सनातनी हिन्दू धर्म में ,मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, और अग्नि पुराण के अनुसार पितृपक्ष का महत्व और अनुष्ठान का फल।
ब्यूरो रिपोर्टSeptember 24, 2024Last Updated: September 24, 2024
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सनातनी हिन्दू धर्म में ,मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, और अग्नि पुराण के अनुसार पितृपक्ष का महत्व और अनुष्ठान का फल।
सनातन हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। वर्ष में 12 माह होते हैं, जिनमें भाद्रपद (भादों) और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। इस दौरान अमावस्या तक पितरों के निमित्त विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। यह मान्यता है कि पितृपक्ष के समय पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए कर्मों को देखते हैं। शास्त्रों में पितृपक्ष का वर्णन विस्तार से मिलता है, विशेष रूप से मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, और अग्नि पुराण में इसका उल्लेख किया गया है।
पितृपक्ष की शुरुआत ब्रह्मा के पुत्र मनु से मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस अवधि में देवताओं की पूजा नहीं की जाती, बल्कि केवल पितरों के लिए कर्मकांड किए जाते हैं। इस समय कोई नया कार्य, जैसे कि नए वस्त्र, आभूषण या भूमि खरीदना, शुभ नहीं माना जाता। पीपल के वृक्ष का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह माना जाता है कि पितृ इस वृक्ष में निवास करते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए कार्यों को देखते हैं।
मृत्यु के बाद हर आत्मा को यमलोक जाना पड़ता है, जहाँ उनके कर्मों के अनुसार उनके मार्ग का निर्धारण होता है। पितृपक्ष में काले तिल, चावल, और उड़द का विशेष महत्व होता है। कौवा, गाय, कुत्ता, और ब्राह्मणों को भोजन अर्पित करना पितरों को संतुष्ट करने का एक प्रमुख उपाय है। इस अवधि में पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण के रूप में अनुष्ठान किए जाते हैं। प्रयागराज, गया, पुष्कर, और वाराणसी जैसे तीर्थ स्थानों में पिंडदान का आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। पिंडदान में गाय का घी, काले तिल, चावल आदि का उपयोग होता है, और यह माना जाता है कि इन अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
हर व्यक्ति अपने तीन पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए पिंडदान कर सकता है, जिसमें पिता, दादा, और परदादा शामिल होते हैं। साथ ही, नाना-नानी के लिए भी पिंडदान करने का विधान है। यह माना जाता है कि पितरों की कृपा से परिवार में सुख, समृद्धि, और खुशहाली आती है। यदि पितर असंतुष्ट होते हैं, तो इसे ‘पितृ दोष’ कहा जाता है, जिसके कारण परिवार में रोग, दुर्घटना, या अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
विशेष रूप से विंध्य प्रदेश और रीवा जिले में हर घर में पितरों के रूप में बाबा साहब की पूजा की जाती है। पितृपक्ष में पीपल के पेड़ को स्नान कराकर उसकी पूजा करनी चाहिए। यह भी मान्यता है कि इस दौरान पीपल का पेड़ लगाना शुभ होता है, जिससे पितृ और मातृ पक्ष की आत्माओं को मुक्ति मिलती है विंध्य क्षेत्र में कुल रीति देश रीति के हिसाब से दूध और चावल की खीर, घी की पूड़ी, उड़द का बरा, सहित अन्य वजन बनाकर पितरों को भोग लगाने का रिवाज है।
पितृपक्ष को लेकर बताया गया है कि मनु के दो पुत्र थे, सत्यपाठ और उद्यान, जिनसे यह परंपरा शुरू हुई। आधुनिक युग में भी सनातन धर्म के अनुयायी पितृपक्ष के अनुष्ठानों का पालन करते हैं। हर धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कुछ न कुछ अनुष्ठान होते हैं। सनातन धर्म के अनुसार आत्मा अजर-अमर होती है, और कर्मों के अनुसार व्यक्ति को 84 लाख योनियों में जन्म लेना पड़ता है। पितृपक्ष के दौरान किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आत्मा को मोक्ष प्रदान करने में सहायक होते हैं।
कुल मिलाकर, पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किए जाने वाले अनुष्ठानों का समय है यह लेख विराट वसुंधरा के लिए लेखक वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय गढ़ जिला रीवा द्वारा लिखा गया है संजय पांडेय 25 वर्षों से निष्पक्ष आंचलिक पत्रकारिकता करते हुए जन समस्याओं सरकार की व्यवस्थाओं घटना दुर्घटनाओं की खबरों का संकलन तथा समसामयिक मुद्दों पर अपना आलेख लिखते हैं।
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ब्यूरो रिपोर्टSeptember 24, 2024Last Updated: September 24, 2024