारण है संतान या तो गर्भ में नष्ट हो जाती है या संतान का विकास और वृद्धि विभिन्न कारणों से पीड़ित रहते है यह प्रसंग द्रोपदी के पांच पुत्रो की मृत्यु होने तथा अभिमन्यु की मृत्यु के बाद सुभद्रा काफी दुखी और शोक में थी तब श्री कृष्ण ने हलछठ व्रत कथा का विशेष विवरण किया।

तो वहीं दूसरा उदाहरण सुभद्र नाम के राजा की पत्नी सुवर्णा स्नान करने गई जहां इसके पुत्र को मगरमच्छ ने काट लिया और दासी का पुत्र भी आग में जलकर मृत्यु को प्राप्त हो गया दासी पुत्र शोक में जंगल में जाकर शंकर पार्वती गणेश कार्तिकेय की घोर साधना की पूजा से प्रसन्न होकर उसके पुत्र को जिंदा कर दिए दासी द्वारा जंगल में पूजा के लिए कोई सामाग्री नहीं थी दासी ने जंगल से ही काश,पलाश और झारबरी के साथ जिस भैंस का बच्चा जीवित हो उसका दूध , घी, दही और महुआ की दातुन और महुआ के फूल का सेवन किया इस पूजा से जब दासी का पुत्र जीवित हो गया वही राजा सुभद्र की पत्नी पुत्र शोक से बहुत दुखी रहती थी इसके दुख को देखकर भगवान शंकर दुर्वासा ऋषि के रूप पर प्रकट हुए और उन्होंने दासी के वृतांत और पूजा का विधान बताया जिसको करने से राजा का पुत्र भी जीवित हो गया।

छठ पूजा का एक और उल्लेख है कि जब लाक्षागृह के बाद कुंती ने अपने पांचो पुत्रों की कुशलता हेतु हरछठ व्रत रखी थी यह व्रत बलराम को समर्पित माना जाता है और यह माना जाता है कि हर छठ के दिन महिलाएं जुते हुए खेत में उगाए हुए फल और अनाज का सेवन नहीं करती इसी के साथ शास्त्रों में विभिन्न मतो के साथ हरछठ व्रत का वृतांत और महत्व बताया गया है सनातन धर्म में हिंदू महिलाएं जो विवाहित होती हैं और जिनके पुत्र होते हैं उनके द्वारा यह व्रत कथा की जाती है साथ ही जिन महिलाओं के संतान की इच्छा होती है वह हरछठ व्रत कथा और व्रत रखती है।

भारतीय समाज के सभी लोग अपने-अपने कुल रीत रिवाज देश रीत और वेद रीत के अनुसार महिलाएं व्रत पूजा पाठ करती है यह व्रत सभी महिलाएं जिनकी संतान होती है करती हैं किंतु वर्तमान व्यवस्था पर अपनी रीति रिवाज अनुसार पूजा पाठ के अलग-अलग विधान हैं किंतु हर विधान में यह विशेष रूप से देखा जाता है कि महिलाएं जोते हुए खेत पर पैर नहीं रखती सुबह स्नान के बाद महुआ की दातुन करती हैं महुआ के फूल को पकाती हैं और घर के मैदान में कहीं पर एक गड्ढा बनाकर उसमें पानी भरकर तथा कास, पलाश और जंगली बैर तीनों को एक साथ खड़ा कर पूजा की जाती है।

छठ पूजा में महुआ चावल और दही महुआ के पत्ते पर रखकर की जाती है जिसमें कच्चा सूत सुपारी पान का भी प्रयोग अब किया जाने लगा है लेकिन जिस समय व्रत की शुरुआत हुई जंगल में कच्चा सूत सुपारी पान उस कालांतर में नहीं था किंतु धीरे-धीरे समाज विकसित होता गया और पूजा के विधान में परिवर्तन होता गया आज समाज अपने अपने रीति रिवाज अनुसार पूजा संपन्न करवाते है हालांकि बदलते युग में अब आधुनिक सुविधाओं का चलान भी हो गया है पंडित पुरोहितों द्वारा कुछ नया भी क्षेत्र और रीति रिवाज के अनुसार इसमें शामिल करवा दिए हैं हलछट व्रत कथा पूजा और त्योहार वर्तमान समय में भी महत्वपूर्ण त्योहार में से एक माना जाता है।

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