देश की धार्मिक कुरीतियां महिलाओं की स्वतंत्रता में बड़ी बाधा परित्यक्तता भी तीन तलाक की तरह दुखदायक।
देश की धार्मिक कुरीतियां महिलाओं की स्वतंत्रता में बड़ी बाधा
परित्यक्तता भी तीन तलाक की तरह दुखदायक।
आजाद भारत की 21 वीं सदी में भी महिलाओं को नहीं मिल पा रहा बराबरी का माहौल : अजय खरे।
रीवा 22 अगस्त। समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा है कि धार्मिक कुरीतियां औरतों की आजादी में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं। औरतों की स्थिति में अभी काफी सुधार की जरूरत है। भारत में किसी भी धर्म की बात हो महिलाओं के साथ विभेद और अन्याय बरकरार है। चाहे तीन तलाक हो या परित्यक्तता जीवन प्रभावित औरतों को नारकीय स्थिति से गुजरना पड़ता है। कहने के लिए कानून तो बने हुए हैं लेकिन जब पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता तो वह निरर्थक हो जाता है। वैसे भी देश में दहेज जैसी विकराल सामाजिक कुरीति के चलते औरतों के साथ काफी अन्याय हो रहा है। सरकार कुरीति को समाप्त करने के बजाय दहेज कुप्रथा को बढ़ावा दे रही है। खर्चीले शादी आयोजन दहेज प्रथा को खुल्लम खुल्ला बढ़ावा है।
देश में लाखों महिलाएं परित्यक्तता का दुखद जीवन बिताने को मजबूर हैं जिनको लम्बे समय से न्याय की दरकार है। महिलाएं किसी भी धर्म की हों उनको न्याय मिलना चाहिए ।औरतों के साथ होने वाले अन्याय को रोकने के लिए एक जैसे कानून की जरूरत है क्योंकि उनकी समस्याएं कमोवेश एक समान हैं। पुरुष प्रधान समाज के चलते हर वर्ग की महिलाएं प्रताड़ित हैं , उन्हें न्याय मिलना चाहिए। महिलाओं की आजादी को धार्मिक कटघरे से मुक्त रखा जाना चाहिए। परित्यक्तता जीवन भी तीन तलाक की तरह अत्यंत गंभीर सवाल है। इस मसले पर भी ठोस पहल होना चाहिए। यह भारी विडंबना है कि सरकार की ओर से तीन तलाक को लेकर कड़े कानून बनाए गए लेकिन लाखों परित्यक्ताओं को लेकर कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं देती है। आखिरकार ऐसा भेदभाव क्यों हो रहा है ? मोदी सरकार को इस बारे में भी शीघ्र कठोर कानून बनाना चाहिए।